The Guru of Gurus - Audio Biography

निरंतर जागरूकता

October 08, 2021 Gurudev: The Guru of Gurus
The Guru of Gurus - Audio Biography
निरंतर जागरूकता
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ज़्यादातर लोग इस बात से बेख़बर रहते हैं कि वे कहां हैं,  क्या कर रहे हैं और उनके आस-पास क्या हो रहा है। मन तरह-तरह की उधेड़-बुन में लगा रहता है, और इच्छाओं-आकांक्षाओं के जुनून में इतना व्यस्त रहता है कि वह अपने आप पर ध्यान केंद्रित करना भूल जाता है, और इसके चलते अपनी ऊर्जा का उपयोग नहीं कर पाता। शारीरिक, आध्यात्मिक और मानसिक स्तरों पर, हम अनमने से रहते हैं। गुरुदेव विभिन्न स्तरों पर फुर्तीले, सजग और सक्रिय थे। किसी कॉस्मिक कमांडो की तरह। यही वजह है कि वह अलौकिक थे। 

ज़्यादातर लोग इस बात से बेख़बर रहते हैं कि वे कहां हैं,  क्या कर रहे हैं और उनके आस-पास क्या हो रहा है। मन तरह-तरह की उधेड़-बुन में लगा रहता है, और इच्छाओं-आकांक्षाओं के जुनून में इतना व्यस्त रहता है कि वह अपने आप पर ध्यान केंद्रित करना भूल जाता है, और इसके चलते अपनी ऊर्जा का उपयोग नहीं कर पाता। शारीरिक, आध्यात्मिक और मानसिक स्तरों पर, हम अनमने से रहते हैं। गुरुदेव विभिन्न स्तरों पर फुर्तीले, सजग और सक्रिय थे। किसी कॉस्मिक कमांडो की तरह। यही वजह है कि वह अलौकिक थे। 

निरंतर जागरूकता

निरंतर जागरूकता एक ऐसी चेतना है जिसे हम सभी को पाने की कोशिश करनी चाहिए। यह मन के आसान सफर के लिए ऊबड़-खाबड़ रास्तों से बचकर चलने का उपाय है। दुर्भाग्य से,  हमारे सभी या अधिकांश संकल्प ध्वस्त हो जाते हैं क्योंकि जब हम करें या न करें कि दुविधा में फंस जाते हैं तो मन नए रास्ते पर चलने की बजाय पुराने विचारों में फंसकर पहले ही वाले रास्ते पर चलने लगता है। 

गुरुदेव के मामले की कल्पना कीजिए,  जिनका जीवन और मिशन हमसे कई गुना अधिक जटिल था। साथ ही वह इतने जागरूक थे कि लोगों की नियति और उनके साथ घटने वाली घटनाओं को समझने के लिए भूत,  वर्तमान और भविष्य देख लेते थे।

यह एक दोधारी तलवार थी, क्योंकि वह पहले से ही सब कुछ देख लेते थे, चाहे वह कितना भी बदसूरत क्यों न हो। अपने भक्तों को दुर्भाग्य से बचाने के लिए उन्हें समाधान खोजने की कोशिश करनी पड़ती थी। 

अक्सर, गुरुदेव की निरंतर जागरूकता लोगों के लिए एक जीवन रक्षक बनकर आई। चूंकि वह भाग्य की चाल को देख सकते थे,  इसलिए उसके ख़राब प्रभाव को कम करने के उपाय भी खोज सकते थे।

 

उनकी लगातार जागरूकता का पहला अनुभव बिट्टू जी से सुनते हैं। 

 

बिट्टू जीः श्री सूद नाम के एक सज्जन मुंबई से आए थे। उनके बेटे की तबीयत ठीक नहीं थी। वह गुड़गांव में गुरुजी के स्थान पर ही रह रहे थे। मैं सेक्टर 14 में रहता हूं। एक रात को  मैंने श्री सूद से कहा कि मुझे वहां तक छोड़ दें। गुरुजी ने कहा, "नहीं, तुम थोड़ी देर रुको। अभी मत जाओ"।

एक सन्नी चड्डा थे जिन्हें दिल्ली जाना था। तो गुरुजी ने उन्हें सन्नी चड्डा को साथ लेकर जाने के लिए कहा। जैसे ही गाड़ी निकली, गुरूजी ने मुझे अपनी स्कूटर की चाभी दी और घर जाने को कहा। मैं कार निकलने के तीन-चार मिनट बाद निकला। सेक्टर-14 से करीब 250 मीटर पहले सड़क पर एक ट्रक खड़ा था। कार के ड्राइवर नटवर ने कार को ट्रक में ठोक दिया। पता नहीं उसे झपकी आ गई थी या समय पर ब्रेक नहीं लगा तो,  उनकी कार पूरी तरह से ट्रक के नीचे चली गई थी। इस समय रात के 12.00 या 1.00 बज रहे थे। गुरुजी जानते थे कि यह होने वाला है, इसलिए उन्होंने मुझे कार के पीछे भेजा। उनके बारे में सबसे अच्छी बात यह थी कि वह हमेशा कहते थे, 'जो होना है वह होकर रहेगा। मैं एक गुरु हूं, और मैं किसी घटना की संभावना को 100% से 10% तक बदल सकता हूं, फिर भी जो लिखा है वह तो होगा ही।"

गुरुजी यह जानते थे कि यह दुर्घटना होने वाली है, इसलिए उन्होंने मुझे उनके पीछे भेजा। मैंने लोगों को मदद के लिए बुलाया। अपने भाई को भी बुलाया और हमने कार में से लोगों को बाहर निकाला और उन सभी को प्राथमिक उपचार के लिए अस्पताल ले गए। जिसके बाद उन सभी को स्थान ले जाया गया।

 

जो बात बिट्टू जी नहीं जानते थे, मैं उसका गवाह था। जब सूद  परिवार ने वीक एंड मनाने की इजाज़त मांगी तो गुरुजी ने मना कर दिया। तो,  उन्होंने पूछा कि क्या वे अपने ड्राइवर को घर वापस भेज सकते हैं। गुरुदेव ने मना कर दिया और कहा कि फिर सबको जाना होगा। उन्होंने बाद में समझाया कि अगर ड्राइवर अकेला जाता, तो दुर्घटना में उसकी मौत हो जाती और इसीलिए उन्होंने उन सभी को जाने दिया। सौभाग्य से,  उन सभी को कोई बड़ी चोट नहीं लगी। 

मैं ऐसी कई घटनाओं का साक्षी रहा हूं जिसमें गुरुदेव की कृपा से लोगों की सेहत सुधरी है और उनका जीवन भी लंबा हुआ है। हालांकि इसे समझाना, यहां तक कि इसके औचित्य को साबित करना आसान काम नहीं है। लोग अपने अनुभव से ही इसे समझ पाते हैं। 

ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें गुरुदेव ने पिछले जन्म के साथ-साथ भविष्य में क्या होने वाला है, इस पर भी चर्चा की है। “के सेरा, सेरा” (जो होगा, सो होगा) - गीत का गीतकार यदि गुरुदेव से मिला होता तो इसे लिखने से पहले उसे दोबारा सोचना पड़ता। 

राजपाल जी बहुत शानदार शिष्य थे। बहुत अच्छी क़द-काठी, अच्छा व्यक्तित्व, ऊंचे दर्जे के कपड़े, अच्छी ज़बान और दिल के उदार। गुरुदेव को राजपाल जी बहुत भाते थे। 

राजपाल जी एक घटना सुना रहे हैं। 

 

राजपाल जीः एक बार हम एक पहाड़ से नीचे उतर रहे थे। कार गुरूजी चला रहे थे। उन्होंने कार को न्यूट्रल में डाल दिया। जब यह बात मेरे ध्यान में आई तो मैंने उनसे कहा, "गुरुजी, हम पहाड़ से नीचे उतर रहे हैं। आपको कार गियर में डालनी चाहिए।" उन्होंने कहा, "बेटा, मुझे ऑफ़िस का ड्राइवर मिला है।" आप तो जानते हैं गुरुजी एक सॉइल साइंटिस्ट थे, एक सरकारी अधिकारी थे, इसलिए उन्हें एक ड्राइवर और स्टाफ़ भी मिला था। उन्होंने कहा, " जब भी मैं गियर में कार चलाता हूं, तो अधिक पेट्रोल की खपत होती है। इसलिए, मैं न्यूट्रल में ड्राइव करता हूं ताकि पेट्रोल पर कम पैसा ख़र्च हो। ड्राइवरों को तो माइलेज के आधार पर पैसे मिलते हैं। इस तरह ड्राइवर कुछ महीनों के लिए मेरे साथ दौरे पर रहते हुए अतिरिक्त पैसा कमा सकता है। इसलिए, जब भी मैं ड्राइव करता हूं, गाड़ी न्यूट्रल पर होती है।" मैंने कहा, "गुरुजी, अगर हम पहाड़ों पर न्यूट्रल में कार चलाते हैं, तो हमें कार को रोकने के लिए ब्रेक का इस्तेमाल करना होगा। यह ख़तरनाक है, ऐसा मैंने सुना है।" मैंने गुरूजी से ज़्यादा बात नहीं की। तो, उन्होंने बहुत ही छोटा-सा उत्तर दिया, "बेटा, दुर्घटना होनी है या नहीं, मुझे पहले ही पता चल जाएगा। ठीक है ना?"

