The Guru of Gurus - Audio Biography

गुरुदेव: स्वयं शिव

November 12, 2021 Gurudev: The Guru of Gurus
The Guru of Gurus - Audio Biography
गुरुदेव: स्वयं शिव
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जब गुरुदेव की चेतना शिवभावना के स्तर तक पहुँची तो वे चलता-फिरता शिवालय बन गए।

गुरुदेव ऑनलाइन गुरुओं के गुरु - महागुरु की ऑडियो बायोग्राफी प्रस्तुत करता है।

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जब गुरुदेव की चेतना शिव चेतना के स्तर पर पहुंच गई,  तो उनके साथ,   उनके ज़रिये, उनके द्वारा, बहुत कुछ घटित हुआ। वे चलते-बोलते शिवालय बन गए। आइए इस अवधारणा को समझें...

 गुरुदेव: स्वयं शिव

शिव क्या है - इसका जवाब बड़ा मुश्किल है। आम इंसान शिव को मानव रूप में सोचता है। वोशिव को एक ऐसे इंसान के रूप में देखता है जो कैलाश या अमरनाथ या फिर केदारनाथ पर्वत पर रहते हैं। शिव को 108 पत्नियों  या पत्नीस्वरूपों और दो पुत्रों वाला माना जाता है। एक पुत्र गणपति और दूसरा कार्तिकेय। 

जिस जीव में शिव चेतना पूर्ण रूप से प्रकट हो जाती है,  उसका प्रकट रूप शंकर कहलाता है।

मेरा व्यक्तिगत विश्वास है कि शिव एक निराकार अवधारणा है - एक ऐसी अवधारणा जो चेतना के एक विशेष स्तर पर पहुंचकर जीवंत हो जाती है। यह चेतना के निचले स्तर पर निष्क्रिय रहती है। हर इंसान के पास इस स्तर तक पहुंचने की क़ाबिलियत होती है, लेकिन कम ही लोग ऐसा कर पाते हैं।

गुरू वशिष्ठ शिव को शक्ति की सक्रियता का साधन बताते हैं। शिव स्थिर हैं, जबकि शक्ति गतिशील ऊर्जा है। चेतना के उच्चतम स्तर पर,  शिव और शक्ति एक हो जाते हैं। 

जब कुंडलिनी आज्ञा चक्र या तीसरी आंख से आगे बढ़ जाती है, तब वह व्यक्ति शिव चेतना के योग्य हो जाता है। जब कुंडलिनी माथे के चक्र से और भी आगे बढ़ती है,  तो इंसान शिव चेतना के और भी महीन स्तर तक पहुंच जाता है, और ऐसा लगातार चलता है। यह बात न केवल हिंदुओं पर, बल्कि सभी होमोसैपियंस पर लागू होती है।

मेरी समझ में, प्राचीन भारतीय दर्शन में जिस शब्द को सबसे ग़लत तरीक़े से समझा गया है - वह है शिव की अवधारणा। 

बहरहाल,  शिव के प्रतीकों को प्राप्त करना परमशिव या शंकर के रूप में होने की योग्यता दर्शाता है।

गुरुदेव की हथेलियों पर ओम,  त्रिशूल,  शिवलिंग,  गिलेरी,  गणपति,  नंदी और ज्योत के बहुत साफ़, ज़ाहिर, उभरे हुए निशान थे। उनकी छाती और पीठ पर ओम और उनके पैरों पर भी कुछ चिह्न थे।

हर चिह्न के साथ इसके इस्तेमाल की योग्यता भी आती है।

ओम - तीन लोकों के समूह - स्वर्ग और उस से ऊचे लोक, पृथ्वी लोक और नर्क लोक के साथ जुड़ाव और उन पर प्रभाव के बारे में बताता है।  

त्रिशूल - शक्ति की वृद्धि और इसे उपचार और आत्म-संरक्षण के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग करने की क्षमता का प्रतीक है।

नंदी - शिव तत्व के साथ अटूट दृढ़ता और वफादारी का प्रतीक है।

शिवलिंग और गिलेरी - अचेतन स्तर पर द्वैत पर काबू पाने और शिव-शक्ति सिद्धांत का तालमेल दर्शाते हैं। आसान शब्दों में कहें तो अर्ध- नारी- नरेश्वर रूप की प्राप्ति।

गणपति - का अर्थ है त्रिदेव को पार करके गुरु तत्व या पारब्रह्म तक पहुंचने की क्षमता। इसे ओम चिह्न के अंतिम भाग सूंड से दर्शाया गया है। साथ ही यह गणपति का चिह्न शिव, शक्ति और गणपति की शक्ति का उपयोग करने की क्षमता भी प्रदान करता है। गणपति वह तीसरी ऊर्जा है जो शिव और शक्ति के मिलाप से साकार होती है। 

ज्योत - अग्नि तत्व पर नियंत्रण दर्शाता है,  मुख्य रूप से जीवात्मा का विकिरण।

शिवलिंग से लिपटे नाग - जब और जहाँ भी आवश्यक हो,  मदद,  रक्षा और बचाव के लिए शक्ति का उपयोग करने की क्षमता को दर्शाता है।

मसला ये है कि ये सभी चिह्न पाने वाले को योग्य तो बनाते हैं, लेकिन सचेतन स्तर पर नहीं। हम में से बहुत से लोग वाक़ई ये नहीं जानते कि हम चेतन के स्तर पर मिली सिद्धियों का आकलन कैसे करें। जबकि गुरुदेव ऐसा करना जानते थे।

आगे उन लोगों के शब्दों में गुरुदेव की स्तुति की जा रही है, जिन लोगों ने गुरुदेव के सान्निध्य में वक़्त गुज़ारा है। आइए सुनें ये लोग उनके बारे में क्या कहते हैं!


मुंबई के एक शरारती शिष्य गिरि लालवानी ने गुरुदेव के साथ बहुत वक़्त गुज़ारा। उन्हें 80 के दशक की शुरुआत में महागुरू से हुई पहली मुलाक़ात याद है। 

गिरि जी: गुरुजी मुंबई आए थे। मैं, श्याम दुमटकर और मेरे गुरु भाई श्री कृष्ण-हम तीनों गुरुजी से मिलने के लिए गए और जब मैंने उन्हें देखा तो उनसे नमस्ते तक नहीं की। मैंने उनके पैर भी नहीं छुए। किसी तरह का अभिवादन नहीं किया। फिर भी उन्होंने हमारा स्वागत किया। मैं उनके पास गया। उन्होंने अपने हाथ पर कुछ दिखाया, लेकिन मैं समझ नहीं पाया कि वे क्या दिखा रहे थे। उन्होंने अपना सीधा हाथ दिखाते हुए कहा, "यह ओम है, यह त्रिशूल है, यह गणपति है, यह शिवलिंग है।" उन्होंने कहा, "बेटा, क्या तुम इसे नहीं देख पा रहे हो?" मैंने कहा, "नहीं, मैं इसे नहीं देख पा रहा हूं।" उन्होंने मुझे फिर से दिखाया। तब मैंने गणपति जी को देखा और…

सवाल: क्या आपने उनके हाथ पर सभी चिह्न देखे?

गिरि जी: जी, उनके सीधे हाथ पर। अपने बाएं हाथ पर उन्होंने मुझे एक ज्योत दिखाई।

सवाल: जब आप कहते हैं कि उन्होंने दिखाया, तो वह कैसा था?

गिरि जी: वो कुछ ऐसा था....

सवाल: क्या वे नसें, नाड़ियां थीं?

