The Guru of Gurus - Audio Biography

पारस

November 19, 2021 Gurudev: The Guru of Gurus
The Guru of Gurus - Audio Biography
पारस
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ज्यादातर लोगों के लिए पारस एक पारस पत्थर है। मेरे लिए, यह एक दार्शनिक का दिमाग है, जो पत्थर की तरह सख्त है, दूसरों की तुलना में अधिक मजबूत है, जो मानसिकता में बदलाव लाने की क्षमता रखता है।

गुरुदेव ऑनलाइन गुरुओं के गुरु - महागुरु की ऑडियो बायोग्राफी प्रस्तुत करता है।

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आप गुरुदेव की जिंदगी और उनकी विचारधारा के बारे में इस वेबसाइट पर भी पढ़ सकते हैं - www.gurudevonline.com

ज्यादातर लोगों के लिए पारस एक दार्शनिक पत्थर है। मेरे लिए यह एक दार्शनिक का दिमाग है, जो पत्थर की तरह सख़्त है, दूसरों की तुलना में मज़बूत है, जिसमें लोगों का माइंड सेट यानी प्रवृत्ति को बदलने की क्षमता है।

पारस

मिट्टी के हर पिंड में ऐसी क्षमता होती है कि उसे किसी भी प्रतिमा में तराशा जा सके। ज़रूरत होती है सही मूर्तिकार की!

गुरुदेव ने हम कठपुतलियों की डोर बड़े रहस्यमय ढंग से खींची। असंख्य लोगों के विचारों और प्रवृत्तियों को उन्होंने बदला। उनकी परिवर्तनकारी शक्ति उनके अनेक अनुयायियों, भक्तों और शिष्यों में दिखाई देती है। कहानियां अनंत हैं, लेकिन हममें से अधिकतर को कुछेक कहानियों की ही जानकारी है। 

 तो आइए, उन्हीं कुछ कहानियों को जानते हैं। 

 दुर्गापुर के एक शिष्य, कृष्ण मोहन जी बड़ी गहरी बात बता रहे हैं और गुरुदेव की बदलावकारी शक्तियों को पारस की तरह बताते हैं। 

 

सवालः कृष्णमोहन जी आपने पारस का ज़िक्र किया है। पारस क्या है?

कृष्णमोहन जी: अर्थ यह है कि पारस खुली आंखों से दिखाई नहीं देता, लेकिन लोहे को छूने पर लोहा सोने की तरह चमकने लगता है। यहां आने के बाद ही लोगों को पता चलता है कि यहां पारस रहते हैं। हमारे गुरुदेव एक ऐसा पारस थे, जिन्होंने गुज़रे ज़माने के एक ठग, एक अनपढ़ व्यक्ति, जिसका कोई अस्तित्व नहीं था-उसे मानव जाति की सेवा करने वाले व्यक्ति में बदल दिया। और धीरे-धीरे यही व्यक्ति एक गुरु के रूप में जाना जाने लगा। यानी उन्होंने उसे लोहे से सोने में बदलने की प्रक्रिया शुरू की। ऐसा नहीं है कि यह आदमी सोना बन गया  क्योंकि सोना बनने में कई जन्म, कई योनियां लगती हैं। 

 
पारस रसायन विद्या में एक प्रसिद्ध पत्थर है। लोगों का विश्वास है कि यह बुनियादी धातुओं के रसायन को सोने और चांदी जैसी क़ीमती धातुओं में बदल सकता है। यह पश्चिमी और पूर्वी दुनिया में एक आम विश्वास है।

 

और अब कृष्णमोहन जी से सुनिए।

 

सवालः जब आप अपने गुरु से मिले थे-तो आप एक साधारण इंसान थे, जैसा कि आप कहते हैं कि पारस के स्पर्श से पहले आप लोहा थे। तो गुरु से मिलन होने के बाद आपकी कौन-सी आकांक्षाएं और योजनाएं बदल गईं?

कृष्णमोहन जी: 1970 में मेरी एक बहुत अमीर आदमी बनने की इच्छा थी, इतना अमीर कि मैं एक इम्पाला कार ख़रीद सकूं ताकि मुझे कार से सीधे बंगले के एक वातानुकूलित कमरे में पहुंचाया जा सके। जब मैं गुरुजी से मिला, तो मैंने सोचा कि इतनी ऊंची महत्वाकांक्षा वाला आदमी भला गुरु से कैसे मिल सकेगा। क्योंकि अगर उसकी सारी इच्छाएं-आकांक्षाएं पूरी हो चुकी होंगी, तो वह गुरु के पास जाएगा ही क्यों? यदि आपकी नियति में आपकी इच्छा-आकांक्षाओं  से कुछ ऊंचा पाना लिखा है, तो आप गुरू को तलाश लेंगे। मुझे यही ऊंची सेवा मिली है। मैं जो चाहता था, यह उससे कहीं बड़ा है।

 

सवालः बहुत अच्छा।

 

लोगों ने गुरुदेव के बदलावकारी प्रभाव को बड़ा ही रहस्यमय पाया।

नितिन गाडेकर अपनी कहानी बताते हैं।

 