 

अशोक भल्ला ने गुरुदेव के मार्गदर्शन और जागरूकता की एक बहुत ही अजीब कहानी सुनाई। जब गुरुदेव मल्होत्रा जी को निर्देश देते थे, और अगले दिन कामकाज की जांच करते थे, तो वह यह भी बताते थे कि मल्होत्रा जी कहां चूक गए थे या कौन सी बात साझा करना भूल गए थे।

सवालः  उनके पहले शिष्य मल्होत्रा जी थे क्योंकि वह जो कुछ भी सीखते थे, उन्हें पढ़ाते रहते थे।

अशोक भल्लाः हां, और जब गुरुदेव ने मल्होत्रा जी को प्रशिक्षण देना शुरू किया था, तो वह उन्हें रात में क्या करना था, यह निर्देश देते थे। मल्होत्रा जी ने बताया कि यदि अनुभव 2 या ढाई घंटे तक चला, तो उन्हें अगले दिन गुरुजी को पूरी घटना विस्तार से बतानी पड़ती थी। तो, अगर पूरा एपिसोड 2 घंटे तक चला, तो गुरुदेव को समझाने में भी इतना ही समय लगना चाहिए। मल्होत्रा जी कहते थे कि अगर अनजाने में कोई बात बताने से चूक जाएं तो गुरूजी मल्होत्रा जी को बता देते थे कि तुमने यह-यह बात छोड़ दी। 

 

वीरेंद्र जी गुड़गांव में ज़िला स्तरीय जज और अनन्य भक्त थे। भृगु संहिता में उनका उल्लेख उनके भाई और भाई की पत्नी के साथ किया गया है। आइए उनसे एक और अलौकिक घटना के बारे में जानते हैं। 

 

वीरेंदर जीःघटना 1988 या 89 की है। मेरी पत्नी उन दिनों अमेरिका में थी। मैं अपने घर पर बिल्कुल अकेला था। मैं तब तक रोहतक शिफ्ट हो चुका था। लगभग 11.00 बजे मैं प्रार्थना करके लौटा और सोने की तैयारी में था। तभी मैंने सामने की दीवार पर प्रकाश देखा। पहले छोटी सी रोशनी थी। फिर रोशनी बढ़ने लगी और मैंने उसमें भगवान शंकर जैसी आकृति को देखा। जैसा कि आप उन्हें तस्वीरों में देखते हैं, बिल्कुल वैसे ही। मुझे नहीं पता कि मुझे क्या सूझा और मैंने कहा, "तो बाइबल में सही लिखा है कि ईसा मसीह कभी मुस्कुराते नहीं हैं।" यह वाक्य मेरे दिमाग़ में कहां से आया, पता नहीं और मैंने ऐसा क्यों कहा यह भी पता नहीं। लेकिन उसके बाद कुछ हुआ। उस मूर्ति जैसी आकृति ने अपनी आंखें खोलीं और धीरे-धीरे ग़ायब हो गई। मैं कुछ देर बैठा रहा। मैंने अपने दिमाग़ से इस विचार को दूर करने की कोशिश की और मैं वापस सोने चला गया। यक़ीन मानिए, अगली सुबह जब मैं उठा तो मेरे भीतर की आधी जिज्ञासा और अचरज चला गया था। वह आकृति ग़ायब हो गयी थी। दिन बीतने लगे। लगभग एक महीने के बाद मैं गुरुजी के फ़ार्म पर गया। दिन का समय था। मैंने सफ़ेद सूट, सफ़ेद कोट, सफ़ेद पैंट, सफ़ेद शर्ट और एक लाल टाई बांधी थी। और एक लाल रुमाल भी रखा था। मैं उनसे वहां इसलिए मिलने गया था क्योंकि मुझे उनसे किसी ज़रूरी मामले पर चर्चा करनी थी। वह फ़ार्म में अकेले थे। मुझे देखते ही उन्होंने कहा, "फकीरा।" वह मुझे फकीरा कहते थे। "फकीरा, यहां प्रणाम मत करो, वरना तुम्हारे कपड़े गंदे हो जाएंगे।" लेकिन मैंने मन में कहा वीरेंदर सिंह तुम्हारा ट्रायल हो रहा है। मैंने उन्हें साष्टांग प्रणाम किया, जैसा हमेशा करता था। उन्होंने मुझे उठाया, अपने हाथों से मेरे कपड़ों की धूल साफ की। फिर उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और बोले, "वीरेंदर, जब उसने अपनी आंखें पूरी तरह खोलीं  तो क्या तुमको डर नहीं लगा?" वह उसी दृश्य के बारे में बात कर रहे थे, जो देखा था। मैंने उसके बारे में किसी से भी चर्चा नहीं की थी। मेरी पत्नी घर पर नहीं थी, मेरा बेटा छोटा था और वह अपनी मां के साथ था। मैं ये बातें किससे करता? जब उन्होंने कहा, "जब उसने अपनी आंखें पूरी तरह खोलीं,  तो क्या तुमको डर नहीं लगा?", मैंने उनसे पूछा, "क्या आप थे गुरुजी?" और वह चुप रहे। उन्होंने बस मेरा हाथ थाम लिया और चलते रहे।

 

उनकी विलक्षण क्षमताओं से उनके शिष्य अचरज में पड़ जाते थे। हम जानते थे कि उन्हें सबकुछ मालूम है। हम बताएं या न बताएं। इसमें न केवल घटनाएं, बल्कि विचार भी शामिल थे।

 

गुरुदेव, राजपाल जी को अमेरिकी दूतावास द्वारा वीज़ा न देने के फैसले को उलटने के लिए प्रतिबद्ध थे। उन्होंने यह कैसे किया?  समझना कोई मुश्किल नहीं। उनकी जागरूकता भूतकाल से लेकर अनदेखे भविष्य तक फैली हुई है।

राजपाल सेखरी।

 