गिरि जी: वह कुछ उकेरा हुआ सा था। एक उभरी हुई चीज़ जैसा। सपाट नहीं था।  

सवाल: तो, आपने देखा कि उनके हाथ के ऊपर कुछ उभर रहा है?

गिरि जी: जी हां, उनके हाथ से कुछ निकलता हुआ दिख रहा था। मानो उनके हाथ पर टीले उभरे हुए हों। ये गणपति जी, शिवलिंग, त्रिशूल और ओम के आकार थे। और उनके बायें हाथ पर मैंने ज्योत को बाहर आते देखा। वह हाथ के लेवल से उठी हुई थी। 

सवाल: जब गुरुदेव ने आपको ये सब दिखाया, तो क्या वे सभी एक दूसरे से स्पष्ट रूप से अलग-अलग थे या वे सभी एक ही हाथ में, एक साथ थे?

गिरि जी: नहीं, नहीं, वे सभी एक दूसरे से बिल्कुल अलग थे। जैसे बायें हाथ में ज्योत थी, वैसे ही ओम भी बाएं हाथ में था। शिवलिंग और गिलेरी दाएं हाथ में थे और गणपति बाएं हाथ में। 

 

उनके हाथों में शिवालय की आकृति को एक लाख से अधिक लोगों ने देखा है। मैंने 1977 में उनके हाथों पर ओम देखा था, लेकिन मैं इससे प्रभावित नहीं हुआ था। उस उम्र में इन बातों का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ था। लेकिन बाद में जब मैंने इस विषय का गहन अध्ययन किया और इसका विश्लेषण किया,  तो मैं हैरान रह गया।

आने वाले सालों में, गुरुदेव ने मुझे मेरे हाथों पर ये आकृतियां दिखाईं और कहा कि मैं इन्हें दूसरों के साथ साझा कर सकता हूं। उन्होंने यह बात इशारों में कही थी, और मैंने वैसा किया। 

गुरुदेव के जितने भी चिह्न थे, उनमें से अधिकतर संतोष जी को उपहार में मिले हैं। एक विनम्र व्यक्ति होने के नाते, वह आने वाले प्रश्न का उत्तर देने में थोड़ा शर्मा रहे थे।  

 

 

सवाल: संतोष जी, गुरुदेव के हाथों में कई शक्तियां थीं जो उन्होंने अपने कई शिष्यों, अपने बच्चों को दीं? उन्होंने आपके हाथों पर क्या चिह्न दिए?

संतोष जी : गुरुदेव हमें उनके हाथों पर बने ओम दिखाया करते थे। बायां हाथ, जो शक्ति का है, उनके उस हाथ पर त्रिशूल (शक्ति का प्रतीक) बना हुआ था, उसके साथ ज्योति और एक तरफ़ मुंह किए हुए गणपति जी का चिह्न था। दायीं हथेली पर, जो भगवान शंकर का हाथ है, बीचों बीच एक चमकदार सफेद रंग का ओम का चिह्न था और दायीं ओर शिवलिंग बना हुआ था। इसके साथ ही लाल रंग के ओम और नंदी बैल के सींगों वाला शिवलिंग का चिह्न भी था। और चेहरा वैसा ही था, जैसा गुरूजी हमें दिखाते थे।

 

आगे है एक सरल और प्यारी-सी कहानी जो गुरुदेव की बहन ने बताई है। दूसरे लोगों की कहानियों के ज़रिये अपने भाई की महानता को जानना परिवार के लिए काफी अजीब अनुभव हो सकता है। शरारती मेशी इस बात को साबित करना चाहती हैं कि उन्होंने न केवल कई ओम देखे, बल्कि भाई के दायें हाथ में नाग भी देखा।

 

गुरुदेव की बहन: किसी ने मुझसे कहा कि गुरुजी की पीठ पर ओम हैआप इसे उनकी बनियान के ऊपर से देख सकते हैं। हमारे घर में एक हैंड पंप था। मैं बच्ची थी और मैं इसे देखना चाहती थी। तो, मैंने हैंड पंप को चलाना शुरू किया और उनसे कहा, "पापाजी, आज आपके नहाते समय क्या मैं हैंडपंप चला सकती हूं?"वह राज़ी हो गए। वह बनियान पहनकर नहाया करते थे। जब वह पंप के नीचे बैठे, मैंने उनके शरीर पर पानी डाला। जैसे ही मैंने उनकी पीठ की ओर देखा, मुझे उनकी बनियान के अंदर से पीठ पर एक बड़ा सा ओम दिखाई दिया। फिर मैंने कहा, "पापाजी, मुझे आपकी पीठ पर ओम दिखाई दे रहा है।" उन्होंने पूछा, "तुमने इसे कैसे देखा?" मैंने कहा, "मैं इसे आपकी बनियान से देख सकती हूं।"उन्होंने कहा, "हां बेटा,है।" मैंने कहा,"पापाजी,एक नाग भी है।" उन्होंने कहा, "तुमने इसे कहां देखा।"तो, मैंने बता दिया। मैंने कहा, "पापाजी, मेरी आंखों में दर्द हो रहा है, मैं देख नहीं सकती। "फिर, गुरुजी ने अपने हाथ साफ किए और फिर पूछा, "अब, क्या तुम यहां ओम देख सकती हो?"मैंने झूठ बोला, "नहीं, मैं नहीं देख पा रही।" उन्होंने फिर से अपने हाथ साफ़ किए और कहा, "यहां देखो, क्या तुम यहां ओम देख पा रही हो।" मैंने कहा "पापाजी, यह तो एक बड़ा-सा ओम है।"

 

बिट्टू जी को गुरुदेव ने अपने दत्तक पुत्र की तरह माना। उन्होंने अपनी किशोरावस्था से ही न केवल स्थान पर सेवा की,  बल्कि दशकों तक समर्पित रूप से गुरुदेव की सेवा भी की।

 

बिट्टू जी :गुरुदेव किसी के सामने नहीं नहाते थे।नहाते समय वे अपना पूरा शरीर ढांक कर रखते थे। गुरुजी की कृपा और आशीर्वाद से मैंने देखा कि रेणुका में गुरुजी ने अपनी बनियान उतारकर बहते हुए पानी में स्नान किया। मैंने उनकी पीठ और सीने को देखा। दोनों ही जगह पर बीचोंबीच मैंने ओम देखा। मुझे नहीं पता कि  और लोगों ने देखा या नहीं, लेकिन उनके आशीर्वाद से मैं देख पाया। 

 

गुलाब सिंह राणा का गुरुदेव के घर के पास में सैलून था। वह अक्सर गुरुदेव के बाल काटते थे और उनकी मालिश भी करते थे। वे भी उनके शरीर पर ओम देखने का दावा करते हैं। 

 

सवाल : मैं श्री गुलाब सिंह राणा से बातचीत कर रहा हूं। गुरुदेव उनसे ही बाल कटवाना पसंद करते थे और गुरुदेव के घर के बिल्कुल पास ही गुलाब जी का छोटा सा, अच्छा सैलून है। तो, गुलाब जी, आप बहुत भाग्यशाली हैं कि गुरुदेव केवल आपसे ही अपने बाल कटवाते थे। क्या आपने कभी उनके हाथों के अलावा उनके बदन पर कहीं कोई चिह्न देखे हैं?

गुलाब जी: हां भाई, मैंने देखे हैं। जब मैं गुरुदेव के शरीर की मालिश करता था तो मैंने अपनी आंखों से उनकी छाती पर एक ओम और पीछे की तरफ त्रिशूल देखा है।

सवालः आपने केवल एक बार देखा या...