नितिन जी:मैं इस गुरु के साथ जुड़ गया। मैं बताना चाहूंगा कि मुझे उनके बारे में कुछ याद नहीं रहा। और फिर कुछ समय बाद ऐसा हुआ कि श्रीकृष्ण देवलेकर,सुरेश प्रभु, सनी सेठी, श्याम धूमतकर जैसे बहुत सारे लोग जो मुझे तो जानते थे, लेकिन वे एक-दूसरे को नहीं जानते थे- हम सभी ने खार जिमखाना में टेबल टेनिस खेलना शुरू कर दिया। यहां एक मज़ेदार बात यह थी कि हममें से कुछ लोगों को छोड़ दें, तो अधिकतर को टेबल टेनिस खेलने में बहुत रुचि नहीं थी, लेकिन हम सब लोग मिलने लगे, खेलने लगे। और इसी दौरान मैंने लोगों को बताना शुरू कर दिया कि मैं एक गुरू से मिला हूं। पता नहीं कि मैं उन्हें क्यों बता रहा था। उस समय तक तो मैं गुरुजी से प्रभावित भी नहीं था, मैं उनका अनुसरण नहीं कर रहा था। यहां तक कि सनी भी मेरा मज़ाक उड़ाता था, "मुझे अपना माथा दिखाओ, मैं तुम्हारा सिरदर्द ठीक कर दूंगा", जैसी बातें करते थे। और हम सब खूब हंसते थे। हममें से कोई भी इस बारे में संजीदा नहीं था,लेकिन फिर भी मैं हर किसी को यह बताता रहता था कि मैं एक महान गुरु से मिला हूं। फिर एक दिन ऐसा हुआ कि सनी की सगाई थी और हम सब वहां गए। वहां हमें गुरुजी को लेकर शानदार अनुभव हुआ और मुझे लगता है कि उस दिन से हम सब उनके साथ जुड़ गए।

आपको यह भी बताना चाहूंगा कि मैं एक ऐसे परिवार से हूं जो पूरी तरह से मांसाहारी है। हम हर दिन मछली या मांस खाते हैं। लेकिन कुछ महीनों के बादमैंने अपने पिता से कहा कि अब आगे से मैं मांसाहारी नहीं रहूंगा।

वास्तव में किसी ने मुझे प्रभावित नहीं किया था और मैंने कभी किसी व्यक्ति की पूजा नहीं की थी। लेकिन यहां इन गुरुजी में कोई शक्ति थी। वह किसी चुंबक की तरह मुझे अपनी ओर खींचते जा रहे थे। जब भी मैं उनसे मिलता,उन्हें ही देखता रहता था। मैं उनके अलावा न किसी और को देखता था, न सोच सकता था। 

जब आप किसी मंदिर में जाते हैंतब भी आप अपने आसपास के परिवेश के प्रति जागरूक रहते हैं,लेकिन जब मैं गुरुजी के साथ रहता था,तो मैं बाकी सब कुछ भूल जाता था। मेरा दिमाग़ कई बार सुन्न हो जाता था। मुझे यह भी याद नहीं रहता था कि मैं नितिन हूं या कोई और हूं। मुझे बस मालूम रहता कि मैं एक महान आत्मा के सामने हूं। पूरा अनुभव इतना उत्साह और आनंद देने वाला होता था कि मुझे उनके पास बार-बार जाने का मन करता था।

 

गुरुदेव की एक कार्यालय सहयोगी सुशीला चौधरी ने अपने पति से महागुरू का परिचय करवाया और आगे चलकर उनके पति ने दिल्ली के पटेलनगर में स्थान की स्थापना की। 

चिकित्सकों ने कह दिया था कि वह कभी मां नहीं बन पाएंगी। इसलिएवह गुरुदेव के पास एक पुत्र का आशीर्वाद मांगने गई थीं। 

सुनने में आता है, 'एक मांगोऔर दो पाओ',लेकिन उन्होंने 'तीन' का वादा किया। गुरुदेव तो 'एक ख़रीदो और एक मुफ्त पाओकहने वाली कंपनियों की तुलना में कहीं अधिक उदार थे। 

उनके पति एक दबंग और बड़े दिल वाले थे, लेकिन उन्हें अध्यात्मवाद या गुरुदेव पर विश्वास नहीं था। फिर भीसाल भर गुरुदेव को दूर से परखने के बाद उन्होंने न केवल उन्हें अपने गुरु के रूप में स्वीकार किया,  बल्कि महागुरु के आध्यात्मिक मैट्रिक्स के प्रमुख खिलाड़ी भी बन गए।

 

सवालः मैंने सुना है कि श्री चौधरी गुरुदेव को नहीं मानते थे या…

सुशीला जीः  इन सब पर उनका कभी विश्वास नहीं था।मैं जब गुरुद्वारा बंगला साहब जाती थी, तो वह कहते थे कि मैं बाहर इंतज़ार करूंगा और तुम्हारी चप्पलों का ध्यान रखूंगा, तुम अंदर जाओ। मैं हनुमान मंदिर जाती और वह बाहर इंतज़ार करते रहते थे। वह मुझे नहीं रोकते थे, पर ख़ुद अंदर नहीं जाते थे।

सवालः कारण क्या था? उन्हें विश्वास क्यों नहीं था?