राजपाल जीः एक बार गुरूजी को अमेरिका जाना पड़ा और उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या मेरे पास वीज़ा है। मैंने कहा नहीं, तो उन्होंने कहा ले लो। इसलिए, मैं अमेरिकी दूतावास गया और वीज़ा के लिए आवेदन किया। मुझे काग़ज़ की एक पर्ची वापस मिली, जिसमें कहा गया था कि मेरा वीज़ा अस्वीकृत कर दिया गया है। मैं रात को गुरुजी के पास गया।  शाम को ही उन्होंने मुझसे पूछा था कि वीज़ा का क्या हुआ? मैंने उनसे कहा कि उन्होंने मुझे एक काग़ज़ दिया है जिसमें कहा गया था कि मेरा आवेदन अस्वीकार कर दिया गया है  और उन्होंने उस पर मुहर लगा दी थी। वह क्रोधित हो गये और कहा, "किसमें इतना दम है कि मेरे बेटे का वीज़ा अस्वीकार कर दे?" मैंने कहा, "गुरुजी, ये अमेरिकी हैं; यह उनका दूतावास है और उनकी इच्छा है कि किसे जाने दिया जाए और न जाने दिया जाए।" उन्होंने कहा, "नहीं, यह सारा संसार मेरा है। मेरे शिष्य को कोई मना नहीं कर सकता। तुम जहां चाहो वहां जा सकते हो।" बात ख़त्म हो गई। एक या दो हफ्ते बाद मैं गुड़गांव था। पूरन ने मुझे सुबह लगभग 6 बजे जगाया और कहा कि गुरुजी मुझे बुला रहे हैं। जब मैं गया, तो वह अपनी पैंट और शर्ट पहनकर ऑफ़िस जाने के लिए तैयार थे,  और मुझसे कहा कि सीधे अमेरिकी दूतावास जाओ, क्योंकि मुझे वीज़ा मिलने वाला है। मैं दूतावास गया और अपना पासपोर्ट और आवेदन जमा किया। डेढ़ घंटे बाद मेरी बारी आई। संयोग से  केबिन में वही महिला थी जिससे मैं पहले भी मिल चुका था। उसने मुझसे पूछा, "जब हम पहले ही आपके वीज़ा आवेदन को अस्वीकार कर चुके हैं तो आप फिर से क्यों आ गए?" मुझे नहीं पता कि मेरे साथ क्या हुआ। मैंने अजीब कमांडिंग तरीक़े से बात की, "हां, हां, मुझे पता है। मैं कारण जानना चाहता हूं। आपने मेरे साथ अभद्रता क्यों की?" उसने कहा कि उसने ऐसा नहीं किया। मैंने उससे पूछा कि उसने किस आधार पर वीज़ा देने से इनकार किया था। उसने कहा, "हमें लगता है कि आप वापस नहीं आएंगे। वहीं रुक जाएंगे।" मैंने कहा, "आपने मुझे गाली देने की हिम्मत कैसे की?" उसने कहा कि उसने मुझे गाली नहीं दी है। मैंने कहा कि यह एक बड़ा दुर्व्यवहार है। मैंने अपने आवेदन में कहा था कि मैं अमेरिका जाऊंगा और वापस आऊंगा, लेकिन उसे मेरी लिखी हुई बात पर भरोसा नहीं है, मेरी ईमानदारी पर संदेह किया जा रहा था। मैंने उससे पूछा कि वह मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकती है, और कहा, "यदि आप नहीं चाहते कि मैं आपके देश में जाऊं, तो आपके अमेरिका की ऐसी की तैसी। लेकिन मैं जानना चाहता हूं कि आपने मुझे गाली किस वजह से दी।" उसी समय एक अधिकारी बाहर आया था। उसने पूछा कि क्या हो गया। इससे पहले कि वह जवाब देती, मैंने कहा, "देखो अधिकारी, इस लड़की ने मुझे गाली दी है।" उसने उससे पूछा कि क्या ऐसा है। उसने कहा "नहीं, जॉन, मैंने गाली नहीं दी"। मैंने कहा कि मैंने पिछले हफ्ते आवेदन किया था। मैं कुछ दिनों के लिए आपके देश जाना चाहता था। वह कहती है कि मैं वापस नहीं आऊंगा और वहीं रह जाऊंगा। मैं ऐसा क्यों करूंगा? अगर मैं आपके देश में रहना चाहता हूं, तो मैं अपने आवेदन में वैसा ही लिखूंगा लेकिन जब मैंने लिखा है कि मैं वापस लौटूंगा तो इसे मेरी ईमानदारी पर संदेह है कि यह मेरे लिए बहुत बड़ी गाली है। मैं कारण जानना चाहता हूं।" वह चुपचाप उसे केबिन में ले गया। दो मिनट बाद वह नज़रें झुकाकर बाहर आई और मुझसे पूछा कि मैं कब तक अमेरिका में रहना चाहता हूं। मैंने कहा, "3-4 सप्ताह।" उसने चुपचाप वीज़ा पर 4 सप्ताह लिखा और उस पर मुहर लगाकर मेरा पासपोर्ट लौटा दिया। जब मैं दूतावास से बाहर आया, तो मेरी मुलाक़ात एक सिख महिला से हुई, जिसने मुझसे कहा, "भाई, आप इस जीवन में तो अमेरिका नहीं जा सकते। आप जिस तरह से शोर मचा रहे थे, पूरा हॉल गूंज गया था।"

गुरुजी ने जब मुझे सुबह दूतावास भेजा, तो वह जानते थे कि मुझे वीज़ा मिल ही जाएगा....या (उन्होंने घटनाक्रम रचा था) उन्होंने सुबह ही मेरा वीज़ा मंज़ूर कर दिया था। 

 

हालांकि गुरुदेव ने बिना टिकट यात्रा को कभी प्रोत्साहित नहीं किया, लेकिन तत्काल यात्रा को जरूर प्रोत्साहित किया। आगे आ रही है 'छुक-छुक गाड़ी'  और राजपाल जी की कहानी।

 

राजपाल जीः  एक बार मुझे पता चला कि गुरूजी पटेल नगर पधारे हैं। किसी ने फ़ोन करके मुझसे कहा कि यदि मैं उनसे मिलता चाहता हूं कि तो पटेल नगर पहुंच जाऊं। गुरुजी से मिलने की इच्छा तो मेरे मन में हमेशा बनी रहती थी। इसलिए, मैं दरियागंज के अपने ऑफ़िस का काम निपटाकर कार से पटेल नगर की ओर चल पड़ा। मैंने गुरुजी को प्रणाम किया। मैंने किसी को यह कहते हुए सुना कि गुरुजी मुंबई जा रहे हैं। मैंने उससे पूछा कि क्या वह वाक़ई मुंबई जा रहे हैं। उन्होंने हां कहा, और मुझसे पूछा कि क्या मैं उनके साथ जाना चाहता हूं। मैंने पूछा कि क्या उनके पास अतिरिक्त टिकट है। उन्होंने कहा कि टिकट स्टेशन पर ही ले लेंगे। मैंने उनसे कहा कि वह राजधानी या डीलक्स ट्रेन, जिससे भी जाना चाहते हैं, उसकी टिकट स्टेशन पर मिलना संभव नहीं है। कनॉट प्लेस के बुकिंग ऑफ़िस से लेना होगा। उन्होंने कहा, "चिंता मत करो, हमें टिकट मिल जाएगी।" मैं चुप हो गया। मुझे लगा कि ऐसे ही कह रहे हैं। लेकिन फिर उन्होंने मुझे कार में बैठे रहने को कहा। स्टेशन पर, वह एक ग्रिल गेट से अंदर गये—मैं बाहर ही था। मैंने मन ही मन सोचा, मैं क्या करूं, और फिर उनके पीछे-पीछे उस प्लेटफॉर्म पर गया, जहां ट्रेन खड़ी थी। जल्दी ही हरी झंडी मिलने के बाद ट्रेन धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगी। मैं मन ही मन सोच रहा था कि मेरे पास टिकट नहीं है, मैं कैसे जाऊं? गुरूजी ने मुझे अपने साथ मुंबई चलने को कहा था। ठीक उसी समय किसी ने मेरी पीठ थपथपाई। मैंने मुड़कर देखा तो वहां सांवली रंगत वाला आदमी खड़ा था। उसने साधारण कपड़े पहने हुए थे। जैसे ही उसने मुझे देखा, उसने बिगड़कर मुझसे पूछा, "क्या आप बॉम्बे जाना चाहते हैं?" मैने हां कह दिया। "क्या आपको टिकट चाहिए?" मैने फिर हां कह दिया। "पैसे निकालो।" मैंने उसे 200 रुपये दिए। उसने मुझसे मेरा नाम पूछा। मैंने नाम बता दिया। उसने अपनी जेब से एक टिकट निकाला, उस पर मेरा नाम और सीट नंबर-65 लिखा और मुझे दे दिया। ट्रेन चल पड़ी थी। मैं टिकट लेकर ट्रेन की ओर भागा।

 

मैं दिल्ली जाने के लिए ट्रेन पकड़ने के लिए बीना स्टेशन पर गुरुदेव के साथ था। उन्होंने मुझे प्रथम श्रेणी की दो टिकटें ख़रीदने के लिए कहा। टिकट काउंटर पर मौजूद व्यक्ति ने यह कहकर मना कर दिया कि ट्रेन में प्रथम श्रेणी का डिब्बा ही नहीं है। इसलिए,  मैंने दो द्वितीय श्रेणी की टिकटें खरीदीं और गुरुदेव के पास लौट आया। वह नाराज़ हुए और मुझसे प्रथम श्रेणी की टिकटें लाने के लिए कहा। टिकट-विक्रेता को लगा कि मैं कम-अक्ल हूं। उसने हंसी उड़ाई, मुझे सहानुभूतिपूर्वक देखा,  और मुझे द्वितीय श्रेणी के डिब्बे में यात्रा करने के लिए प्रथम श्रेणी की दो  टिकटें दे दीं। टिकट देखकर गुरुदेव संतुष्ट दिखे। जल्द ही ट्रेन आ गई। टिकट काउंटर पर मुझे बताया गया था कि ट्रेन में केवल द्वितीय श्रेणी के डिब्बे होंगे! लेकिन अचंभे की बात थी कि इस समय जो ट्रेन आई थी उसकी आख़िरी बोगी सेकंड क्लास की नहीं, बल्कि फ़र्स्ट क्लास की थी।

70-80 बर्थ वाली बोगी में केवल गुरुदेव और मैं ही सवार थे। जब टिकट कंडक्टर हमारी टिकटों की जांच करने के लिए आया, तो उसने बताया कि यह द्वितीय श्रेणी की ट्रेन थी, लेकिन कुछ स्टेशन पहले ही इसमें दिल्ली जाने के लिए प्रथम श्रेणी की बोगी जोड़ी गयी थी।

उनके फैसले पर सवाल उठाना मेरी सरासर मूर्खता थी। एक आदमी जो भविष्य देख सकता था उससे एक ऐसा व्यक्ति सवाल कर रहा था, जो शायद वर्तमान को भी ठीक से नहीं देख सकता था।

गुलाब सिंह राणा अपना एक अनुभव साझा करते हैं, जो गुरुदेव की भविष्यवाणी की ताकत को समझाने के लिए पर्याप्त होगा। 

 