गुलाब जी: कई-कई बार देखा है।

 

किसी संत की छाती और पीठ पर ओम की  प्राप्ति का कोई ऐतिहासिक रिकॉर्ड नहीं है। अपनी महानता को कम आंकने वाले गुरु होने के कारण गुरुदेव ने हमेशा बनियान पहनकर ही स्नान किया ताकि कोई उनकी नंगी पीठ या छाती को देख न सके।

उनके शरीर पर चिह्नों की पुष्टि उनके अनेक शिष्यों ने की। इन्हीं शिष्यों में से एक गुरुदेव के पसंदीदा शिष्य संतलाल जी भी हैं,  जिन्होंने सोनीपत में वर्षों तक एक स्थान चलाया। उन्होंने गुरुदेव के नाखूनों में चमकते त्रिशूल के दर्शन किए थे। 

 

संतलाल जीः मेरे साथ-साथ दो-तीन और लोग थे, जिन्होंने गुरुदेव के हर नाखून पर त्रिशूल का चिह्न देखा  था। 

सवालः अरे वाह।

संतलाल जीः उनके हर नाखून में त्रिशूल था। मैं वहां रात को ठहरा था। जब हम सब बैठे थे, उस समय उन्होंने मुझे दिखाया।

सवालः क्या वह त्रिशूल प्रकाश की तरह चमक रहे थे?

संतलाल जीः हां, बिल्कुल, वे चमक रहे थे।   

 

नंदी के सींग जो गुरुदेव के दाहिने हाथ पर थे, गीता नागपाल को एक दृष्टि में दिखाई दिए। वह समझ नहीं पा रही थीं कि उनका वास्तव में क्या मतलब है। मुझे लगा कि यह एक दिलचस्प कहानी है और इसीलिए मैं इसे आपके साथ साझा करना चाहता हूं।

 

गीता जीः जब हमने स्थान में जाना शुरू किया तो मुझे अचानक कुछ झलक दिखाई देने लगी। गुरुजी ने मुझसे कहा कि मैं जो कुछ देख पा रही हूं उसे पेंटिंग में उतारूं। मैंने पेंट करना शुरू कर दिया और गुरुजी को दिखाने लगी। वे उन्हें देखकर मुझे उनके बारे में समझाते थे। मुझे जैसे ही कोई झलक दिखाई देती, मैं उसका चित्र बनाती थी, लेकिन कभी-कभी वक़्त की कमी के कारण ऐसा नहीं हो पाता था। एक ख़ास तरह की झलक थी, जो मुझे बार-बार दिखाई देती थी। यह एक गोल, मुड़ी हुई चीज़ थी। यह एक जगमगाता हुआ दिव्य दृश्य था और यह मुझे लगातार दिखाई दे रहा था। मुझे इसका मतलब समझ में नहीं आ रहा था, इसलिए मैंने इसका चित्र भी नहीं बनाया था। करीब एक हफ्ते तक यह मुझे दिन-रात दिखाई देता रहा। जब भी मैं आंखें खोलूं, बंद करूं यह मेरे सामने होता था। आखिर में मैंने तय किया कि मुझे जो कुछ, जैसा भी दिखाई दे रहा है उसका चित्र बना डालूं। मेरे दिमाग़ में कुछ रंग आने लगे और मैंने अंत में चित्र बना लिया। उसे गुरूजी को दिखाया। मैंने उनसे कहा,“यह दृश्य मुझे बार-बार दिखाई दे रहा था, तो मैंने इसे पेंट कर दिया। इसका मतलब मुझे समझ में नहीं आया इसलिए आपको दिखाने के लिए लाई हूं।” उन्होंने चित्र को देखा और कहा, "यह नंदी है और ये नंदी के सींग हैं।" मैं हैरान रह गई। अगले साल हम गुरुदेव से मिले और उन्होंने मुझे अपने हाथ दिखाए। उनके हाथों पर बहुत सारे चिह्न बने हुए थे। उनमें से एक नंदी का वही चिह्न था जो मैंने बनाया था। वह एक ऐसा अनुभव था, जिसको मैं समझा नहीं सकती। 

 

गुरुदेव की हथेलियों पर शिव से जुड़े हुए सभी चिह्न बने हुए थे। एक पूरा शिवालय था। एक आम इंसान की हथेलियों पर तीन रेखाएं होती हैं - हृदय रेखा,  मस्तिष्क रेखा,  जीवन रेखा। और छोटी-छोटी बहुत सारी रेखाएं भी होती हैं। लेकिन गुरुदेव की हथेलियों पर केवल तीन मुख्य रेखाएं थीं। कोई और रेखा दिखाई नहीं देती थी। 

मैं गुरुदेव के पास अपने एक दोस्त को लेकर गया। वह एक ज्योतिषी और हस्तरेखा का जानकार था जो गुरुदेव की हथेलियां देखने  के  लिए  उत्सुक था। वो गुरुदेव की हथेलियाँ देख कर चौंक गया क्योंकि उनकी हथेलियों पर बने माउंट  या पर्वत बहुत उभरे हुए थे और मूल तीन रेखाएँ थी। 

मैंने भी चुपके से गुरुदेव की कुंडली पढ़वा ली। आश्चर्यजनक बात यह है कि भाग्य खुद को कैसे प्रदर्शित करता है। उनके चार्ट में ग्रहों का विन्यास आश्चर्यजनक रूप से प्रासंगिक था। उनके सभी ग्रह बहुत आसान ढंग से जमे हुए थे। ग्रह बता रहे थे कि एक महान व्यक्ति की कुंडली है। बहुत ही सरल,  बहुत उदार और एक प्रभावशाली इंसान की कुंडली। अधिकांश ज्योतिषी भाग्य बताने वाले होते हैं और इसलिए गहन विश्लेषण उनकी योग्यता में नहीं है। 


गुरुदेव के ऑफ़िस में सहयोगी के रूप में काम करने वाले एक बहुत ही विनम्र व्यक्ति और उनके सबसे पुराने शिष्यों में से एक एफसी शर्मा जी इस बात की गवाही देते हैं। 

 

 

सवाल:  गुरुदेव के हाथों में कौन से चिह्न थे?

 

एफसी शर्मा जी:  उनके हाथ में ओम था। एक त्रिशूल भी बना हुआ था। ओम छोटा और लाल रंग का था। उनके हाथों में नंदी के दो सींग भी बने हुए थे लेकिन कुछ समय बाद ये सभी निशान ग़ायब हो गए और एक चक्र का निशान बन गया जिसमें से प्रकाश निकलता हुआ दिखाई देता था। हमारे कुछ गुरु भाइयों ने इसे देखा है। उस समय गुरुदेव ने ख़ुद कहा था कि अब आपको कोई निशान दिखाई नहीं देंगे। आप इस चक्र के निशान के अंदर ही सब कुछ देख पाएंगे। किसी ट्यूबलाइट की तरह।

 

सवाल: इसका मतलब है कि सभी चिह्न चक्र के निशान के अंदर थे और आपको केवल गोलाकार ही दिखाई देता था?

 

एफसी शर्मा जी:जी हां, केवल एक चक्र था।

 

सवाल: क्याइस चक्र के अंदर के सभी चिह्न बाद में गायब हो गए और उनके गायब होने के बाद केवल एक चक्र और उसका प्रकाश ही रह गया?