सुशीला जीः  वह नास्तिक थे। वह लोगों से ज़्यादा मिलते-जुलते भी नहीं थे। उन्हें सिर्फ खाना-पीना पसंद था। यहां तक कि परिवार में भी ज्यादा मेलजोल नहीं था। लेकिन धीरे-धीरे कुछ समय बाद गुरुदेव ने उन्हें बदल दिया। जब गुरुजी ने हिमाचल में स्थान बनाया...वह कौन सी जगह थी?

सवालः कथोग?

सुशीला जीः  हां, गुरुजी ने चौधरीजी को वहां आकर सेवा करने को कहा। चौधरीजी ने कहा, "मुझे यह सब पसंद नहीं कि बच्चे-बूढ़े आकर मुझे गुरु कहें। मैं हूं क्या?"तब गुरुजी ने कहा, "तुमको ऐसा कुछ नहीं करना है,मैं सबकुछ करूंगा। तुमको बस उन पर अपना हाथ रखना है। तुम मेरे लिए सेवा करने के लिए एक माध्यम हो,मुझे करंट पास करना है, तुम बस अपने स्थान पर बैठ कर सेवा करो। चौधरी जी ने कहा कि मेरे पिताजी ने कभी ऐसा काम नहीं किया,मैं कैसे कर पाऊंगा?गुरुदेव ने कहा, "भक्ति में बड़ी शक्ति होती है। मैं तुम्हें भक्ति और शक्ति दोनों दूंगा। मैं यहां बैठा हूंतो तुम क्यों चिंतित होते हो?"गुरुजी पटेल नगर आए और एक स्थान बनाया फिर चौधरीजी ने 1982से सेवा शुरू की।

सवालः श्री चौधरी का गुरुदेव पर विश्वास कैसे जमा?

सुशीला जीः  जैसा कि गुरुजी ने मुझसे कहा था कि मुझे एक साल के अंदर एक संतान होगी,तो मैं अकेले बस में गुड़गांव जाने लगीफिर एक दिन चौधरीजी ने कहा कि तुम इन बदबूदार बसों में सवार होकर कैसे चली जाती हो,"चलो देखते हैं कि वह व्यक्ति कौन है जिससे मिलने के लिए तुम इतनी दूर तक भागी जाती हो, वह भी बदबूदार बसों में।" फिर वह मुझे कार से उस जगह (गुड़गांव) ले जाने लगे। वहां उन्होंने देखा कि गुरुजी दर्द से पीड़ित लोगों पर हाथ रख कर उन्हें मौक़े पर ही ठीक कर रहे हैं। मुझे याद नहीं है कि वे कहां गए थे,शायद ओडी गए थे जहां गुरुजी का स्थान था। उन्होंने देखा कि बीमार लोगों को बिस्तर पर लिटाकर लाया जा रहा है और वे स्वस्थ होने के बाद अपने पैरों से चलकर वापस जा रहे हैं। यह सब देखने के बाद उन्हें गुरुजी पर पूर्ण विश्वास हो गया और उन्हें लगा कि पृथ्वी पर ऐसी शक्तियों वाला कोई दूसरा गुरु नहीं है, और न कभी होगा। बाद में गुरुजी पर उनका विश्वास मुझसे भी अधिक हो गया था।

सवालः श्रीमती चौधरी मैं श्री चौधरी के बारे में ये प्रश्न इसलिए पूछ रहा हूं क्योंकि मैं जानना चाहता हूं कि क्या ये आध्यात्मिक लोग शरीर छोड़ने के बाद भी आध्यात्मिक कार्य करते रहते हैं? तो, क्या आप मुझे कुछ और अनुभवों के बारे में बता सकती हैं जो लोगों ने आपको बताए हों?

सुशीला जीः  हां, लोग आते हैं और मुझे इसके बारे में बताते रहते हैं। वे मुझे बताते हैं कि श्री चौधरी उनके सपने में आते हैं,उन्हें आशीर्वाद देते हैं और उनका काम हो जाता है।

विश्वास चेतन मन के स्तर से अधिक गहरा होना चाहिए। उनके मामले में, कहानी उनके निधन के साथ समाप्त नहीं हुई। स्वर्गीय श्री चौधरी अभी भी सेवा में सक्रिय हैं। उनका विश्वास जीवन से आगे निकल गया!

अशोक भल्ला याद करते हैं कि गुरुदेव जैसा कोई नहीं।

 

सवालः उन्होंने आपको आध्यात्मिक रूप से विकसित होना किस तरह सिखाया?

अशोक जीः उन्होंने कुछ नहीं बताया। आपस के संवाद से आगे की कोई बात होनी चाहिए,जो मैं नहीं जानता कि क्या है। मगर कुछ ऐसा है जो अपने आप आपको प्रेरित करता है। एक और बात,चूंकि मुझे पता है कि मैं उनके बताये हुए रास्ते पर चल रहा हूंतोमैं बैठकर उसी तरह से पाठ करने लगता हूं, जैसे वे मुझसे करवाना चाहते थे। मैं उन्हें नहीं बताता था कि गुरुजी मैं यह कर रहा हूं, लेकिन वह मुझसे कहते कि तुम बहुत मेहनत कर रहे हो, अच्छी बात है। ऐसा कहकर वह मुझे प्रोत्साहित करते थे। उनका वह प्रोत्साहन भी अद्भुत काम करता था। लेकिन यह केवल प्रोत्साहन नहीं था,इसके अलावा भी कुछ था। 

 

सवालः आपकी नजर में गुरुदेव का व्यक्तित्व कैसा था?