गुलाब सिंह राणाःएक बार गुरुजी मेरे कृष्णा कॉलोनी वाले घर में आए। मेरा घर छोटा-सा था और उसका गेट भी बहुत छोटा था। गुरुजी ने मुझसे कहा, "बेटा, यह गेट बहुत छोटा है, इससे कोई बड़ी गाड़ी कैसे अंदर आ सकती है?" उस समय हमारे पास एक छोटा स्कूटर हुआ करता था। हम कार ख़रीदने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे। इसलिए, जब मैंने गुरुजी को यह बताया, तो उन्होंने कहा, "बेटा, भविष्य में तुम्हारे पास इतनी गाड़ियां होंगी कि तुम उनके नंबर भी याद नहीं रख पाओगे"। आज मेरे पास लगभग 60 से 70 ट्रक हैं जिनके नंबर मुझे आज तक याद नहीं हैं। मुझे बस इतना याद है कि अंतिम दो अंक 18 हैं, बस। उसके पहले वाले नंबर याद नहीं हैं।

 

आइए सुनते हैं नितिन गाडेकर का महागुरु की सर्वव्यापकता के बारे में क्या कहना है।

 

नितिन गाडेकरः मुझे लगता है कि साल 1981, 82, 83  के दौरान  गुड़गांव और नई दिल्ली में मुझे गुरुजी से पहला सबक़ मिला कि गुरूजी से कभी झूठ नहीं बोलना है। क्योंकि आपके जीवन में हर पल क्या हो रहा है, गुरुजी को पता था। यहां तक कि एक दिन मैंने मुंबई में रहते हुए उर्वशी से ऊंची आवाज़ में बात की और  उसी दोपहर को ट्रेन में बैठकर नई दिल्ली पहुंचा तो सबसे पहले गुरुजी ने मुझसे कहा, “क्या तेरा दिमाग़ ख़राब हो गया है? मेरी बेटी पे चिल्लाता है।”

एक और घटना गुड़गांव की है। मैं अपने चाचा के घर गया। एक रात पहले वह बहुत गुस्से में थे। उन्होंने चीख़ना-चिल्लाना शुरू कर दिया। तो मैंने उनके घर खाना-पीना बंद कर दिया। लेकिन मेरी चचेरी बहन ने मुझे खाने पर बुलाया और मुझे खाना पड़ा। मेरे पिता और बाक़ी सभी लोगों को वहां खाना खाना पड़ा। गुरुजी से मिलने के बाद सबसे पहली बात गुरुजी ने मुझसे पूछी, "मैंने तुमसे कहा था कि खाना मत खाओ, तुमने क्यों खाया?" तो मैंने महसूस किया कि गुरूजी वहां मेरे साथ मौजूद थे, मेरी रग-रग में समाये हुए थे और मेरी हर गतिविधि पर उनकी नज़र थी। उन्होंने मुझसे कहा था कि वह हर पल मेरे साथ हैं और वह हर पल मुझे देख रहे हैं कि मैं क्या कर रहा हूं।

 

सुरेंद्र तनेजा जी बहुत अच्छे इंसान हैं। उन्होंने गुरुदेव के साथ बहुत समय बिताया और उनके पसंदीदा लोगों में से एक थे। जब मैंने उन्हें पहली बार देखा, तो मुझे नहीं पता था कि वह कौन हैं, लेकिन मैं उनकी आध्यात्मिक आभा को महसूस कर सकता था। उस इंसान में कुछ ऐसा था जो मंत्रमुग्ध कर देने वाला था। उन्होंने मुझे बहुत थोड़े शब्दों में शराब छोड़ने के लिए प्रेरित किया। उनके मन में गुरुदेव के प्रति भरोसा कैसे जागा, इसकी भी एक कहानी है।

उनकी पत्नी शोभा जी इस विषय में बता रही हैं। 

 

सवालः  क्या आप जानती हैं कि सुरेंद्र जी का गुरुदेव के प्रति भरोसा कैसे बना, क्या उन्होंने आपको इसके बारे में बताया था?

शोभा तनेजाः  हां। गुरुजी मेरे घर आए थे। मेरे देवर उनके अनुयायी थे। तो, गुरुजी और माताजी मेरे घर आए थे। उन्होंने मेरी सास से अपने बेटे यानी मेरे पति को बुलाने के लिए कहा। लेकिन सुरेंद्र जी ने उनसे मिलने से इनकार कर दिया। तब गुरुजी ने कहा, "मैं भी तुम्हारे जैसा ही हूं"। वह भी हममें से बाक़ी लोगों की तरह ही पैंट और शर्ट पहनते थे। गुरुजी मेरे घर आए और उन्होंने सुरेंद्र जी से एकांत में बात की। क्या बात की केवल सुरेंद्र जी ही जानते थे। इसके बाद उन्होंने गुरुजी पर भरोसा करना शुरू कर दिया। गुरुदेव ने उनसे जो बात कही, वह मुझे या किसी को नहीं पता थी। सुरेंद्र जी ने यह बात केवल अपने तक ही रखी। लेकिन इसके बाद सुरेंद्र जी का गुरूजी पर विश्वास जम गया था। 

 

सुरेंद्र जी से हमारी बातचीत होती रहती थी। एक बार उन्होंने मुझसे कहा था कि उनका एक ख़तरनाक मिशन था जिसे वह पूरा करना चाहते थे।

गुरुदेव उनके घर आते थे,  उनके परिवार से अक्सर मिलते थे लेकिन सुरेंद्र जी महागुरु से बचते थे। मिलते नहीं थे। एक दिन गुरुदेव घर आए। और जब वे दोनों अकेले थे, तो गुरुदेव ने सुरेंद्र जी के मन में चल रहे मिशन का राज़ खोल दिया और उनसे अपने मिशन को पूरा न करने का अनुरोध किया। सुरेंद्र जी स्तब्ध थे। वह गुरुदेव के चरणों में गिर गये और उन्हें अपने गुरु के रूप में स्वीकार कर लिया। और निश्चित रूप से वह जो कुछ भी करना चाहते थे या करने की योजना बना रहे थे,  उससे किनारा कर लिया। 

गुरुदेव ने भले ही कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के बारे में कभी नहीं सुना हो, लेकिन वे निश्चित रूप से मायावी तकनीक को जानते थे, उसका उपयोग भी करते थे। 

जब एक शिष्य ने उनसे उसके ठिकाने के बारे में झूठ बोला,  तो गुरुदेव ने एक प्लास्टिक में लिपटा,  बिना खुला ऑडियो टेप निकाला  और उनके उस शिष्य और दूसरे शहर में रह रहे उसके दोस्त के बीच हुई बातचीत को उजागर कर दिया। एक पारलौकिक ध्वनि रिकॉर्डर जो एक बंद कैसेट पर ध्वनि को सुपरइम्पोज़ कर सकता है?

ऐसी तकनीक का अविष्कार होना बाक़ी है,  तो गुरुदेव ने 80 के दशक में ऐसा कैसे किया? मेरे पास कोई जवाब नहीं है,  लेकिन शिव का प्रतीक इंसान निश्चित रूप से बहुत कुछ कर सकता है।

ऐसा लगता है कि एक सर्वेयर के रूप में गुरुदेव की कार्यदक्षता भौतिक से पारलौकिक की ओर स्थानांतरित हो गई थी।

बलजीत जी गुरुदेव के सबसे समर्पित शिष्यों में से एक हैं। उन्हें नज़फ़गढ़ में समाधि के निर्माण का ज़िम्मा सौंपा गया था। इस समाधि पर वह पिछले 30 सालों से हर सुबह 5.30 बजे जाते हैं। वह निश्चय ही से इस स्थान की रीढ़ यानी महत्त्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं।

बलजीत जी एक शानदार कहानी साझा करते हैं कि कैसे गुरुदेव ने अपनी समाधि का स्थान निर्धारित किया। उनकी भावी समाधि कैसी होगी, क्या होगा,  उन्होंने स्वयं तय किया था। 

इस पूरी कहानी का एक अजीब पहलू यह है कि हज़ारों साल पहले भृगु संहिता लिखने वाले महर्षि भृगु ने अनुमान लगाया था कि गुरुदेव की समाधि कहां बनाई जाएगी। उन्होंने इसे हस्तिनापुर बताया था, जो आधुनिक समय के नज़फ़गढ़ का एक हिस्सा है।

 