 

एफसी शर्मा जी: जी हां। वह चक्र भी कुछ समय के लिए ही था और बाद में वह भी ग़ायब हो गया और सभी निशान वापस आ गए। इन्हें भी कुछ ही लोग देख पाए और बाद में ये निशान किसी को दिखाई नहीं दिए। 

 

 

मुझे पता है कि कुछ चिह्न ऐसे थे जो थोड़े वक़्त के लिए उनके हाथों पर दिखाई देते थे और फिर ग़ायब हो जाते थे। 

बैंगलोर के एक शिष्य डॉ शंकर नारायण और कुछ अन्य लोगों ने त्रिशूल के ग्राफिक्स को एक अनोखे तरीके से प्रदर्शित होते देखा। आगे वह बता रहे हैं कि गुरुदेव के हथेलियों पर जन्माष्टमी के दौरान कुछ समय के लिए बहुत सारे त्रिशूल दिखाई दिये थे। 

 

डॉ शंकर नारायण जी:  एक बार मैं गुरुजी से मिलने के लिए गुड़गांव गया। देखा कि गुरुजी चारपाई पर बैठे हुए हैं। मेरे पहुंचते ही उन्होंने अपने हाथ मुझे दिखाए। मैंने देखा कि हाथ पर एक बड़ा-सा चक्र बना हुआ है। एक सफ़ेद रंग का बड़ा घेरा और उसमें से त्रिशूल निकलते हुए दिखाई दे रहे थे। मैंने चार पूरे और एक आधा त्रिशूल देखा। चार बड़े थे और एक छोटा सा। पांचों त्रिशूल उन्होंने मुझे दिखाए। मुझे लगता है कि यह घेरा गुरूजी ने मेरे किसी परिचित को भी दिखाया था। 

मैंने व्यक्तिगत रूप से उनके हाथों पर इस चिन्ह को कभी नहीं देखा है,   इसलिए मुझे लगता है कि यह दृश्य केवल डॉ. शंकर नारायण और कुछ अन्य लोगों के लिए ही था।

शुरू-शुरू में,  लोग अनजान थे और अधिकांश शिष्य धार्मिक नहीं थे,  इसलिए वे समझ ही नहीं पाते थे कि उन्होंने क्या देखा। और वास्तव में गुरुदेव ने भी कभी लोगों को समझाने की कोशिश नहीं की।

डॉक्टर ने त्रिशूल देखा,  माताजी को सुदर्शन चक्र दिखाई दिया। उनके पड़ोसी उमाशंकर को भी सुदर्शन चक्र दिखाई दिया था। सभी इन चिह्नों को देख रहे थे, लेकिन सबकी समझ अलग-अलग थी। 

शिव के चिह्न ये बताते हैं कि गुरुदेव को शिव की पूर्ण शक्ति प्राप्त थी। आगे माताजी बता रही हैं कि उन्होंने किस तरह कृष्ण के सुदर्शन चक्र को देखा। श्री कृष्ण को विष्णु का अवतार माना जाता है। इससे पता चलता है कि गुरुदेव को गुरु-विष्णु की शक्ति और विष्णु रूप की क्षमताओं की प्राप्ति थी।

 

सवाल: क्या उनके हाथों में और भी शक्तियां थीं?

माताजी: जब जन्माष्टमी आई तो हमें उनके हाथों में भगवान कृष्ण का सुदर्शन चक्र दिखाई दिया। यह एक पूरा घेरा था।

सवाल: अंदर या बाहर?

माताजी: उनके हाथों पर दिखाई देता था। बाहर की ओर। उनकी हथेलियों पर।

सवाल: वह कितना बड़ा था? एक इंच, दो इंच या आधा इंच का?

माताजी: हथेली कितनी बड़ी होती है?

सवाल: 2.5 से 3 इंच। 2.5 इंच कह सकते हैं।

माताजी: यह हथेली जितना ही बड़ा था।

सवाल: पूरी हथेली पर।

 

एक बात बहुत आश्चर्यजनक थी कि वे इन चिह्नों को अपनी इच्छा से दूसरों को भी हस्तांतरित कर सकते थे। उन्होंने अपने शिष्यों को भी ऐसा करने की क्षमता दी। 

रवि त्रेहन जी अपने अनुभव बता रहे हैं।

 

सवाल: आपके हाथ में शिवलिंग, गिलेरी जैसे चिह्न हैं...

रवि जी:चिह्न?

सवाल: जी हां, जैसे ज्योत, शिवलिंग, गिलेरी, नंदी, गणपति आदि चिह्न, जो गुरुदेव के हाथों में भी थे और आपके हाथों में भी हैं। उन्होंने ये चिह्न अपने शिष्यों को भी दिए थे। इन चिह्नों का क्या महत्व है?

रवि जी: ये अलग-अलग चिह्न आप साधना करके भी हासिल कर सकते हैं। मैं आपको एक उदाहरण देता हूं। एक समय गुरूजी ने मुझसे कहा था, “बेटा, तुम्हारे मंत्रों की गिनती 87,000 हो गई है। गुरु पूर्णिमा या महाशिवरात्रि के बाद तुम्हारे मंत्रों की संख्या डेढ़ लाख हो जाएगी। तब तुम्हारे हाथ पर शिवलिंग दिखाई देगा।” यह जानने के बाद मैंने और अधिक मेहनत की। अपनी सेवा बढ़ा दीं और ध्यान भी किया और ठीक शिवरात्रि के बाद मेरे हाथ पर शिवलिंग प्रकट हुआ। इसके बाद गुरु पूर्णिमा पर गुरुजी ने फिर से कहा, “बेटा,तुम्हारा लेवल बढ़ गया है। तुमने पाठ भी बहुत किए हैं। और अधिक सेवा करो।इसे ढाई लाख तक करो और फिर तुम्हें अपने हाथ पर ओम दिखाई देगा। मैंने गुरुजी के कहे अनुसार किया और मैंने अपने हाथ पर ओम देखा। गुरुजी ने मुझसे कहा था,"बेटा,तुम 11.00 बजे अपना पाठ शुरू करो और 2.15 बजे तक करो। उसके बाद मैं वहांसे तुम्हारा पाठ आगे बढ़ाऊंगा और 2.15 से 5.15 तक मैं तुम्हारे लिए पाठ करूंगा।" उन्होंने यह भी कहा, “अगली शिवरात्रि तक तुम अपने हाथ में त्रिशूल देखोगे। तुम अपनी सेवा में मन लगाओ और ध्यान भी करो"। जैसा कि गुरुजी ने कहा था, मैंने अगली शिवरात्रि पर अपने हाथों में त्रिशूल देखा। त्रिशूल मेरी पूरी हथेली पर बना हुआ था। तो इसका श्रेय मैं अपनी प्रगति के विभिन्न चरणों को देता हूं। उन्होंने मुझे हर स्तर पर आगे बढ़ाया। यही आपके सवाल का जवाब है।

 

जिन लोगों को वे प्रेरित कर सकते थे, उनके लिए उन्होंने ऐसी विधियों का इस्तेमाल किया। आलसी और कम महत्वाकांक्षी लोगों को वे अपने चिह्न यूं ही दे दिया करते थे। 

 

नादौन के संतोष जी, परवाणू के गुप्ता जी का परिवार, मुंबई के कैप्टन शर्मा और हम में से कई लोगों के लिए, यह अपने आप होने वाला संचारण था। उन्होंने हमें जो उपहार दिए थे, उनके बारे में हम तब तक नहीं जान पाए, जब तक उन्होंने हमारी मदद नहीं की। 

 

आज, गुरुदेव के शिष्यों की दूसरी और तीसरी पीढ़ी के कई लोगों के हाथों में इनमें से कई चिह्न हैं। ऐसा लगता है कि गुरुदेव एक बार फिर से आध्यात्मिक इतिहास लिख रहे हैं। 

 

