The Guru of Gurus - Audio Biography

बुड्ढे बाबा की रहस्यमय यात्रा

September 16, 2021 Gurudev: The Guru of Gurus
The Guru of Gurus - Audio Biography
बुड्ढे बाबा की रहस्यमय यात्रा
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अगर आपको लगता है कि शर्लक होम्स सबसे रहस्यमय चरित्र है जिसके बारे में आपने सुना है, तो आपके पास एक और अनुमान आ रहा है - बुद्ध बाबा, गुरुदेव के अदृश्य गुरु। गुरुदेव की चमत्कारों की पुस्तक के पीछे लेखक।

बुड्ढे बाबा की रहस्यमय यात्रा एक अलग वास्तविकता में झाँकने में, सामान्य मानवीय धारणाओं को फिर से जाँचने में, घबराहट में एक सबक होगा।

अब तक के सबसे महान गुरुओं में से एक,
बुद्ध बाबा

गुरुदेव ऑनलाइन गुरुओं के गुरु - महागुरु की ऑडियो बायोग्राफी प्रस्तुत करता है।

यदि इस पॉडकास्ट से संबंधित आपका कोई सवाल है या फिर आपको आध्यात्मिक मार्गदर्शन की आवश्यकता है, तो हमें लिखें - answers@gurudevonline.com

आप गुरुदेव की जिंदगी और उनकी विचारधारा के बारे में इस वेबसाइट पर भी पढ़ सकते हैं - www.gurudevonline.com

जो शख्स गुरुदेव का मार्गदर्शन कर सके और उनके मौजूदा जीवन में उनके गुरु की भूमिका निभा सके, वो किसी सुपरमैन से तो कम नहीं रहा होगा। इस पॉडकास्ट में हम बता रहे हैं कि कैसे कई लोग उस इंसान का राज़ जान ही नहीं पाए। मुझे याद आती है एक पुरानी कहानी, जिसमें एक अंधा व्यक्ति अंधेरे में काली बिल्ली की तलाश करता रहता है, जबकि बिल्ली वहां होती ही नहीं है। आइए, हमारे साथ शामिल हो जाइए....  

बुड्ढे बाबा की रहस्यमय यात्रा

मुझे यक़ीन है कि यदि हमने बुड्ढे बाबा नामक इंसान का रहस्य खोजने के लिए शेरलॉक होम्स की मदद ली होती, तो उन्होंने भी मायूस होकर अपने हाथ खड़े कर दिए होते। गुरुदेव, बुड्ढे बाबा को अपना गुरू बताते थे। उनके कई शिष्यों का दावा है कि बुड्ढे बाबा कोई और नहीं, बल्कि स्वयं शिव थे। आम धारणा के विपरीत शिव एक सत्ता हैं। शिव गुणों, उपलब्धियों, अहसासों और चेतना के स्तरों का एक समूह हैं। और शिव का यह रूप इतिहास में अनेक लोगों को उपलब्ध हुआ है।

अधिकांश ब्रह्मर्षि और आध्यात्मिक हस्तियां जैसे गुरु वशिष्ठ, विश्वामित्र, अष्टावक्र, गोरक्षनाथ, जीसस, बुड्ढे बाबा और सप्तऋषियों सहित कई अन्य लोगों ने एक के बाद एक इस पृथ्वी पर अवतार लिया, लेकिन अपने कई जन्मों की अंतर्निहित आध्यात्मिक उपलब्धियों के कारण अस्तित्व के  इस रूप को प्राप्त किया और शिव बन गए।

गुरुदेव, जिन्होंने इस जन्म से पहले कई जन्मों में बहुत सारी आध्यात्मिक शक्तियां प्राप्त की थीं, उन्होंने वर्तमान अवतार शिव के शिष्य के रूप में लिया था और आगे चलकर उसी शिव का साकार रूप बन गए, जिसकी उन्होंने पूजा की।

दुनिया के आध्यात्मिक इतिहास में यह परिवर्तन केवल एक बार हुआ हो, ऐसा नहीं है। मेरी समझ के अनुसार जीसस, नानक देव, हनुमान जी, गोरक्षनाथ, अष्टावक्र, बुड्ढे बाबा, बनारस के सीताराम जी जैसी कई अन्य हस्तियां भी इस मंडली में शामिल हैं। मेरे पास अपने इस दावे का समर्थन करने के लिए कोई दस्तावेज़ी सबूत नहीं है, बस पक्का भरोसा है। 

यद्यपि, गुरुदेव ने बुड्ढे बाबा की पहचान को अत्यंत गंभीरता से संरक्षित रखा था, कई लोगों का दावा है कि बुड्ढे बाबा और कोई नहीं-शिव ही थे, जबकि कुछ लोग यह भी कहते हैं कि वह वास्तव में बनारस के सीतारामजी थे।