बलजीत जीः  गुरुजी मुझे उस स्थान पर ले गए जहां कोई सीमांकन नहीं था, सभी भूखंड ख़ाली थे। पास में एक पाइप बनाने की फैक्ट्री थी और बड़े-बड़े पाइप उन प्लॉट पर छोड़ दिए गए थे। वहां 4 से 5 प्लॉट खाली थे। उन्होंने अपना पैर एक भूखंड पर रखा और कहा, "यहां एक स्थान का निर्माण किया जाना चाहिए।" यह आश्चर्य की बात है क्योंकि अगले दिन हमने उस भूखंड का सीमांकन करना शुरू कर दिया जहां गुरुजी ने अपना पैर रखा था और हमने वहां एक पत्थर को निशान के रूप में रख दिया था।  हमने अगले दिन पटवारी को बुलाया और भूखंड को चिह्नित करते समय हमने महसूस किया कि चिह्नों को ठीक उसी तरह से संरेखित किया गया था जहां गुरुजी ने अपना पैर रखा था और वर्तमान में जहां पर स्थान है। अगर उन्होंने अपना पैर एक इंच भी आगे रखा होता तो वह दूसरे प्लॉट में होता। कृपया समझें,  मुझे नहीं पता कि उन्होंने इसकी गणना कैसे की, उन्होंने अपना पैर ठीक उसी स्थान पर रखा जहां अब स्थान बनाया गया है, उस समय भूखंडों के बीच कोई सीमांकन नहीं हुआ था। गुरुजी ने कहा, "फ़क़ीर की कुटिया बनादे चिनाई करदे, हाले समय थोड़ा है। हमने सोचा कि जनवरी और फ़रवरी का महीना होने के कारण गुरुजी चाहते हैं कि शिवरात्रि से पहले इसका निर्माण हो, इसलिए शायद गुरुजी ऐसा कह रहे थे। समय कम था। इसलिए हमने निर्माण कार्य शुरू किया और 15 दिनों में हमने वहां दो कमरे बना लिए। फिर उन्होंने कहा, "चार दीवारें बनाओ।" हमने वैसा ही किया। फिर उन्होंने हमें नींव रखने को कहा। फिर उन्होंने कहा कि इसके चारों ओर हरियाली होनी चाहिए। उन्होंने कुछ बीज खरीदे थे, जिन्हें चारों ओर बिखेरने के लिए कहा। वे चरी के बीज थे, जिन्हें गायों को खिलाया जाता है। ये एक महीने के भीतर 6 फुट ऊंचे हो गए।

सवालः आपको नहीं पता था कि समाधि यहीं पर बनेगी?

बलजीत जीः नहीं, एक बार उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा और मुझे वहां पर ले गए जहां हम गाय को बांधते थे। उन्होंने कहा, "यहां, हम गुरु पूजा का चबूतरा बनाएंगे।" उस समय मैंने सोचा कि शायद वह यहीं बैठकर लोगों से मिलेंगे। लेकिन बाद में, गुरुजी के शरीर छोड़ने के बाद हमने वहां समाधि का निर्माण किया। तब मुझे समझ में आया कि गुरुजी किस चबूतरे की बात कर रहे थे।

 

हमारे साथ बातचीत करने वाले कई शिष्यों के साथ एक सामान्य अनुभव अदृश्य शक्तियों की उपस्थिति का था, जो हमारे साथ इंटरैक्ट करती थीं। यह आध्यात्मिक संतों की दिव्य उपस्थिति हो सकती है जो आपकी रक्षा और सहायता के लिए होती हैं, या यह हमारी अपनी विकसित आत्माएं हो सकती हैं या फिर दोनों भी हो सकती हैं।

लेकिन इस सिक्के का एक दूसरा पहलू भी था। अक्सर हमें जिन ऊर्जाओं से जूझना पड़ता था, वे नकारात्मक थीं। एक बार मेरी पत्नी के आग्रह पर मैं और वह वेनिस के एक प्रसिद्ध चर्च गए। इस दौरान मैं एक ऐसे मंच पर चल रहा था जो उसके नीचे वाले मंच से 5 फुट ऊंचा था। मुझे ऐसा लगा कि किसी अदृश्य ताकत ने मुझे धक्का दे दिया है और मैं लड़खड़ाकर नीचे गिर गया। मुझे किसी ताक़त ने कुछ मिलीसेकेंड के लिए घुमा दिया और मैं बाएं कंधे के बल पर गिर पड़ा। और उठा तो मुझे कोई चोट नहीं लगी थी। जिस ऊर्जा ने मुझे धक्का दिया वह चर्च से जुड़ी हुई कोई शक्तिशाली इकाई हो सकती थी या यह चर्च की ही सामूहिक ऊर्जा हो सकती थी।

यह असावधानी का मामला था। अगर मैं सजग रहता तो मैं अपने आप पर हमला करने वाली उस ऊर्जा की उपस्थिति को महसूस कर पाता। और मैं उस ताक़त का समय रहते शांत दिमाग़ से सामना भी कर पाता।  

मैंने कभी यह कल्पना नहीं की कि हम जैसे लोग आध्यात्मिक ऊर्जाओं के मन में असुरक्षा पैदा कर सकते हैं। लेकिन यह पहली बार नहीं था कि हमारी उपस्थिति से अन्य ऊर्जाओं को ख़तरा महसूस हुआ। काश वेटिकन चर्च की ऊर्जा यीशु के प्रति मेरे सच्चे सम्मान को महसूस कर पाती। मैं उन्हें  पिछले हज़ार सालों के दौरान अवतरित हुए महान संतों में से एक मानता हूं। 

नितिन गाडेकर ने अपना एक और अनुभव साझा किया। 

 

नितिन गाडेकर: एक विक्षिप्त क़िस्म की महिला थी. लगता था जैसे उस पर किसी बुरी शक्ति का साया था। एक दिन वह जब स्थान में आई बुरी तरह हिंसक हो उठी। आमतौर पर  मैं उसे समझा-बुझा कर शांत कर लेता था। जब वह क़तार में खड़े होकर इंतज़ार कर रही होती थी तो लोगों से बुरा सलूक़ करती थी। लेकिन जब मैं वहां जाता,  तो वह शांत हो जाती थी। लेकिन उस दिन वह आक्रामक मूड में दिख रही थी। पुंचू कमरे में आई  और सभी सेवादार खड़े हो गए। जैसे ही वह स्थान कक्ष में पहुंची, सभी ने सेवा बंद कर दी। मुझे पता नहीं क्या हुआ था, शायद पुंचू ने उसे कुछ कह दिया था। वह महिला गुस्से में पुंचू और मुझे मारने को तत्पर हुई। उसने हमें मारने के लिए हाथ उठाया ही था कि मानो जादू हो गया, किसी ने बहुत मज़बूती से उसका हाथ पकड़कर वापस खींच लिया। किसने, पता नहीं। मैं बताना चाहता हूं कि किसी अदृश्य शक्ति ने उसे पीछे धकेल दिया। यह देखना आश्चर्यजनक था। मुझे पक्का भरोसा है कि ऐसा करने वाला मैं तो नहीं था। (हंसी) इसलिए, मुझे यक़ीन है कि यह कोई शक्ति थी जो यह महान काम कर रही थी।

 

अपने चिड़चिड़े स्वभाव के लिए जाने जाने वाले अशोक भल्ला जी का अनुभव इसके ठीक विपरीत था। किसी ताक़त ने उन्हें अपने कारख़ाने में एक कर्मचारी पर हाथ उठाने से रोक दिया। 

इन दोनों मामलों में जिस शक्ति ने उन लोगों के इरादे को क्रिया में बदलने से रोका, वह निश्चित रूप से कोई आत्मा नहीं थी। यह उर्जा थी जिसकी अपनी ही चेतना थी और अपना ही उद्देश्य था।

यहां हम एक ऐसा मामला बता रहे हैं जो जागरूकता का नहीं, बल्कि उद्धव कीर्तिकर की ओर से पूरी तरह से असावधानी बरतने या अनभिज्ञ रहने का है।

उद्धव हमेशा गुरुदेव को ताना मारते थे कि वह उन्हें पर्याप्त आध्यात्मिक अनुभव नहीं दे रहे हैं। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि एक ताक़तवर,  मज़बूत,  सिक्स पैक पुलिस वाला वास्तव में एक आध्यात्मिक रूप से कमज़ोर रहा होगा? जब गुरुदेव ने उसे उपकृत किया, तो उद्धव कीर्तिकर पूरी तरह से बेख़बर पाए गए। 

उन्हें दर्शन देने के लिए उनके कमरे में दो त्रिकोण दाख़िल हुए। उनका आदर और स्वागत करने के बजाय, उन्होंने अपने नानचाकू से उन पर हमला करने की कोशिश की। उद्धव इस ज्यामितीय रचना की बेहद अजीब कहानी बता रहे हैं, इस तरह की कहानी आपने शायद कभी नहीं सुनी होगी।

 

सवालः  आपने कहा कि आप घर पर लेटे हुए थे। आप बहुत शरारती शिष्य थे और मुझे लगता है कि आपके अलावा बाक़ी सभी को पता था कि आपके बिस्तर के नीचे नानचाकू जैसे हथियार थे और आप इन हथियारों को चलाने में माहिर थे। आप एक अक्खड़ पुलिस अधिकारी थे और इसी तरह के कई लेबल आप पर लगे हुए थे। आपके साथ कुछ आश्चर्यजनक घटा और आपने अपने कमरे में त्रिकोण देखा। क्या आप हमें अपना अनुभव बताना चाहेंगे, क्योंकि यह श्रोताओं के लिए एक बड़े ज्ञान की बात होगी?