मुझे लगता है कि ये चिह्न किसी भी व्यक्ति की आभा में प्रकट होते हैं और फिर उस व्यक्ति को उन्हें उपयोग करने की क्षमता मिलती है।

 

गुरुदेव ने कहा कि जहां ओम देवत्व का प्रतीक है, वहीं त्रिशूल शक्ति का उपयोग करने की ताक़त देता है और स्वयं शक्ति का ही प्रतीक है।

 

शक्ति की कई व्याख्याएं की जाती हैं। उनमें से एक है कि यह हमारे दिमाग़ और शरीर के बाएं हिस्से की ताक़त को दर्शाती है। साथ ही यह ब्रह्मांडीय ज्ञान प्राप्त करने में भी मदद करती है। 

 

शक्ति को सूक्ष्म जगत में गतिज ऊर्जा और स्थूल जगत में प्रकृति या ब्रह्मांड की रचनात्मक शक्ति के रूप में भी देखा जा सकता है।

 

शक्ति को समझने का सबसे आसान तरीक़ा यह है कि यह ऊर्जा को धारण करने,  आकर्षित करने और फैलाने की क्षमता होती है। यह किसी इंसान को बनाए रखने के लिए आवश्यक ऊर्जा के अलावा होती है। और फिर उस ज़रूरत से ज्यादा ऊर्जा का उपयोग अन्य जीवन रूपों की भलाई के लिए करना। अधिकांश उपचार प्रक्रियाओं में शक्ति के उपयोग की आवश्यकता होती है। 

 

ज्योत का चिह्न अग्नि तत्व से जुड़ा है। यह शक्ति आंखों के माध्यम से ऊर्जा के संचरण में सहायता कर सकती है, शरीर में अग्नि तत्व को बढ़ा सकती है और प्रकाश भी फैला सकती है। ऐसा माना जाता है कि गुरुदेव को यह शक्ति हिमाचल स्थित ज्वालाजी के मंदिर से प्राप्त हुई थी। इस मंदिर की गतिशील अग्नि का कोई सिद्ध स्रोत नहीं है।

 

आइए शिव परिवार की अवधारणा की झलकियों के बाद अब गुरु रूप पर थोड़ा चिंतन करें।

 

गुरुदेव का ज्ञान मानसून में बरसने वाले पानी की तरह था, जिसका बरसना उच्च गुणवत्ता वाले वाटर प्रूफिंग से विवश था। जैसे पानी में हमेशा थोड़ा न थोड़ा रिसाव होता है,  सौभाग्य से वैसे ही गुरुदेव के ज्ञान के रहस्य भी लोगों तक पहुंचे। 

 

गुरूदेव अलग-अलग मूड में रहते थे। जब कभी वे गुरु रूप में होते थे,  तो उनकी आवाज बहुत अलग होती थी,  जैसे दिव्यता बोल रही हो। मुझे लगता है कि तकनीकी रूप से ऐसा तब होता है जब चेतना अपने उच्चतम स्तर पर होती है, कुंडलिनी सिर के शीर्ष पर और शायद उससे भी आगे तक कंपन करती है।

 

यहां गिरि जी अपने विचार रख रखे हैं।

 

 

सवालः गुरुदेव ने आपको ओम का महत्व किस तरह समझाया?

गिरी जीःएक दिन हम लोग उनके शयनकक्ष में बैठे थे। अचानक उन्होंने एक पेन और काग़ज़ उठाया और ओम चिह्न बना दिया। उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या तुम ओम का अर्थ जानते हो। मैंने कहा, "नहीं गुरुजी मैं तो ओम का अर्थ नहीं जानता।" निश्चित ही मुझे इन सब बातों की कोई जानकारी नहीं थी। तब उन्होंने मुझे समझाया की 3 के शीर्ष पर ब्रह्मा हैं, बीच में विष्णुनंबर 3 के अंतिम भाग के नीचे देवाधिदेव महेश्वर यानी शिवजी है। सबसे नीचे, पूंछ की तरह जो वक्र बना है वह गुरु हैं यानी गुरुदेव। तो इस तरह यह गुरु ब्रह्मा,गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा,गुरु साक्षात पार ब्रह्म बनाता है। उन्होंने बताया कि ओम का चिह्न पार ब्रह्म है। इसी ज्योति को हम जलाते हैं। गुरुदेव सभी से कहते थे कि हर घर में ज्योत जलनी चाहिए।

 

गुरुदेव ने हम में से कई लोगों को ओम की अवधारणा समझाई। सब लोगों ने इसे अपने-अपने ढंग से समझा। 

राजी शर्मा ने ओम को किस तरह से समझा, वे यहां बता रहे हैं। उनकी समझ अभी-अभी गिरि जी द्वारा बताई गई बातों से थोड़ी अलग है। 

 

राजी शर्मा जी: एक दिन गुरुजी और मैं बैठे हुए थे। उन्होंने मुझसे पूछा, "क्या तुम ओम का अर्थ जानते हो?" मैंने कहा, "गुरुजी, मैं इतना जानता हूं कि ओम एक प्राथमिक ध्वनि है और हम सभी ओम की पूजा करते हैं। हम इसकी पूजा उसी तरह से करते हैं जैसे लंबे समय से बाकी पूजा करते आ रहे हैं।" उन्होंने कहा, "नहीं, मैं तुमको समझाता हूं कि वास्तव में ओम का क्या अर्थ है। यह भी समझाऊंगा कि इसका गुरु मंत्र या महा गुरु मंत्र से क्या संबंध है। काग़ज़ और पेंसिल लेकर बैठो।" उन्होंने एक बिंदु पर पेन को टिकाया और फिर ओम का पहला, ऊपर वाला आधा गोला बनाया। उन्होंने कहा, "यह बिंदु जहां से शुरू होता है वह ब्रह्मा है। और जैसे ही यह बिंदु अगले गोलाकार में परिवर्तित होकर आगे बढ़ता है, तो वह आकृति विष्णु होती है। शुरुआत करना ब्रह्मा का काम है, जो वहीं ख़त्म भी हो जाता है। ब्रह्मा अब अस्तित्व में नहीं रहते। आगे की ज़िम्मेदारी विष्णु की होती है। फिर दूसरा चक्र जो थोड़ा बड़ा और लंबा होता है, यह रेखा देवो महेश्वरा है। तो मुझे समझ में आया कि वास्तव में वे जो कह रहे हैं वह सही है। यह रेखा लंबे जीवन को भी दिखाती है। यह रेखा जितनी लंबी होगी, जीवन उतना ही लंबा होगा। फिर वे उस बिंदु पर आए, जहां पर ये दोनों गोलाकार बीच में मिलते हैं। यहीं से एक दूसरी रेखा भी निकलती है, जिसे उन्होंने 'गणेश की सुंडी' भी कहा है।

सवालः सूंड? आप सूंड के बारे में कुछ कह रहे हैं?

राजी शर्मा जी: वह सूंड या रेखा जो इन तीनों के बीच से निकलती है वह गणेश है, जो ज्ञान हैं। ये गुरु भी है जो आपका अज्ञान दूर करते हैं। इसलिए हमारे गुरु मंत्र में यह गुरु ब्रह्मा हैं, जहां से मंत्र शुरू होता है। गुरु का ब्रह्म रूप संपूर्ण है। गुरु विष्णु उत्पत्ति हैं। उन्होंने इसे इंसानों से जोड़कर बताया कि यह गर्भ में भ्रूण भी है। आप देखते होंगे कि बच्चा घुमावदार स्थिति में सोता है। वैसे ही जैसे ऊपर का गोलाकार होता है। फिर आते हैं देवो महेश्वरा। लेकिन आगे है गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरा,  गुरु साक्षात पारब्रह्म। तो आपको इस ब्रह्माण्ड से मुक्ति दिलाने वाले गुरू हैं, जो पारब्रह्म हैं। वे आपको 3 लोकों के इस अस्तित्व यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर के इस चक्र से बाहर निकालते हैं। गुरु साक्षात पारब्रह्म हैं। 

सवालःउसके बाद?