अशोक जीः बहुत ऊर्जावान,बहुत निडर। जंगल के राजा की तरह,बिल्कुल शांत,हमेशा हंसमुख,कभी उदास नहीं। वह हमें हर हाल में सकारात्मक रहने की सलाह देते थे, हम उनके निर्देशों का पालन करते थे। 

 

महागुरू ने अशोक जी के गुस्से को शांत बर्ताव में तब्दील कर दिया था। 

ऐतिहासिक और भौगोलिक दृष्टि से गुरुओं के साथ बहुत सम्मानित व्यवहार किया जाता है और शिष्य और भक्त उनकी सेवा करके सम्मानित महसूस करते हैं।

गुरुदेव एक ऐसे महागुरु थे जो इसके विपरीत चलते थे।

जब वह हमें यात्रा पर ले जाते थे तो ज़्यादातर ख़ुद ही गाड़ी चलाते थे और रास्ते में हमारे लिए खाने-पीने का इंतज़ाम भी करते थे। सेवा करने के बजाय अधिकतर मौक़ों पर महागुरू स्वयं सेवादार बन जाते थे!

 

मुझे लगता है कि  उनके हास्यबोध को ध्यान में रखते हुए उन्हें 'उल्टा गुरु' कहना गलत नहीं होगा।

 

आइए, पूरण जी के पास चलते हैं।

सवालः गुड़गांव के स्थान पर सेवा करने वालों के प्रति उनका व्यवहार कैसा था?

पूरण जीः वह सभी लोगों के लिए एक गुरु से भी अधिक पिता के समान थे।सभी की परवाह करते थे, सबसे बहुत प्यार करते थे। वह कभी किसी पर गुस्सा नहीं करते थे। एक बार, रात के करीब 1.30या 2बजे गुरुजी खाना खा रहे थे, तब तक मैंने खाना नहीं खाया था। गुरुजी दरवाज़ा बंद करके भोजन करते थे। मुझे भूख लग रही थी। मैं दूसरे दरवाज़े से गया और गणेश से मैंने खाना देने के लिए कहा। मैंने लंगर से दोरोटियां लीं और अलग रख दीं। जैसे ही मैंने खाने की शुरुआत कीगुरुजी आ गए। उन्होंने मुझे देखा और कहा,क्या तुम खाना ऐसे ही खाते हो?वह छोटी रसोई के अंदर गये,मुझे खाना दिया और कहा, "इसे अभी खाओ"। उन्होंने मुझे भरपूर खाना खिलाया। इस तरह से वह अपने सभी बच्चों की परवाह करते थे।

 

आगे हम जिस सज्जन से बात करने जा रहे हैं उनका नाम टोनी है। 

गुरुदेव ने उन्हें अपनी ओर किस तरह आकर्षित किया?

 

सवालः हमें बताएं कि आप गुरुदेव के पास कैसे आए?

टोनी जीः  मेरी एक गर्लफ्रेंड थी। उसने मुझे बताया कि वह गुरुजी से मिलने जा रही है। तो, मैंने कहा, "ठीक है, मैं भी उनके साथ कुछ समय बिताऊंगा और लेख लिखूंगा कि यह गुरू किस तरह लोगों के साथ धोखाधड़ी कर रहे हैं। इस तरह कुछ बियर पार्टियों के लिए पैसे कमा लिए जाएंगे।" और ऐसे ही मैं गुरुजी के पास आया। 

सवालः गुरुदेव के पास जाने का यह अच्छा तरीक़ा मालूम पड़ता है। और फिर क्या हुआ? कहां गड़बड़ हो गई?

टोनी जीः  गुरुदेव ने मुझे दूर से देखा और हंसने लगे। बोले, "अच्छा तू आ गया"मानो वह मुझे पहचानते हों। गुरूजी ने मेरे सिर पर हाथ रखा और मुझे लगा जैसे मेरे सिर से हज़ारों टन बोझ कम हो गया हो। मैं सोचता रहा कि गुरूजी सम्मोहन भी जानते हैं।

सवालः फिर?

टोनी जीः उसके बाद मैं आने लगा,फिर मैंने जो किया वह तर्क से परे है।

हमें बताइए

जब भी दिल्ली में मेरा एकाध घंटे का समय होता, मैं उनसे मिलने के लिए स्थान पर पहुंच जाता था। मेरे पास पैसे नहीं होते थे फिर भी मैं उन्हीं पैसों से पहुंच जाता था और लौटकर भी वापस आ जाता था।

सवालः एक सम्मोहनकर्ता से मिलने के लिए?

टोनी जी:  सम्मोहनकर्ता नहीं! उसके बाद मैंने उन्हें कभी सम्मोहनकर्ता की तरह नहीं देखा।

सवालः क्या आप धार्मिक व्यक्ति थे?

टोनी जीः नहीं,मैं सबसे नास्तिक व्यक्ति था। मैं शराब पीता था,मैं हर तरह का मांसाहारी भोजन करता था,  मैं सभी वैसे काम करता था, जिसे समाज गैर-धार्मिक मानता है।

सवालः उनको लेकर आपका क्या अनुभव है?

टोनी जीः जीवन बदलने लगा। बहुत सारी आकर्षक और आनंददायी चीज़ों के प्रति मेरा दृष्टिकोण बदलने लगा था। मेरे भीतर बदलाव अपने आप होने लगा, उन्होंने कभी नहीं कहा... 