बनारस के सीताराम जी, दसुआ के सीताराम जी के गुरु थे। और दसुआ के सीताराम जी गुरूदेव के गुरू थे। दसुआ के सीताराम जी के बाद बनारस के सीताराम जी ने गुरूदेव को महागुरू की पदवी सौंपी। दसुआ के सीताराम जी की देख-रेख में गुरुदेव ने कई सिद्धियां प्राप्त कीं, लेकिन बुड्ढे बाबा के कहने पर आगे चलकर उन सबका त्याग कर दिया। 

गुरुदेव ने यक्षिणी, मोहिनी, महा मोहिनी, महा यक्षिणी, बगला सिद्धि, ख्वाज़ा सिद्धि जैसी कई नीचे मानदंड की सिद्धियां प्राप्त की थीं। ये निचले मानदंड वाले देवी-देवताओं की सिद्धियां थीं। ये छोटे-छोटे काम या उपचार में मदद करती थीं। ये सांप काटने का उपचार, लोगों को नकारात्मक ऊर्जा या हानिकारक आत्माओं आदि से बचाने में मदद करती थीं। ये सिद्धियां उस इंसान की शख्सियत के लायक़ नहीं थीं, जो शिव का प्रतीक हो।

बुड्ढे बाबा चाहते थे कि गुरूदेव और ऊंचाइयां हासिल करें, और कई पीएच.डी. प्राप्त करने के लिए गुरुदेव को निचले स्तर के डिप्लोमा त्यागने पड़े।

तो, बुड्ढे बाबा कौन थे? 

यह एक लाख टके का सवाल है।

हम जितनी अधिक खोजबीन करते हैं, हमारा मैग्नीफाइंग ग्लास उतना ही धुंधला होता जाता है और जवाब हमसे दूर होते जाते हैं। 

गुरुदेव के जीवन में बुड्ढे बाबा की बड़ी खास जगह थी। महागुरू ने अपने सभी कार्यों की ज़िम्मेदारी बुड्ढे बाबा को सौंप दी थी। 

गुरुदेव के रहस्यमय मार्गदर्शक पर पहली टिप्पणी कर रहे हैं हिमाचल प्रदेश में कथोग के पास सुनेत गांव में रहने वाले सुरेश कोहली। उन्हें गुरुदेव को लेकर कुछ अद्भुत अनुभव हुए हैं। गुरूदेव ने उन्हें कई साधनाएं सिखाईं। इनमें से एक थी बारिश को रोकना। 

सुरेश जी:जब हमने 7 अप्रैल को गुरुदेव से पूछा, "आपको ये शक्तियां कैसे मिलीं? इनकी उत्पत्ति कहां से हुई?"उन्होंने जवाब दिया, "पहले,मैं एक जाप करता था। उस समय मैं मध्य प्रदेश में था। वहां सर्वे करते हुए मैं अकेला चला जा रहा था। बीच में मुझे एक मंदिर मिला। उस मंदिर में एक साधु बैठा था। मैं तंबाकू खा रहा था। साधु ने मुझसे तंबाकू मांगा। मैंने उसे थोड़ा-सा तंबाकू दे दिया।"

 

सुरेश कोहली जी उस घटना का ज़िक्र कर रहे हैं जिसमें गुरुदेव एक महात्मा से मिले थे।  उस महात्मा ने गुरुदेव द्वारा जाप किए जा रहे मंत्र को सुधारा। उसमें कुछ रहस्यमय, गुप्त शब्दों को जोड़कर उनके गायत्री मंत्र को महागायत्री मंत्र में बदल दिया। गुरुदेव की मंत्र विद्या की दिशा में यह एक बड़ा परिवर्तनकारी मोड़ था। जैसे ही उन्होंने इस मंत्र का जाप करना शुरू किया, उनके निजी जीवन में तत्काल चमत्कार हुए।

सुरेश जी बताते हैं कि गुरुदेव के अनुसार मंत्र बदलने के बाद क्या हुआ।

 