उद्धव जीः  शायद रात के करीब 9.30 बजे होंगे और मैं अपने कमरे में था। शायद 9.30 ही, इसका मतलब था कि बहुत देर नहीं हुई थी। मैं अपने बिस्तर पर बैठा ही था जब मैंने इन दो त्रिकोणों को देखा। मैं कैसे समझाऊं, ऐसा लग रहा था त्रिकोण आकार की काले रंग की वस्तुएं मेरी खिड़की से अंदर आ रही हैं। उसमें पीले रंग की आंखें दिखाई दे रही थीं। मैंने उनपर झपटने की कोशिश की। 

सवालः उन पर झपटने से आपका क्या मतलब है?

उद्धव जीः मैंने हाथ से उन्हें घूंसा मारने की कोशिश की।

सवालः जब आपने उन पर झपट्टा मारा तो क्या हुआ?

उद्धव जीः  मैंने बस घूंसा मारा। मैं निढाल हो गया। मैं अगली सुबह ही उठ पाया।

सवालः तो, जब आप उन पर झपटे, तो क्या आप बेहोश गए?

उद्धव जीः हां मैं बेहोश हो गया।

सवालः तो, आप बेहोश हो गए और आप नहीं देख पाए कि आपने उन्हें छुआ या नहीं?

उद्धव जीः इसके बारे में मुझे कुछ नहीं पता लेकिन फिर मैंने जो देखा वह गुरुजी को बताया। उन्होंने कहा, "तुम मेरे पीछे पड़े हुए थे कि मैं तुम्हारे पास आऊं और जब मैं आता हूं तो तुम मेरे साथ ऐसा करते हो!"

सवालः मारने वाला शिष्य।

उद्धव जीः और फिर वह कहते हैं, "अगली बार जब तुम्हें पता चले कि हम आए हैं, तो  हमें बैठने के लिए कहना।"

सवालः तो, दूसरी बार एक त्रिकोण था या दो?

उद्धव जीः  एक, एक, एक।

सवालः तो, एक त्रिकोण आया और वह पहले जैसा ही दिख रहा था?

उद्धव जीः  नहीं, उसकी आंखें सफ़ेद थीं। 

 

व्यक्तिगत रूप से  मुझे नहीं,  लेकिन स्वर्गीय बड़े जैन साहब को त्रिकोण के दर्शन हुए थे। उन्होंने इसे देवी या देवता का रूप माना। यही बात उद्धव के साथ हुई थी, फ़र्क इतना था कि वह पहचान नहीं पाए। समझ नहीं पाए कि उनके आस-पास क्या हो रहा है। और जब उन्हें पता चला और दूसरी बार त्रिकोण उन्हें दर्शन देने के लिए आए तो वह समझ ही नहीं पाए कि उनके साथ कैसा व्यवहार करना है। त्रिकोण शायद एक आध्यात्मिक शक्ति थी जो उन्हें लुभाने और प्रेरित करने के लिए आई थी और शायद इस विषय में उन्हें प्रोत्साहित किया। लेकिन उन्होंने बड़ी चूक कर दी!

इस तरह की घटनाएं आपको यह समझाने में मदद करती हैं कि अदृश्य चेतना कई प्रकार की होती है। वे आत्माएं हो सकती हैं जो आगे नहीं बढ़ पातीं और हमारे साथ वातावरण साझा करती हैं। वे हमें दी गई सुरक्षात्मक शक्तियां हो सकती हैं,  जो हमारे आने वाले ख़तरों को देखने में सक्षम होती हैं और हमारी रक्षा के लिए ठीक समय पर पहुंचती हैं। या यह हमारी अपनी ऊर्जा हो सकती है जो किसी ऐसे व्यक्ति के संरक्षण में विकसित हुई हो जो इतना उदार था कि उसने अपनी परम शक्ति को हमारे साथ साझा किया था!

अपने अध्यात्म जीवन की शुरुआत में, जब मैं थोड़ा शरारती था, मेरे एक गुरु-भाई ने मुझे कुछ आध्यात्मिक करतब सिखाए थे, जिसमें यह भी शामिल था कि दूसरों की आध्यात्मिक शक्ति को अपनी ओर किस तरह खींचा जाए। इनमें से किसी एक को लेकर भी मुझे कोई गर्व नहीं है। लेकिन पारदर्शिता को ध्यान में रखते हुए,  मैं आपको नाराज़ करने के बावजूद आपके साथ साझा कर रहा हूं। इनसे भी एक सबक़ सीखा जा सकता है, जैसे कि मैंने सीखा। 

आध्यात्मिक ईमानदारी का मार्ग कभी-कभी बेईमानी से शुरू हो सकता है।

के.सी.कपूर दिल्ली के एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी थे जिन्हें गुरुदेव ने सेवा दी थी। जब वह एक बार गुरुदेव का दर्शन करने आए, तो मैं उनके चरणों की शक्ति को चुम्बकित करने के लिए झुक गया। जब मैं ऐसा कर ही रहा था कि एक अदृश्य शक्ति ने मुझे कुछ फुट पीछे धकेल दिया। मैं लड़खड़ा गया और लगभग गिर पड़ा।

संदेश बिल्कुल साफ़ था।

80 के दशक की शुरुआत में रेणुका की एक अन्य घटना में मैंने एक मंदिर की शक्ति को चुम्बकित करने का प्रयास किया। इसके कारण मुझे महान, अमर परशुराम जी से दंड भी मिला।

मुझ पर अदृश्‍य किरणों का हमला हुआ, और जब मैंने दैदीप्यमान रेणुका देवी से मदद की गुहार लगाई तो उनकी कृपा से मुझे राहत मिली। रेणुका देवी मेरे मस्तक पर महान सौंदर्य के साथ प्रकट हुईं और जैसे ही उन्होंने अपना हाथ मेरे मस्तक पर रखा, वह  हमला बंद हो गया।

कैंप में लौटने के बाद गुरुदेव ने मुझे फटकार लगाई। मुझसे एक शब्द भी पूछे बिना मेरे साथ जो कुछ घटा, उसका ब्यौरा उन्होंने तफ़लीस से सुना दिया। मुझे लगता है वह मितभाषी थे और इसीलिए उनका रवैया ‘आप भले न पूछें, पर मैं जवाब देता हूं’ वाला होता था।

गुरुदेव के लिए कुछ भी जानना असंभव नहीं था। इसको लेकर उनकी अनेक कहानियां प्रचलित हैं। ज़रा कल्पना करें कि गुरुदेव एक ऐसे महात्मा से मिलने के लिए जा रहे हैं जो सिर्फ इसलिए एक सांप के रूप में ध्यान कर रहा था क्योंकि उसकी मोक्षप्राप्ति का समय आ गया था। आख़िर कोई यह कैसे जान सकता है कि किस जगह पर जाना है और उस महात्मा को कैसे खोजना है?

मुझे नहीं लगता कि ऐसे सवाल उनके व्यवहार के लिए प्रासंगिक थे। केवल जवाब प्रासंगिक थे। यहां पप्पू पहाड़िया से एक अनुभव सुनिए। 

 

पप्पू जीः एक महात्मा थे जिन्होंने सर्प का रूप धारण किया था और कई वर्षों से ध्यान कर रहे थे।

सवालः सर्प के रूप में?

पप्पू जीः हां। उन्होंने नाग का रूप धारण कर लिया था। एक शाम, गुरुजी ने हमें तैयार होने के लिए कहा क्योंकि हम उनके साथ 'सांगलो वाले बाबा' से मिलने वाले थे। उन्होंने कहा, 'वह मेरा इंतज़ार कर रहे हैं। चलो उनका कल्याण करें।"

यात्रा के दौरान हम बच्चे गुरुजी के आगे-आगे दौड़ रहे थे। हम एक छोटे-से पुल से गुज़र रहे थे कि पुल के बीचोबीच एक बहुत बड़ा, मोटा सांप दिखाई दिया। डर के मारे  हम अपने पीछे चल रहे गुरुजी, मेरे माता,-पिता और चिरंजी लाल की ओर उल्टे पांव दौड़ पड़े। उन्होंने हमसे पूछा "क्या हुआ? तुम सब क्यों डरे हुए हो?" हमने कहा, “आगे एक बड़ा मोटा सांप है। वह उस जगह से नहीं हिल रहा है और हमारा रास्ता रोक रहा है।"

यह सुनते ही गुरुजी सर्प के पास गए और बोले, "तुम्हारा समय समाप्त हो गया है और इसलिए मैं तुम्हारे पास आया हूं।" उन्होंने सांप से यह भी कहा कि अगर वह चाहता है तो वह उन्हें अपना अंतिम सम्मान देकर शांति से निकल सकता है। यह सुनकर सर्प गुरुजी के पास पहुंचा, अपना फन फैलाया और उसे ऐसे नीचे झुकाया जैसे कि वह उन्हें अपना सम्मान दे रहा हो और वहां एकत्रित सभी लोगों को अंतिम दर्शन देकर उसी रास्ते से लौट गया, जहां से वह आया था। गुरुजी ने बाद में हमें बताया कि यह महात्मा जंगल में 150 से अधिक वर्षों से ध्यान कर रहे थे और आज, उन्हें अंततः इस विशेष अवतार से मुक्त कर दिया गया था।