सवालः और, जब यह सब आपके साथ हो रहा था,तब आप कितने साल के थे?

टोनी जीः 23 साल।आप कह सकते हैं कि गुरुदेव से मिलने के 6महीने के भीतर ही यह बदलाव होने लगा

सवालः क्या उन्होंने ईश्वर, धर्म या अध्यात्म पर कोई व्याख्यान दिया?

टोनी जीः नहीं, गुरूजी कभी ज्यादा नहीं बोलते थे। मुझे सिर्फ़ अनुभव होते थे औरये अनुभव कुछ ऐसे होते थे जिन्हें आप शब्दों में बयां नहीं कर सकते।

सवालः क्या आपको लगता है कि वह सिर्फ एक अच्छे इंसान थे। बस, इतना ही?

टोनी जीः मुझे लगता है कि वह लौकिक चेतना का मूर्तरूप थे। लोग स्वयं ईश्वर का अवतार हैं, इस बात की जागरूकता लाने के लिए उन्होंने गुरू तैयार किए।  

टोनी यह सोचकर वहां गए थे कि वह एक और धोख़ेबाज़ गुरु को बेनक़ाब करते हुए कुछ लिखेंगे और पैसे कमाएंगे। यह उनके लिए सौभाग्य की बात रही किपहिया उल्टा घूम गया और वह गुरुदेव के मुरीद हो गए।

टोनी और मैंने सोचा था कि गुरुदेव एक सम्मोहनकर्ता हैं। पर हमारा कोई तर्क, हमारी बुद्धि काम नहीं कर रही थी। वह लोगों को जिस तरह से तुरंत राहत पहुंचाते थे, आखिर हम इसे कैसे समझा सकते थे?

दो युवा जो अभी तक डिस्को से देवत्व की ओर स्थानांतरित नहीं हुए थे, उनकी समझ भी तो सीमित होगी। हालांकि समय के साथ अक्ल और सही निर्णय लेने की क्षमताआती है। 

हरीश जी एक बहुत भले इंसान हैं जो पंजाब में होशियारपुर स्थान पर सेवा करते हैं और गुरुदेव के हरियाणा स्थित गृहनगर के स्थान में भी सहायता करते हैं।

 

हरीश जी के साले हैं वेद जी। शराब की लत पर क़ाबू पाने के बाद वेद जी गुरुदेव के कट्टर भक्त बन गए। उन्होंने जालंधर में मामाजी नामक व्यक्ति के घर में स्थापित स्थान में सालों तक सेवा करके स्थान में सहयोग दिया। आइए उनके साथ बातचीत करें:

 

सवालः वेद जी, गुरुदेव के साथ आपका क्या अनुभव है?

वेद जीः  मेरे जीजा श्री कपूर गुड़गांव में रहते थे। मैं शराबी था। उन्होंने मेरे बारे में गुरुदेव से बात की। मेरे मामा जी, जो पास में ही रहते थे, वह जालंधर से मुझे लेने आए और बोले,"गुरुजी आपसे मिलना चाहते हैं"। मैं उनसे मिलने गया और उनके आशीर्वाद से मैंने शराब छोड़ दी।

सवालः आपकी शराब छुड़वाने के लिए क्या उन्होंने आपसे किसी तरह का काम करवाया?

वेद जीः  कुछ भी नहीं। बस उनका आशीर्वाद था। उन्होंने मुझे सिर्फ दोपेग पीने के लिए कहा। एक-दो महीने बाद मैंने वो दोपेग भी पीना छोड़ दिया। उन्होंने मुझे कभी किसी चीज़ के लिए नहीं रोका और मुझे कभी नॉन वेज छोड़ने के लिए भी नहीं कहा। लेकिन उनके साथ रहकर मैंने नॉन वेज खाना भी छोड़ दिया.

नशाखोरी से परोपकारिता तक का सफर कहने-सुनने में मामूली लगता है, लेकिन यह इंसान के व्यक्तित्व में एक बड़ा बदलाव है!

शराब पर ध्यान लगाने वाला एक और मुंबईकर जो परमात्मा का ध्यान लगाने लगा, उसका नाम है गिरी लालवानी।

 

सवाल: क्या आप में कोई स्पष्ट बदलाव दिखाई दिया ? पहले आपकी जीवनशैली क्या थी?

गिरि जीः मेरी जीवनशैली पूरी तरह बदल गई। पहले मेरी जीवनशैली में देर रात की पार्टियां और शराब पीना शामिल था। फिर जब मैंने 6 दिसंबर 1982 को गुरुदेव के दर्शन किए, उसके बाद मैं कभी भी शराब नहीं पी सका। मैं एक टीटोटलर बन गया। मुझे पता ही नहीं चला कि मैं टीटोटलर बन गया हूं। मैं शाकाहारी बन गया। उन्होंने मुझे कभी शाकाहारी बनने के लिए नहीं कहा। लेकिन उनके दर्शन मात्र से मेरे व्यक्तित्व में बदलाव आ गया। 

 

एक पुरानी कहावत है कि चंदन के पेड़ की बग़ल में उगने वाला कोई भी पेड़-पौधा उसकी कुछ सुगंध प्राप्त कर ही लेता है। ऐसा लगता है कि यह कहानी हम पर फिट बैठती है।

 

नितिन गाडेकर इस बारे में क्या सोचते थे?