सुरेश जी:"मैंने नया जाप करना शुरू किया और मेरे जीवन में जो कुछ चल रहा था उसको लेकर मैं थोड़ा उलझन में था। फिर जब मैं एक रात को जाप कर रहा था तो मुझे एक संत का दर्शन हुआ। वह बोले,'तुमकिसको ढूंढ़ रहे हो?तुम तो मुझे पहले ही पा चुके हो, भले ही तुम मुझे पहचान नहीं पाए। अपना हाथ देखो,हथेली पर एक ओम बना है।' फिर सीने में ओम आ गया। जब मैंने अपनी हथेली को देखा,तो उस पर एक ओम चमक रहा था। मेरे सीने पर भी। मैंने झट से अपने हाथों को एक कपड़े से लपेट लिया और अपनी बनियान पहन ली। अगले दिन मैं सुबह-सुबह उस मंदिर में पहुंचा, लेकिन वहां कोई साधु नहीं था। मंदिर सुनसान था। मैंने आस-पास के बुज़ुर्गों से पूछा तोउन्होंने कहा कि आप किसकी बात कर रहे हैं। यह मंदिर वीरान पड़ा रहता है और यहां कोई नहीं आता। मैंने कहा,लेकिन मैं तो उनसे यहां मिला था। उन्होंने जवाब दिया,हां,कुछ लोगों का कहना है कि वे यहां पर एक साधु को देख पाते हैं। लेकिन यहां कोई नहीं रहता। हम नहीं जानते कि वह कौन है। तो, मैं लौट आया और उस रात पाठ करने बैठ गया। साधु ने दर्शन देकर कहा,"अब तुम्हें मेरी तलाश करने की ज़रूरत नहीं है। मैं तुमसे तुम्हारे पाठ में आकर मिलूंगा, लेकिन तुमको सेवा करनी होगी।" मैंने कहा मैं सेवा किस तरह से करूं?उसने उत्तर दिया,"निःस्वार्थ भाव से। तुम जिस पर अपना हाथ रखोगे,वह ठीक हो जाएगा। मैं समय-समय पर तुम्हारा मार्गदर्शन भी करूंगा।

गुरूजी सुदूर गांव में थे। अगले दिनगुरुजी को कुछ लोग दिखाई दिएजो एक व्यक्ति को चारपाई पर ले जा रहे थे।गुरुदेव ने उनसे पूछा, "इसे क्या हो गया है?"उन्होंने बताया कि उसके पेट में बहुत दर्द है और वह बहुत कष्ट में है। तभी गुरुजी ने अपने अंदर की आवाज़ सुनी। उनसे कहा जा रहा था कि वह उन लोगों को रोक लें। उस व्यक्ति के पेट पर हाथ रखकर जाप करें और उसे ठीक करें। जब गुरुजी ने वैसा किया, तो वह आदमी पूरी तरह से ठीक हो गया। जो लोग उसे ले अस्पताल ले जा रहे थे वे हैरान रह गए। और इस तरह उन्होंने सेवा करना शुरू किया। 

उनकी यात्रा उसी पल से शुरू हो गई। उन्हें समय-समय पर आवाज़ के ज़रिये तरह-तरह के जाप मिलने लगे। वह आध्यात्मिक रूप से आगे बढ़ते रहे। यह शुरुआत थी।

 

गुरुदेव 35 साल की उम्र में ही संत बन गए थे। इसके लिए उन्होंने अपने तरीक़े से आध्यात्मिक सीढ़ी पर क़दम बढ़ाए थे। शुरुआत में इस विषय को जानने-समझने के जुनून में जो इस विषय का जानकार व्यक्ति उनके संपर्क में आया, वह उसकी ओर आकर्षित हुए उनकी मुलाक़ात दसूआ के सीताराम जी से हुई जो उनके पड़ोस वाले शीतला देवी मंदिर में रहने के लिए आए थे। युवा गुरुदेव से मिलने के बाद उन्होंने उन्हें सलाह देना शुरू कर दिया। उन्हें कुछ ऐसी सिद्धियां दीं, जिनमें वह स्वयं माहिर थे। 

उनके अपने गुरु बनारस के सीतारामजी थे। वह भी उसी मंदिर के मकान में लंबे समय तक रहने के लिए आ गए थे। बाद में वह गुरूदेव को अपने कनिष्ठ के हवाले छोड़कर निकल गए।

माना जाता है कि बनारस के सीतारामजी सशरीर इस दुनिया से प्रस्थान कर गए थे। शरीर को भौतिक रूप से त्यागना एक असाधारण उपलब्धि है। यह विश्व के इतिहास में बहुत कम आध्यात्मिक साधकों को प्राप्त हुई है। ऐसा माना जाता है कि बनारस के सीतारामजी ने निधन के बाद दसुआ के सीतारामजी को आत्मा के रूप में प्रशिक्षित किया था। 

जब गुरुदेव पढ़ने और नौकरी करने के लिए दिल्ली चले गए, तो दसुआ के सीतारामजी के साथ उनका संबंध समाप्त हो गया।

गुरुदेव की आध्यात्मिक यात्रा के दूसरे चरण में बुड्ढे बाबा का प्रवेश हुआ। गुरुदेव को हाथों और सीने में ओम देने के बाद, बुड्ढे बाबा ने उन्हें हरिद्वार में हर की पौड़ी पर गंगा नदी में अपनी सिद्धियों को त्यागने के लिए कहा। 