 

मैं यह दावा नहीं कर रहा हूं कि इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ हो कि किसी व्यक्ति की पूजा मनुष्य, पशु और आत्माओं द्वारा समान रूप से की गई हो। उन्होंने सभी जीवन रूपों को अपने विस्तार के रूप में माना,  इसलिए मुझे लगता है कि यह उनकी सेवा के बदले में मिला हुआ लाभ था।

शिमला में एक स्थान चलाने वाले बख्शी जी ने गुरुदेव से मिलने के लिए रेणुका के कुछ दौरे किए। इन्हीं यात्राओं के दौरान एक विचित्र घटना घटी। हमने सोचा कि आप इसे सुनना पसंद करेंगे।

 

बख्शी जीः मैं शिमला से रेणुका स्थान तीन-चार बार जा चुका हूं। एक बार हमें पता चला कि गुरुजी मुझसे और मेरी पत्नी से मिलना चाहते हैं। तो उस दिन उन्होंने मुझे मेरी पत्नी को भी साथ लाने के लिए कहा था। रेणुका का चक्कर लगाकर घर लौटने के बाद हम खाना खा रहे थे। तब तक हमने देखा कि हमारे ठीक सामने एक सर्प था। मेरी पत्नी ने गुरुजी से कहा "गुरुजी, आपके गहने पड़े हैं। आप तो शिवजी का रूप हैं तो इनको संभालो। ” गुरुजी ने मुझे दूर भगाने के लिए कहा। उन्होंने जैसा कहा, मैंने वैसा ही किया। कुछ देर बाद सांप वापस आ गया। फिर से मैंने उसे भगाया। तीसरी बार जब मैंने उसे हटाने की कोशिश की तो उसने अपना फन उठा लिया। वह एक कोबरा था। तो गुरुजी ने कहा, "बख्शी, चूंकि इस सांप ने तुम्हारे सामने अपना फन फैलाया है, तुम उसे मार डालो।" 

एक खेत में जाकर गुरुजी के कहे अनुसार मैंने उसे मार डाला। हमारा काम मारना नहीं है। लेकिन चूंकि मुझे इसे मारने का निर्देश दिया गया था, मुझे लगा कि इसे मुक्ति मिल जाएगी। गुरुजी ने कहा चलो उसे दफ़ना देते हैं। गुरुजी मेरे साथ गए और एक कोने में केले का पेड़ था, मैंने वहां एक गड्ढा खोदा। सांप के शरीर को लपेटने के लिए कोई कपड़ा नहीं था इसलिए गुरुजी ने अपना रूमाल दिया। मैंने उसके शरीर को उस रूमाल में लपेट दिया और रसोई से लाकर उस पर नमक भी डाल दिया। बाद में उसे दफ़ना दिया गया। 

उसी दिन सुबह नाहन से एक पति-पत्नी गुरुजी से मिलने आए। वे- गुरुजी, गुरुजी, गुरुजी की पुकार लगा रहे थे-तो मैं और मेरी पत्नी ने बाहर निकलकर देखा कि कौन आया है। मैंने पूछा वे क्या चाहते हैं। उन्होंने कहा कि वे गुरुजी से मिलना चाहते हैं। मैंने कहा कि गुरूजी अपना पाठ करने में व्यस्त हैं। लेकिन वे ज़िद करते हुए कहने लगे कि वे बड़ी उम्मीदों के साथ आए हैं। हमारी आवाज़ सुनकर गुरुजी उनसे मिलने के लिए बाहर आए।

उन्होंने उनसे पूछा कि उनकी क्या समस्या है। उन्होंने कहा, "हमें संतान संबंधी समस्या है।" गुरुजी सोचने लगे। उन्होंने कहा, "ठीक है, देखते हैं।" तब गुरुजी ने उन्हें शिवरात्रि पर गुड़गांव में उनसे मिलने आने के लिए कहा। वे शिवरात्रि पर उनसे मिलने आए और गुरुजी ने उन्हें आश्वासन दिया कि उनको एक संतान प्राप्त होगी। अगली शिवरात्रि में वे फिर आये तो गुरुजी ने मुझे अंदर बुलाया। उन्होंने कहा, "बख्शी, क्या आप उन्हें पहचानते हैं?" मैंने कहा, "हां।" गुरुजी ने कहा, “देखो,  वे अपने साथ बच्चा लेकर आए हैं।" बच्चे को देखकर मैंने उसे अपनी बांहों में उठा लिया और कहा “क्या बात है। क्या बात है।" गुरुजी ने कहा "ध्यान से देखो"। मैंने उसे पीछे की ओर घुमाया और उसका कपड़ा थोड़ा सा हटा दिया और मैंने देखा कि जिस सांप को मैंने मारा था, वह उसके शरीर पर दिखाई दे रहा था। गुरुजी ने कहा, "क्या तुमने पहचाना है कि यह कौन है?" इसका मतलब है कि जिस समय सांप की मुक्ति हुई, उसी समय इस जोड़े को संतान का आशीर्वाद मिला। यह चमत्कार ही है। बहुत बड़ी बात है।

 

आगे, एक ऐसी घटना है जिसे मैं अपने जीवन की सबसे दिलचस्प कहानियों में से एक मानता हूं। मैं इसका गवाह और खोजी दोनों हूं।

एक ऐसे योगी की कहानी जिसने गुरुदेव की मदद से जन्म लिया और एक व्यापारी बन गया। 

कहानी सुना रही हैं योगी की मां, महान सुरेंद्र तनेजा की पत्नी शोभा जी। 

 

शोभा तनेजा: गुरुजी बथरी में थे और हम डलहौज़ी में। आप भी हमारे साथ थे जब हम डलहौज़ी में सोने जाते थे। आप तो जानते हैं। गुरूजी ने हमें बथरी में नहीं रहने दिया। इसलिए, जब हम वैन से बथरी जा रहे थे, तो मुझे नींद आ गई और मुझे एक सपना आया। मैंने छड़ी पकड़े एक सुदर्शन बुज़ुर्ग को देखा। उन्होंने मुझसे कहा, "मैं तुम्हारे घर में जन्म लेना चाहता हूं"। मैंने मना किया। मैंने कहा कि मेरे बच्चे बड़े हो गए हैं। उसने कहा, "नहीं बेटी, मेरे पोते-पोतियां हैं। मैं तुम्हारे ही घर में जन्म लेना चाहता हूं।" मैंने ज़ोर देकर कहा कि वह कहीं और चले जाएं क्योंकि मैं इसके लिए तैयार नहीं हूं। उन्होंने कहा, "आप गुरुजी के क़रीब हैं, इसलिए मैं आपके घर में जन्म लेना चाहता हूं।" उन्होंने आगे कहा, "मैं आपके गुरु का मान बढ़ाऊंगा। आपके पुत्र के रूप में मैं आपको गौरवान्वित करूंगा। मैं बहुत कुछ करूंगा; मैं सबका सम्मान करूंगा।'' फिर भी मैं नहीं मानी।  मैं गुरुजी के पास गयी, लेकिन मैंने गुरुजी को ये बातें नहीं बताईं। गुरुजी ने अगले दिन मुझे वहीं सोने को कहा और स्थान पर ज्योत जलाने के लिए कहा। मैंने ज्योत जलाई और घर आ गयी। 

घर आने के बाद,  मैंने कभी अपने पीरियड्स की परवाह नहीं की। जब मैंने अपनी गर्भावस्था का खुद ही परीक्षण किया, तो यह पॉज़ीटिव निकला। जिसके बाद हम गुरुजी के गुड़गांव ऑफ़िस गए, जहां गुरुजी ने मुझसे पूछा, "बेटी, क्या तुम किसी बूढ़े आदमी से मिली हो?" मैने हां कह दिया। मैंने कहा "गुरुजी मुझे बच्चा नहीं चाहिए। मेरे बच्चे बड़े हो गए हैं।" लेकिन गुरुजी ने कहा, "वह तुम्हारे घर आना चाहता है, इसलिए बच्चे को रखो।" मैंने कहा "गुरुजी मुझे शर्मिंदगी महसूस होगी क्योंकि मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं।" उन्होंने कहा, "तुम्हारी गर्भावस्था के बारे में किसी को पता नहीं चलेगा।" किसी को नहीं पता था कि मैं प्रेग्नेंट हूं। और अभय का जन्म शिवरात्रि के एक दिन बाद हुआ।

 