 

सवालः अपने गुरु से मिलने से पहले और अब, क्या आप एक अलग इंसान की तरह महसूस करते हैं, और यदि हां, तो किस तरह से? क्या जीवन में चीज़ों को देखने का कोई अलग तरीक़ा है?

नितिन जीः मैं निश्चित ही चीज़ों को बहुत अलग तरीक़े से देखने लगा हूं। अपने गुरु से मिलने से पहले  मैं सिर्फ एक भाग्यशाली और ख़ुशमिजाज़ आदमी था। मैंने जीवन को न तो गंभीरता से लिया और न ही किसी घटना के बारे में ज्यादा सोचा। लेकिन गुरुजी से मिलने के बाद, मुझे लगता है कि कुछ समय से मैं सबकुछ आध्यात्मिक नज़रिये से देखने लगा हूं। वास्तव में बाक़ी चीज़ों के अलावा अपनी दिनचर्या को भी आध्यात्मिक ढंग से देखने-सोचने लगा हूं। मुझे लगता है कि मैं बीते सालों में एक भ्रमित इंसान था और इसी वजह से कमज़ोर भी था। लोगों की नज़रों में, यहां तक कि कुछ मामलों में अपनी नज़रों में भी। मैं हर दिन डर के साथ जागता था। मुझे यह एहसास होने लगा कि...मैं हर समय ख़ुद को किसी तीसरे व्यक्ति के रूप में देख रहा था...मैं खुद को कमज़ोर,अनिश्चित होते हुए देख रहा था। नितिन गाडेकर की दुनिया में सबकुछ इतना आक्रामक नहीं था। मैं बदलने लगा। हालांकि अपने हाव-भाव से लोगों को ज़ाहिर नहीं करता था, लेकिन मैं जानता था कि मैं अंदर से बदल गया हूं। पिछले कुछ सालों मेंमुझे लगता है कि कहीं न कहीं कुछ घटा है-मुझे नहीं पता क्या,लेकिन मुझे धीरे-धीरे लगने लगा कि मेरा पूरा जीवन किसी और के हाथ में चला गया है। मुझे लगता है कि हम जिन गुरुदेव पर विश्वास करते हैं वह हमारी सोच से कहीं अधिक बड़ी शक्ति हैं।

 

मैं गुरुदेव के एक शिष्य उद्धव कीर्तिकर ने जो कहा, उसे बताना चाहूंगा। कीर्तिकर अब न्यूज़ीलैंड में रहते हैं। उनका कहना है,"आप एक तस्वीर में समस्त दृश्यों को शामिल नहीं कर सकते या एक बोतल में समुद्र को बंद नहीं कर सकते। महागुरु बहुत विशाल थे और उनको समझ पाना बहुत कठिन था। ऐसा लगता है कि उनके किसी भी शिष्य को उनकी वास्तविकता का ज़रा सा अहसास ही हुआ, उससे अधिक कुछ नहीं।"

 

शिव तत्व वाले इंसान में स्वाभाविक रूप से शिव की कमज़ोरियां भी होंगी। एक कमज़ोरी जो मैंने गुरुदेव में देखीवह यह थी कि वह बड़ी आसानी से प्रसन्न हो जाते थे और लोगों को तुरंत पुरस्कृत कर देते थे। 

 

गुरुदेव ज़ोर देकर कहते थे कि मैं हर महीने बड़ा गुरुवार को हवाई जहाज़ से गुड़गांव जाऊं। उस समय हवाई जहाज से गुड़गांव जाने की मेरी हैसियत नहीं थी। सबसे बढ़कर, गुड़गांव के ड्यूटी चार्ट पर अक्सर मेरे नाम की जगह किसी और का नाम लगा दिया जाता था, जिससे मुझे परेशानी होती थी, मैं अपने आपको ठगा-सा महसूस करता था। तीन महीने बाद,गुरुदेव ने मुझे अपने कमरे में बुलाया और मुझसे मेरी सेवा के बारे में पूछा। मैं शर्मिंदगी से चुप था। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता,उन्होंने मेरे हाथ में एक लौंग रख दी और मुझसे उसे निगलने को कहा। मैंने वैसा ही किया। उन्होंने कहा,"अब तुम जा सकते हो,तुम्हारा महामृत्युंजय सिद्ध हुआ!" 

 

एक मंत्र जिसे सिद्ध करने में मुझे सालों लग जाते, वह  एक सेकंड में पूर्ण रूप से सिद्ध करके मुझे सौंप दिया गया था। मुझे उस मंत्र के शब्द भी मालूम नहीं थे। उन्होंने बाद में फोन कॉल पर वे शब्द मुझे बताए। गुरुदेव ने ओम और अन्य शिव चिह्नों को सैकड़ों लोगों को हस्तांतरित किया, मानो वह कोई एक फ्रेंचाइज़ी उत्पाद हों। परवाणू के गुप्ता परिवार के सभी सदस्यों को उनकी दूसरी या तीसरी मुलाक़ात में ही उनके हाथों पर ओम दिया गया था। ऐसे कई अन्य लोग भी थे! 