राजी शर्मा जी:यह 3 और सुंडी का अर्थ है। उसके बाद आता है चांद। शरीर के भीतर यह चांद आज्ञा चक्र है, जो दोनों भौहों के ठीक ऊपर स्थित होता है। इनके बीच अंधकार होता है।  तो गुरू ही हमें इस अंधकार से दिव्य प्रकाश की ओर ले जाते हैं, जो कि एक नीली रोशनी होती है। इस रोशनी को चांद द्वारा भी दर्शाया जाता है। चन्द्रमा की रोशनी भी हल्की होती है। चन्द्रमा, सूर्य के परम प्रकाश से प्रकाशित होता है। यह वही चांद है, जिसे शिव ने अपने मस्तक पर धारण किया है। और फिर थोड़ा सा फ़ासला है। यह अंधेरा है। इस अंधेरे को आप अपनी श्रद्धा और अपने गुरू में अटूट विश्वास के साथ पार कर सकते हैं। क्योंकि वहीं पर दिव्य प्रकाश चमक रहा है, अपने ही सुंदर भर्ग में, वरेण्यम भर्ग का वास होता है। गुरुजी ने मुझे ओम का यही अर्थ समझाया। 

सवालःतो आपके कहने का अर्थ यह है चांद के ऊपर प्रकाश के बीच के जिस स्थान में अंधेरा छाया हुआ है, उसे पार करने में गुरू आपकी मदद करते हैं। और वह प्रकाश आत्मप्रकाश है?

राजी शर्मा जी: देखिए, इंसान के स्व को उसके शरीर के रूप में पहचाना जाता है। लेकिन यह स्व अपने आप में एक चमकदार प्रकाश है। और वह ही आपका गुरू है।

 

गुरुदेव की प्रथाओं में से एक ऐसी थी जिसे समझाना मेरे लिए कठिन है। वो है अपने शिव चिह्नों को अपनी इच्छा से किसी को भी स्थानांतरित करने की उनकी क्षमता। कभी एक दिन में, कभी थोड़े ही वक़्त में, तो कभी मिनटों में।

 

एफसी शर्मा जी कुछ जानकारी हमसा के साथ साझा कर रहे हैं। 

 

सवालःक्या सभी चिह्नों को हासिल करने के पीछे कोई न कोई कहानी है?

 

एफसी शर्मा जी:ऐसा नहीं है। गुरुजी ओम या शिवलिंग को किसी भी इंसान को दे देते थे। यदि कोई व्यक्ति बीमार है, तो गुरुदेव उसे अपना ओम दिखाते थे और अगर वह उस ओम को नहीं देख पाता, तो वह अपनी हथेली पर जल डालकर उसे फिर से दिखाते थे। ओम सफ़ेद रंग का था। उसे अपने हथेली का ओम दिखाने के बाद वह उससे कहते थे कि कल सुबह तुम अपने हाथ पर भी ओम देख पाओगे। 

 

गुरुदेव के एक शिष्य गुप्ताजी परवाणू में रहते हैं। उन्हें और उनके परिवार को एक ही साथ में ओम की प्राप्ति हुई थी। इस घटना ने सभी को अचंभित कर दिया। 

 

आइए उनकी कहानी उन्हीं से सुनते हैं।

 

 

सवाल: गुप्ता जी, आप पहली बार गुरुदेव से कब मिले थे? उनके साथ पहली या दूसरी मुलाक़ात में क्या कोई ऐसा अनुभव हुआ जो आपको आज तक याद है?

गुप्ता जी: गुरुदेव से मिलने से पहले तक मैंने कभी किसी के पैर नहीं छुए थे। लेकिन जब मैं पहली बार उनसे मिला तो पता नहीं क्यों मैंने उनके पैर छू लिए। कोई न कोई तो कारण रहा होगा। पर मुझे पता नहीं।  

 

सवाल: आप कह रहे थे कि पहले दिन ही गुरुदेव ने आपके हाथ पर ओम दे दिया था? वह कहानी क्या थी?

गुप्ता जी:जिस दिन हम उनसे मिले ,वह बार-बार कह रहे थे, "मुझसे कुछ मांगोमुझसे कुछ मांगो।" वे एक कमरे में ठहरे हुए थे। दूसरे कमरे में मेरे परिवार के सदस्यों को बुलाकर कहने लगे, "मैंने तुम्हें ओम दिया है।" फिर ओम हम सबके हाथों में दिखाई देने लगा, लेकिन वह दूसरे लोगों के हाथों में भी दिख रहा था। 

 

भले ही यह एक बी2बी व्यवसाय की तरह लग रहा है,  लेकिन यह गुरुदेव का विशेषाधिकार था कि वे अपनी मर्ज़ी से जिसे चाहें उसे अपनी शक्तियां बांटें।

प्राचीन काल से यह मान्यता चली आ रही है कि शिव अपने भक्तों पर तत्काल प्रसन्न होते हैं और उन्हें तुरंत ईनाम भी देते हैं। और गुरुदेव ने हममें से अधिकांश शिष्यों के साथ ऐसा ही किया है। इससे ऐसा साबित होता है कि वे शिव का अंश हैं और भृगु की भविष्यवाणी सही मालूम होती है। 

अंश का अर्थ है एक भाग और शिव अंश का अर्थ है शिव का एक भाग। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे शिव के भौतिक रूप का हिस्सा हैं। इसका मतलब यह है कि शिव से उनकी तुलना की जा रही है। 

अब बात करते हैं नादौन के संतोष जी की। वे गुरुदेव के सबसे प्यारे शिष्यों में से एक हैं। बहुत सीधे और सरल इंसान हैं। बहुत अच्छे मेहमाननवाज़ भी हैं।यह  पूर्व  पीटी  शिक्षक  अब  एक आध्यात्मिक  प्रशिक्षक  हैं। 

 

सवाल: संतोष जी, कितनी मुलाक़ातों के बाद गुरुदेव ने आपको अपने हाथों पर ओम दिखाया?

संतोष जी:1976 के मई और जून के महीनों में गुरुदेव ने ज्वालाजी के पास कथोग में एक कैंप लगाया था। उसी समय मुझपर गुरुदेव की कृपा हुई और मुझे उनका आशीर्वाद लेने का मौक़ा मिला। उन्होंने मुझे सेवा करने का मौका दिया। उस समय गुरुदेव ने हमें बताया था कि उनका स्थान गुड़गांव के शिवपुरी में है। दो महीने के बाद जुलाई या अगस्त में स्कूल की छुट्टियों के दौरान मैंने मुख्य स्थान पर जाने की योजना बनाई। शिवपुरी पहुंचने पर पता चला कि गुरुदेव वहां नहीं थे। भले ही मेरी मुलाक़ात गुरुदेव से नहीं हुई पर मैं माताजी और उनके बच्चों से मिला। मैं पूरे भक्ति भाव के साथ स्थान कक्ष में गया और वहां धूपबत्ती जलाई। धूपबत्ती जलाते हुए मैंने बस यूं ही अपने हाथों को देख लिया। मुझे अपने दायें हाथ में वैसा ही ओम का चिह्न दिखाई दिया जैसा मैंने गुरुदेव के हाथ में देखा था। मैंने अपने बाएं हाथ में त्रिशूल का चिह्न भी देखा। मैं हैरान रह गया। ख़ैर, यह सब गुरु की कृपा के कारण ही हुआ था। 

सवाल: संतोष जी, क्या आपके कहने का मतलब यह है कि शक्तियों के ये चिह्न आपको गुरुदेव से मिलने के ठीक दो महीने बाद दिखाई दिए?