शोभा जी को शायद यह नहीं पता होगा कि हिमाचल इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के गेस्ट हाउस की संपत्ति का चौकीदार अक्सर इस योगी को अपने सपनों में देखता था। वह बूढ़े योगी से डरता था और वो जो कहते थे वो सारे काम करता था। वॉचमैन ने बताया कि कई मौक़ों पर जब इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड के अधिकारी बहुत अधिक शराब पी लेते थे, तो उन्हें महसूस होता था कि कोई अदृश्य शक्ति उनका गला दबा रही है। ज़्यादातर लोग अपना बैग पैक करके गांव के गेस्टहाउस में रहने के लिए चले जाते थे। यह सामान्य घटना थी और जिस गेस्ट हाउस में गुरुदेव और हम रह रहे थे,  उसे भूतिया का ख़िताब दे दिया गया था। 

योगी ने अपनी एक बातचीत में चौकीदार से कहा था कि उसने गुरुदेव के आने और आध्यात्मिक घर में उसे पुनर्जन्म लेने के लिए सौ साल तक इंतज़ार किया था। सुबह साढ़े पांच बजे जब मैंने सुरेंद्र जी और शोभा जी को इस मामले पर चर्चा करते हुए सुना तो मेरे मन में कई सवाल उठे। जब मैं घंटों बाद गुरुदेव से मिला,  तो उन्होंने बस इतना कहा कि वह योगी को शोभा जी के गर्भ में जन्म देंगे। मुझे लगता है कि एक रात पहले मैंने चौकीदार के साथ जो जांच-पड़ताल की थी, उसके बारे में गुरुदेव को पता था। 

कपिल रुद्र, जिन्हें प्यार से निक्कू जी कहते थे, माताजी के भतीजे थे और गुरुदेव उनके माता-पिता की अनुमति से उन्हें लुधियाना से अपने पास ले आए थे। 

वह स्थान पर रहते थे और उन चार मसखरों में से एक थे, जो गुरुदेव और उनसे मिलने आने वाले आगंतुकों की देखभाल करते थे।

 

निक्कू जीः  मैं गुरुजी के साथ बैठा था। उस दिन वह दोपहर को जल्दी घर आ गए थे। उनका पाठ हो चुका था। वह बैठे था और चाय तैयार हो रही थी। जब हम बात कर रहे थे, गुरुदेव ने देखा कि एक आदमी खिड़की के पास से गुज़र रहा है। गुरुजी ने मुझसे कहा, "जाओ और उस आदमी को बुलाओ, मैं आज तुम्हें कुछ दिखाऊंगा।"

मैंने बाहर जाकर उस आदमी से कहा ,"आइए, गुरुजी आपसे मिलना चाहते हैं।" वह स्थान पर सिर नवाकर जाने ही वाला था। वह बहुत ख़ुश था क्योंकि उसे गुरुजी से मिलने का मौक़ा मिल रहा था। वह आदमी अंदर आया और गुरुजी के सामने सिर झुकाकर बैठ गया। गुरुजी ने उससे पूछा "ठीक है, उसे अभी बुलाओ?" उस आदमी ने अपनी अंगूठियां और कलाई की जंज़ीर निकालकर गुरुजी के बिस्तर के पास रख दी। अपनी उंगलियों को हवा में हिलाया, अपना सिर घुमाया और अचानक आत्मा बाहर आ गई। गुरुजी ने उससे पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है?" उसने कहा, "हरि राम चूड़ा"। मैं यह सुनकर चौंक गया क्योंकि यह तो उसका नाम नहीं था लेकिन तब मुझे पता चला कि आत्मा गुरुजी से बात कर रही थी। गुरुजी ने पूछा, "आप उनसे कहां मिले थे?" उसने कहा, 'मैं उनसे निगमबोध घाट पर मिला था। मैंने उसे वहीं पकड़ लिया।" गुरुजी ने पूछा, "तुमने उसे निगमबोध घाट पर कैसे पकड़ा?" उसने कहा, “शाम को वह वहां आया था और एक पेड़ के नीचे पेशाब कर रहा था। वहां मैंने उसे पकड़ लिया।"

मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं क्योंकि गुरुजी भी कहते थे कि शाम को किसी को भी पेड़ के नीचे पेशाब नहीं करना चाहिए।

तब गुरुजी ने उससे कहा "अब तुम उसे छोड़ दो"। उसने कहा, "ठीक है, मैं उसे छोड़ दूंगा।" वह गुरुजी को घूर रहा था, सोच रहा था कि शायद वह कुछ कहेंगे। फिर उसने कहा, "मैं इस आदमी को एक शर्त पर छोड़कर जाऊंगा?" गुरुजी ने उससे पूछा कि क्या शर्त है। उसने कहा "मैं उसे तभी छोड़ूंगा जब आप मुझे फिर से जन्म देंगे"। गुरुजी मुस्कुराए और कहा, "हम देखेंगे"। एक सेकेण्ड में ही आत्मा उस व्यक्ति के शरीर से निकल गई और फिर उस व्यक्ति ने अपनी सारी अंगूठियां और चेन,घड़ी वग़ैरह पहन ली।  गुरुजी से आशीर्वाद लेकर निकल गया। 

सवालः वहां रहते हुएऐसे आत्मा द्वारा पकड़ने वाले कितने मामले आपके सामने आए थे, हालांकि आप वहां पूरे समय नहीं रहते थे?

निक्कू जीः मैं आपको एक और घटना बताता हूं। बड़ा गुरुवार के अलावा गुरुजी हर दूसरे रविवार को लोगों से मिलते थे। एक बार जब वह लोगों से मिल रहे थे, तो मैंने देखा कि गुरुजी दीवान के सामने किसी से बात कर रहे थे। मैं उस रास्ते से गुज़र रहा था, तो उत्सुकतावश मैं रुककर देखने लगा और उनसे पूछा कि वह किससे बात कर रहे हैं? वहां पर एक बुज़ुर्ग जोड़ा था जो शायद पंजाब से उनसे मिलने आया था। उन्होंने पूछा "हां भाई तू कैसे आया?" उसने उत्तर दिया, "मैं आपसे बात करने आया हूं।" गुरुजी ने पूछा, "बाक़ी कहां हैं?" उसने कहा कि बाक़ी नहीं आ सकते। तो गुरुजी हंसने लगे। उन्होंने पूछा, "बाक़ी कहां गए"? उसने कहा, "आपने गुड़गांव के पास कील लगा दी है इसलिए वे उस सीमा को पार नहीं कर सके।" गुरुजी ने उससे पूछा कि वे कितने हैं। पंजाबी में उसने कहा "असी तो बहुत सारे हैं।" फिर गुरुजी ने उससे पूछा "ठीक है तो तुम मुझे क्या बताना चाहते थे?" उसने कहा, "आप हमें जीवन बख्श दो।" गुरुजी ने उसे उस आदमी को छोड़ने के लिए कहा। उसने कहा, "मैं उसे छोड़ दूंगा लेकिन आप हमें फिर से जन्म दो"। गुरुजी ने कहा, "तुम बहुत सारे लोग हो। इतने लोगों को फिर से जन्म देना कैसे संभव है?" उसने कहा, "यही हमारी एकमात्र शर्त है, यही वजह है कि हमने उसे पकड़ लिया है। हम आपसे मिलना चाहते थे और हम चाहते हैं कि आपके आशीर्वाद से हमें पुनर्जन्म मिल जाए।''।

 

मानव जाति के इतिहास में आपने ऐसे कितने लोगों के बारे में सुना है जिनके पास आत्माएं और संत पुनर्जन्म की भीख मांगने जाती हैं?

अपनी बात समाप्त करते हुए  मैं कहता हूं कि यहां एक इंसान था जो चेतना के एक बिल्कुल ही अलग स्तर पर रहता था। यह इंसान भूत, वर्तमान और भविष्य देख सकता था, शक्तिशाली ताक़तों में फेर-बदल कर सकता था और ऐसे काम कर सकता था जिन्हें अधिकांश लोग असंभव समझते है।

अलौकिक व्यक्तियों का जीवन और क्षमताएं लोगों को असामान्य लग सकती हैं। लेकिन उन्नत इंसानों के लिए वे दुनियावी हैं। 

यह क्षमताओं की बात है।

महागुरु का उदाहरण सभी के लिए एक कसौटी होना चाहिए कि कुछ भी असंभव नहीं है। 

शक्ति और प्रभाव ही व्यक्ति-व्यक्ति में अंतर पैदा करता है। 

संदेह के बजाय, यह विश्वास कारगर होता है कि अगर एक कर सकता है, तो दूसरों को भी करना चाहिए।  

मैं इस पॉडकास्ट को एक शेर के साथ समाप्त करता हूं जो गुरुदेव का अनोखा नजरिया कुछ यूं बयां करता है,

उम्र भर उठाया बोझ उस कील ने

उम्र भर उठाया बोझ उस कील ने

और लोग तारीफ़ तस्वीर की करते रहे

और लोग तारीफ़ तस्वीर की करते रहे।