 

हिमाचल के एक कम जाने-पहचाने शहर कथोग मेंगुरुदेव ने जिस स्कूल में कैंप लगाया था, उस स्कूल के कई शिक्षकों को सेवा दी।उन्होंने कुछ ही मीटिंग के बाद शिक्षकों को उपचारकर्ता में बदल दिया!

 

यह कोई साधारण उपलब्धि नहीं थी! 

 

जम्मू के जैन साहब को सेवा का अर्थ जाने बिना गुरुदेव ने घर पर सेवा करने के लिए कहा था। गुरुदेव का ये उनको प्रशिक्षण देने का एक तरीक़ा था।

 

मुश्किल से 8 से 10 दिनों तक गुरुदेव के साथ रहने के बाद उन्होंने हमें शक्तिशाली मंत्र दे दिए। और कुछ ही महीनों में हमें गद्दी पर बैठने के लिए कहा गया जो कि गुरु की शक्ति का आसन था। और हमें लोगों को ठीक करने के लिए कहा गया।

 

गुरुदेव की ट्रेन सुपरफास्ट थी। मुझे लगता है कि उनके पास समय सीमित था और काम असीमित थे।

 

नितिन गाडेकर का इस बारे में क्या कहना है?

 

नितिन जीः मुझे लगता है कि उन्होंने किसी भी माध्यम से अपनी शक्ति के मुक्त प्रवाह पर जोर दिया। मुझे लगता है कि हम सभी ऐसे माध्यम थे जिनके बारे में वह सोचते थे कि हम आगे बढ़ेंगे और कुछ न कुछ करेंगे। मुझे स्पष्ट रूप से याद है कि गुरुजी ने लोगों से कहा था कि हम लोग कई जन्मों से एकदूसरे को जानते हैं। कई संतों ने कहा है और भारत में यह एक आम धारणा है कि कई संत एक दूसरे को या उनके शिष्यों को कई पीढ़ियों से जानते थे। इसलिए मुझे लगता है कि गुरुजी जानते थे कि कौन क्या था, नितिन गाडेकर कौन है और कौन कौन है। उन्हें पता था कि हमारे पिछले जन्म में उनके साथ हमारा क्या संबंध था या हम आगे कहां होंगे।तो हो सकता है हमें लगे कि हमें गुरुदेव द्वारा चुना गया है, जबकि ऐसा नहीं है क्योंकि हमें कई जन्मों पहले से ही चुन लिया गया था।

 

नितिन का 'माध्यम' शब्द का संदर्भ, पश्चिमी दर्शन और व्यवहार के 'माध्यम' शब्द के अर्थ से 

बहुत अलग है। वह यहां 'माध्यम' को गुरु की शक्ति का वाहक होने की बात कर रहे हैं।

 

आज हम जिस व्यक्ति से बात करने जा रहे हैं,वह भले ही आज विनम्रता का परिचय देते हैं,लेकिन कुछ सालों पहले बिल्कुल विपरीत थे!

 

आइए सुनते हैं शिकागो के सुरेंद्र कौशल जी को:

 

सुरेंद्र कौशल जी: मैं बहुत गर्म स्वभाव का व्यक्ति हुआ करता था और अब मैंने अपने आप में बहुत सुधार किया है। इसमें मुझे बहुत समय लगा। लेकिन जब भी मुझे गुस्सा आता है तो मैं हमेशा गुरुजी के बारे में सोचता हूं। उनके बिना शर्त प्यार ने मुझे बदल दिया। और मैं यहां आने वाले सभी लोगों को वही प्यार देना चाहता हूं।

हम गुरुदेव के आभारी हैं कि उनके प्रभाव के कारण हममें से अधिकतर लोगों ने अपने स्वभाव में होने वाले परिवर्तन को महसूस किया। लेकिन हमारा ध्यान गुरुदेव द्वारा इसके लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया पर नहीं गया। यद्यपि हम इसे उनका बिना शर्त प्यार कह सकते हैं, पर हम इसे भावशून्य ढंग से भी समझा सकते हैं। 

जब शक्ति का एक विशाल गोला, आप चाहें तो इसे ऊर्जा कह सकते हैं, आप पर ध्यान केंद्रित करता है और नियमित रूप से आपके संपर्क में आता है तो यह आपकी आभा के सूक्ष्म रसायन को चुंबकीय रूप से प्रभावित करता है, जिससे आपकी चेतना बढ़ जाती है। क्या यह ऐसा इसलिए होता है कि लोग गुरुदेव की उपस्थिति में या उनका विचार करके आनंदित महसूस करते हों?

मैं इस विचार को और अच्छे से समझाने के लिए अशोक साहिल का एक शेर प्रस्तुत कर रहा हूं

तुम्हारे दर पे आने तक बहुत कमज़ोर होता हूं

तुम्हारे दर पे आने तक बहुत कमज़ोर होता हूं

मगर दहलीज़ छू लेते ही मैं कुछ और होता हूं [HD1] 

मैं कुछ और होता हूं

 

सुरेश प्रभु ने गुरुदेव के भौतिक नहीं, बल्कि पारलौकिक रूप के बारे में अपने विचार साझा किए:

सुरेश जीः मैं कभी नहीं सोचता कि वह यहां मौजूद नहीं है, क्योंकि कभी-कभी मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि जब आपके पास भौतिक रूप में कोई होता है तो उसकी एक सीमा होती है कि आप उस व्यक्ति से उसके शारीरिक हाव-भाव से जुड़े हो सकते हैं। लेकिन कभी-कभी अगर वह नहीं होता है तो इसका मतलब है कि वह आपके साथ एक पूर्ण रूप में होगा,ज़रूरी नहीं कि साक्षात रूप में हो, लेकिन वास्तव में वह खुद को विभिन्न तरीक़ों से प्रकट करता है।

एक गुरु के रूप में वह सबसे महान थे!