संतोष जी: जी हां, आप सही कह रहे हैं। गुरुदेव से मिलने के ठीक दो महीने बाद ही। मई-जून में मैंने गुरुदेव से मुलाक़ात की थी और जुलाई-अगस्त में शिवपुरी में मुझे ये शक्ति चिह्न दिखाई दिए। 

 

श्री कृष्ण देवलेकर तीन दशकों से अधिक समय से मुंबई स्थान पर सेवा कर रहे हैं। उनका जीवन दूसरों की सेवा के लिए समर्पित है।

वे यहां अपनी कहानी बता रहे हैं। 

 

 

श्री कृष्ण जी: "बेटा, सेवा करो।" मैंने पूछा "गुरुजी, सेवा क्या है?"उन्होंने कहा, "लोगों के दर्द और परेशानियों को दूर करो" मैंने पूछा "कैसे?"उन्होंने कहा, "यदि किसी व्यक्ति के सिर में दर्द है, तो तुम बस उसके माथे पर अपना हाथ रख दो और उसे दर्द से राहत मिल जाएगी। अगर किसी व्यक्ति के पैरों में दर्द है तो तुम उसके पैरों पर हाथ रखो। उसे आराम मिलेगा।” "गुरुजी क्या वाकई ऐसा होता है?"उन्होंने कहा, "हां बेटा, ऐसा होता है। क्या तुम सेवा करोगे?"मैंने कहा "हां, ज़रूर करूंगा।" उन्होंने कहा, "तो आज से मैं तुमको ओम देता हूं।"थोड़ी देर बाद उन्होंने मुझसे अपने हाथ दिखाने को कहा, जब मैंने हाथ दिखाए तो उन्होंने मेरे हाथों पर ओम दिखाया। उन्होंने कहा, "बेटा,अभी तो शुरुआत है, आगे क्या होगा,बस देखते रहो।"

 

एक और बी2बी कहानी सामने आ रही है। यह कहानी है दुर्गापुर में एक सफल स्थान चलाने वाले कृष्णमोहन जी की।

 

सवाल: कृष्णमोहन जी, क्या गुरुदेव ने आपको वैसे ही ओम और त्रिशूल के चिह्न दिए थे,जैसे उनके हाथों में थे?

कृष्ण मोहन जी:जी हां। उन दिनों गुरुजी के पिता की पुण्यतिथि का समारोह चल रहा था।उस समय गुरुदेव ने मेरे सिर पर हाथ रखा और उनकी एक शक्ति मुझमें समा गई। फिर उन्होंने मुझे अपने हाथों पर बना हुआ ओम दिखाया और कहा, "बेटा, यह तुम्हारे हाथ में भी है।" उन्होंने मुझे मेरा ओम और त्रिशूल दिखाया। बीच में सफेद ओम भी दिखाया। ये अभी भी मेरे हाथ में है। उन्होंने मुझसे कहा, "बेटा, लोगों की सेवा के लिए इनका इस्तेमाल करना"।

सवाल: क्या आपने अपनी ओम की शक्ति दूसरों को दी है?

कृष्ण मोहन जी: जी हां।

 

गुरुदेव के शरीर छोड़ने के सालों बाद तक, उनके कई शिष्यों ने दूसरों को न तो शक्ति दी और न ही ये चिह्न किसी को दिए। शायद वे सोचते थे कि ऐसा करने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है। बहुत विचार-विमर्श के बाद अब कुछ लोगों ने अपनी डाउनलाइन बनाना शुरू कर दिया है। हम ये उम्मीद और प्रार्थना करते हैं कि ये अलौकिक शक्तियां आगे कई पीढ़ियों तक बढ़ती रहे। यह कैसे आगे बढ़ेंगी यह एक पवित्र रहस्य है लेकिन ऐसा करने के  लिए सबसे पहले नेक इरादे की जरूरत होती है। 

आइए, उमा प्रभु से मिलने के लिए मुंबई चलते हैं। उमा जी क़ाबिले तारीफ़ महिला हैं। वह मेरे सबसे करीबी गुरु भाई सुरेश प्रभु के जीवन पर राज करती हैं। केवल एक ही मुलाक़ात में वे महागुरु की आजीवन भक्त बन गई थीं।

 

सवाल: आपने बताया था कि जब आप पहली बार गुरुदेव से मिलीं, तो उन्होंने आपको अपने बाएं हाथ में गणपति देखने के लिए कहा था। और उन्होंने पूछा था कि क्या आप ओम देख पा रही हैं। तब आपका जवाब था-नहीं। फिर उन्होंने कहा कि आपको इसे अपने दिल से देखना होगा।

उमा जीः जी हां, उन्होंने कहा, "बेटा,इसे अपने मन की आंखों से देखो।"

सवाल:फिर क्या हुआ उमा?

उमा जीः फिर मुझे दिखाई दिया। उनके समझाने का ढंग कुछ अलग था। उन्होंने मुझे ख़ास तरह से देखा। मेरे भीतर हलचल हुई। यह दिल से दिल का जुड़ाव था। वह मुझसे अपने शब्दों के ज़रिये संवाद नहीं कर रहे थे। ऐसा लग रहा था जैसे वे ख़ास प्रकार के कंपन, ख़ास प्रकार की तरंगें भेज रहे हों। यह जीवन से जीवन का संबंध था। थोड़े में कहूं तो एक प्रकाश के माध्यम से वे मुझसे जुड़ रहे थे। अब मैं वास्तव में वे सभी चिह्न अपने हाथों में देख पा रही थी। फिर उन्होंने एक पेंसिल उठाई और कुछ चित्र बनाने लगे। उन्होंने मुझसे पूछा, "क्या तुम यहां कुछ देख पा रही हो?" तो, मैंने साफ़-साफ़ मना कर दिया। कहा, "मैं कुछ भी नहीं देख पा रही हूं"।

सवाल: और फिर आप कब देख पाईं?

उमा जीः तुरंत ही। उन्होंने मेरा हाथ, मेरी उंगली पकड़ी और कहा, "बेटा,इसे अपने भीतर की आंखों से देखो"। और जब मैंने उनकी आंखों में देखा तो मुझे लगा कि कोई चीज मुझे ट्रांसफर की गई है। ट्रांसफर कहना सही नहीं होगा। मुझे लगा कि हमारे बीच कोई गहरा संबंध बन गया। और उसके बाद मुझे सबकुछ दिखाई देने लगा। सबकुछ। 

सवाल: कृपया इसे समझाएं।

उमा जीः मैंने अपने अंगूठे के सिरे पर एक ओम देखा। मैं तो अभी भी उसे देख सकती हूं। अपने हाथ के गुरु पर्वत पर, अंगूठे के बाज़ू में मैं गणपति को देख पा रही थी। उन्होंने पूछा कि क्या तुम अपनी मध्यम यानी बीच की उंगली में त्रिशूल देख सकती हो? पहले ये सब मुझे दिखाई नहीं देते थे। तो, मुझे ये तीन चीजें याद हैं- ओम, गणपति और त्रिशूल।

 