उन्होंने ऐसे मानक तय किए कि उनको पूरा करना लगभग असंभव है। हम अभी भी लड़खड़ा रहे हैं, उनकी अपेक्षाओं को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं।

उम्मीद है कि एक दिन हम उनकी अपेक्षाओं पर खरे उतर सकें।

इंशा अल्लाह!

नरेंद्र जी भृगु संहिता से गुरुदेव के बारे में एक पाठ सुनाते हैं।

नरेंन्दर जीः हमने भृगु संहिता में गुरुदेव के बारे में कई रोचक और महत्वपूर्ण बातें सुनी थीं। इनके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं थी। जैसे कि सबसे महत्वपूर्ण बातों में से एक यह है कि गुड़गांव के गुरुदेव शिव के अंश हैं और शिव के अंश होने के नाते  वे शिव का रूप और स्वरूप हैं। वह गुड़गांव में लोगों का इलाज करते हैं। लोग उनके पास आते हैं और उन्होंने अपने शिष्यों को कुछ शक्तियां दी हैं जिनके द्वारा वे लोगों का उपचार करते हैं और आशीर्वाद देते हैं। सेवा करते समय उनसे मिलने आने वालों की भीड़ लग जाती थी। फिर बाद में हमें पता चला कि गुरुदेव एक दिन अपना शरीर छोड़ देंगे। भौतिक अर्थ में हम इसे 'मृत्यु'कहते हैं। लेकिन मैं यहां 'मृत्यु'शब्द का इस्तेमाल नहीं करूंगा। चूंकि गुरुजी अमर आत्मा हैं,शिव का अंश हैं और इस प्रकार वह सर्वव्यापी हैं। हमने यह भी सुना था कि जब गुरुजी अपने भौतिक रूप में नहीं होंगे, तो  वह स्वर्गव्यापी हो जाएंगे,जिसके बाद वह एक विशेष स्थान पर होंगे जो हस्तिनापुर है।  यानी की उनकी नज़फ़गढ़ की समाधि। लेकिन वह जहां चाहें वहां उपलब्ध होंगे और जिसको दर्शन देने होंगे, वही उनको वहां देख पाएगा।

 

जिन लोगों का जीवन उन्होंने प्रभावित किया  वे प्रभावित होने के लिए ही बने थे। वे लोग महान बनने के लिए पैदा हुए थे और गुरुदेव ने उन्हें महान बनाने के लिए जन्म लिया था। जीवन और आत्मनियंत्रण ने उन्हें अपने आपको भूलने की शक्ति प्रदान की। समय की मांग थी कि उनकी पिछली जीवन दक्षताओं को पुनर्जीवित किया जाए और उन्हें उनकी उपलब्धियों से अवगत कराया जाए।

ऐसा होने के लिए एक क्यूरेटर की आवश्यकता थी जो विरक्त कर सके, प्रेरित कर सके और सबकुछ सही कर सके। इसलिए हमने उन्हें 'पारस' के रूप में देखा, जिन्होंने मटमैले सोने को चमकता हुआ सोना बना दिया।

 

मैं महागुरु की पसंदीदा उर्दू गज़ल का उल्लेख करना चाहूंगा। मैं इसकी प्रासंगिकता की गारंटी देता हूं। 

 

कवि कहता है कि दिखावे की इस दुनिया का रहस्य कोई नहीं समझ सकता कि कौन 'खिलाड़ी' है और कौन 'खिलौना' है

 

कोई समझा नहीं ये महफ़िले दुनिया क्या है

कौन खेलता है किसका खिलौना क्या है.

 

बाद मरने के हुआ बोझ सभी को मालूम

बाद मरने के हुआ बोझ सभी को मालूम

जल्द ले जाओ, इस ढेर में रक्खा क्या है

कोई समझा नहीं ये महफ़िले दुनिया क्या है.

 

दो घड़ी रो लेंगे एहबाब तेरे घर वाले

दो घड़ी रो लेंगे एहबाब तेरे घर वाले

फिर भुला देंगे तुझे तू समझा क्या है.

कोई समझा नहीं ये महफ़िले दुनिया क्या है.

 

शौक गिनने का है तो अपने अहमालों को गिन

शौक गिनने का है तो अपने अहमालों को गिन

तेरी गिनती नहीं दौलत को तू गिनता क्या है.

कोई समझा नहीं ये महफ़िले दुनिया क्या है.

 

कौन खेलता है किसका खिलौना क्या है.

मैं वो शय हूं जिसे छू लूं उसे सोना कर दूं

मैं वो शय हूं जिसे छू लूं उसे सोना कर दूं

मैं तो पारस हूं, पारस को तू परखता क्या है. 

कोई समझा नहीं ये महफ़िले दुनिया क्या है

कौन खेलता है किसका खिलौना क्या है.


 [HD1]Guruji's voice