जब मैं गुरुदेव के हाथों पर बने चिह्नों को देखकर उन्हें समझने के लिए अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करता हूं तो मैं कुछ अजीब नतीजे पर पहुंचता हूं। मेरा मानना ​​है कि ये चिह्न उनकी हथेलियों पर स्थायी रूप से अंकित थे,  लेकिन जब सिख धर्म के लोग उन्हें मिलने आते थे,  तो उन्हें ओम के बदले एक ओंकार दिखाये देता था। मेरा ख्याल है कि उनके पास दोनों थे - किसे क्या दिखाना है, वे चुनते थे। मैं अपनी बात करूं तो मैंने उनके हाथ पर एक ओंकार कभी नहीं देखा। मैंने केवल ओम देखा है और ओम इतनी गेहराई से उठा हुआ था कि उसके बदलने या हिलने की गुंजाइश ही नहीं थी।

आध्यात्मिक पुरस्कार पाने वाले एक और विजेता थे, क्वात्रा जी। 

 

क्वात्रा जीः जहां तक ओंकार का सवाल है, मुझे लगता है कि आपने ओम, ओंकार और गणेश को देखा होगा। उन्होंने इन्हें अपने शिष्यों के हाथों में भी दिया है। और मेरे गुरु की कृपा से ये अभी भी मेरे हाथ में हैं। मुझे नहीं पता कि मैंने इसे पाने के लिए पूजा की है या क्या किया है। लेकिन यह गुरुजी का उपहार है। यह उनका आशीर्वाद है, जो मेरे पास है।

 

गुरुदेव ओम के चिह्न को बहुत ख़ास मानते थे। उन्होंने इसे देवत्व का दर्जा दिया। उन्होंने मुझे कहा था कि यदि मैं लोगों और जगहों में ओम की कल्पना कर पाऊं,  तो मैं चेतना के सभी रूपों से अपना संबंध बढ़ा सकूंगा। यह मेरी भौतिक बाधाओं की सीमाओं को तोड़ देगा। 

भले ही उस समय मैं ओम के इस महत्व को ठीक से समझ नहीं पाया था, लेकिन अब मुझे एहसास होता है कि यदि आप ओम को बाहर की ओर देखने का अभ्यास करते हैं, तो वह आपके भीतर भी प्रकट होता है और उसकी ज्योति से आप प्रकाशित होते हैं। मैंने यह भी महसूस किया कि जब ओम की शक्ति उपहार में दी जाती है,  तो वह केवल आपके हाथों तक ही नहीं रहती। यह आपके शरीर के दूसरे हिस्सों में भी प्रकट होती है।

जब देहरादून के अस्थल में स्थापना चल रही थी तो बादलों में एक ओम प्रकट हुआ और कुछ मिनटों तक वहीं बना रहा। मेरे मित्र और आध्यात्मिक सहयोगी नितिन गडेकर ने इसे देखा और वहां पर मौजूद हम में से कई लोगों को भी दिखाया। 

रेणुका की यात्रा के दौरान मैंने ओम को ज़मीन पर जड़ा हुआ देखा है। मैं आश्चर्यचकित था। यह मेरी कल्पना के बाहर की बात थी। 

जैसे कोलेटरल पर लोगो की मुहर लग जाती है,  वैसे ही हमारे कोलेटरल भी आलू और टमाटर थे। आगे बिट्टू जी जो बता रहे हैं, उसे सुनकर लोगों के होश उड़ जाएंगे। 

 

बिट्टू जी: यह घटना 2007 में गुरुपूजा के मौक़े पर घटी। हम एक रात पहले गुरुपूजा के लंगर की तैयारियां कर रहे थे। रात को एक या दो बजे होंगे। हमने जो पहला टमाटर काटा उसके अंदर एक सुनहरा ओम था। मैंने आदरणीय माताजी, मल्होत्रा जी और उस समय वहां जो-जो लोग मौजूद थे, सबको दिखाया।

सवालः सुनहरा ओम?

बिट्टू जी:सोने की तरह था। पूरी तरह सोने का नहीं, लेकिन उसी तरह चमक रहा था। और वहां मौजूद सभी लोगों ने इसे देखा। चूंकि टमाटर को रखा नहीं जा सकता था, इसलिए हमने इसे काटकर प्रसाद के रूप में बांट दिया।

 

एक और भक्त हैं करमजीत। इन्होंने गुड़गांव में सेवा की थी। वह अपना अनुभव यहां सांझा कर रहे हैं। 

 

सवालः जब आपने देखा कि हर आलू में ओम बना हुआ है और आपने जाकर गुरुजी को यह बताया, तो उन्होंने क्या कहा?

करमजीतः जब मैंने उन्हें यह बताया,तो उन्होंने कहा, "बेटा, आलू तो तुमने बोए थे"। मैंने जवाब दिया, "मैंने कुछ भी नहीं किया है। यह मेरे बस की बात नहीं है। जो कुछ भी हो रहा है, वह आप ही कर रहे हैं। आपने क्या किया?"उन्होंने मेरा ध्यान हटा दिया और विषय बदल दिया। आप देखिए कि उनके पास ऐसी शक्तियां थीं कि वे आपको आलू में भी ओम दिखा सकते थे।

 

यह शायद 80 के दशक की बात होगी। शिवरात्रि से एक दिन पहले मैं गुड़गांव में था। सेवादार आलू काटने में लगे हुए थे। एक दिन बाद इन आलुओं को तलकर लोगों को बांटना था। बीच में ही लोगों ने अपने चाकू नीचे रख दिए। सेवादारों ने आलुओं को काटने से इनकार कर दिया। वे जिस भी आलू को छीलकर दो टुकड़ों में काटते थे उसमें त्रिशूल दिखाई देता था। वे इसलिए रुक गए क्योंकि उन्होंने सोचा कि पवित्र चिह्न को काटना ग़लत होगा। इस बात की जानकारी जब गुरुदेव को मिली तो उन्होंने एक गिलास में जल बनाया और आलू की बोरियों पर छिड़क दिया। ऐसा करने पर त्रिशूल ग़ायब हो गए।

इस पॉडकास्ट के अंत में मैं सभी को वह संदेश देना चाहता हूं जिसके लिए उनका जीवन एक प्रदर्शन था। हम सभी के भीतर कहीं न कहीं शिव तत्व मौजूद है। दुर्भाग्य से हम अपने भीतर आसानी से झांक नहीं पा रहे हैं। लेकिन उन्होंने इसका प्रदर्शन किया ताकि लोग ये देखें, जाने और विश्वास कर सकें। 

उनके हाथों और शरीर में शिवालय था। उनके शिव रूप को बहुत लोगों ने देखा। उनके व्यवहार और गुणों को एक ही शब्द में बताया जा सकता है - वह शिव ही है।

उन्होंने इसे अपने भीतर पहचाना और इस बारे में कभी कोई संदेह नहीं किया। उन्होंने और भी बहुत कुछ जाना था। उसके बारे में हमने इन पॉडकास्ट में ज़िक्र किया है। 

इस बीच, आप उन्हें इल्तजाह करे कि वेह एक एक्सटर्नल जेनरेटर की तरह आप को प्रक्षित करते रहे। वह आपको ऐसा प्रकाश प्रदान करें कि आप अपने भीतर के शिवतत्व को खोज सकें, जो शिवतत्व आप ख़ुद ही हैं। 

उर्दू के इन शब्दों पर ग़ौर करें जो हमसा के मन में सहज रूप से आए..

आपकी उल्फ़त के अफ़साने बहुत हैं

आपके दिए गए नज़राने बहुत हैं

ज़िंदगी को मुकम्मल करने वाले

आपके अज़ीम फ़साने बहुत हैं।