ऐसा करने के बाद ही गुरुदेव आध्यात्मिक महत्वाकांक्षी से सिद्ध गुरु बनने की राह पर आगे बढ़े। कल्पना करें तो यह बड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन असल रूप से यह सही है। बुड्ढे बाबा ने गुरुदेव को वह सबकुछ फिर से पाने में मदद की जिसे उन्होंने पिछले अवतारों में पहले ही पा लिया था। मेरा अनुमान है कि गुरुदेव ने पिछले जन्मों की सीमाओं को पार कर लिया था। इस अवतार में वह और भी आगे बढ़े। गुरुदेव के मार्गदर्शन में 100 से अधिक शिष्यों, सैकड़ों भक्तों और लाखों अनुयायियों ने भी आध्यात्मिक ऊंचाइयां हासिल कीं। 

गुरुदेव का जीवन बहुत सक्रिय था, जिसके परिणाम भी जबर्दस्त थे। उन्होंने दस लाख से अधिक लोगों की सहायता की, उन्हें राहत पहुंचाई और शानदार नतीजे देकर लोगों का जीवन आसान बनाया।  

अब हम 'प्रशिक्षु ' से 'मार्गदर्शक' की ओर ध्यान केंद्रित करते हैं

आप कभी उम्मीद नहीं कर सकते कि बुड्ढे बाबा रंगे हाथों भी पकड़े जा सकते हैं, लेकिन ऐसा हुआ।

पूरन जी ने एक मज़ेदार किस्सा सुनाया।

 

पूरन जीःजब वह लोगों की सेवा करते थेतो स्थान पर प्रसाद चढ़ाया जाता था। गुरुदेव भी चढ़ाते थे और कड़ा पहनते थे। जब लोग शिवपुरी स्थान पर प्रसाद चढ़ाते, तो प्रसाद वहां नहीं रहत था, ग़ायब हो जाता था। तो अगले गुरुवार को गुरूजी यह देखने के लिए वहां खड़े रहे कि प्रसाद आख़िर जाता कहां है। तभी उन्होंने देखा कि एक हाथ मिठाई की ओर बढ़ रहा है। उन्होंने उस हाथ को पकड़ लिया और कहा कि बाहर आओ। बताओ तुम कौन हो? तब बुड्ढे बाबा सामने आए और बोले, "मैं बुड्ढे बाबा हूं और प्रसाद ले जाता हूं।" यह बात गुरुजी ने मुझे बताई। 

सवालःतो वह हाथ बुड्ढे बाबा का था जो मंदिर के अंदर से आकर प्रसाद लेते थे।

पूरन जीःहां, स्थान में एक हाथ अंदर से आता और मिठाई ले जाता था।

सवालःतो, आपके अनुसार बुड्ढे बाबा क्या हैं? क्योंकि ऐसे बहुत से लोग हैं जो बुड्डे बाबा का अलग-अलग रूप बताते हैं?

पूरन जीःमैंने उन्हें बहुत ऊंचे-पूरे,बहुत स्वस्थ, सफ़ेद पोशाक औरसफ़ेद बालों वाले स्वरूप में देखा है। हो सकता है कि मैंने उनका दूसरा रूप देखा हो।

सवालःआपने उन्हें इस रूप में कैसे, कब और कहां देखा?

 

पूरनजीःजब मैं गुड़गांव में था, तब उन्हें देखा। मैंने उन्हें सपने में देखा था।

 

सवालःआपने उन्हें सपने में देखा था?

 

पूरनजीःजी, हां। 

 

सवालःआपने उन्हें देखा था?

 

पूरनजीः मैंने उन्हें देखा। वह लोगों को चावल, ज्वार जैसे अनाज बांट रहे थे।

 

सवालःजब आपने उन्हें देखा तो वह कितने साल के थे? मुझे पता है कि यह एक मूर्खतापूर्ण सवाल है क्योंकि यह तो आत्मा तय करती कि उसे किस उम्र में होना है, लेकिन फिर भी…

 

पूरनजीःवह लगभग 45 या 50 वर्ष के थे।

 

सवालःतो, बुड्ढे बाबा केवल 45 से 50 वर्ष के थे?

 

पूरन जीःहां, और उनके कंधों तक सफ़ेद बाल थे। यीशु मसीह की तरह।

 

यद्यपि लोगों का मानना था कि बुड्ढे बाबा स्थान पर भक्तों द्वारा चढ़ाए गए प्रसाद को चुराने के लिए बिना शरीर, केवल एक हाथ के रूप में प्रकट होते थे। वास्तविकता यह है कि वह जहां, जब चाहे, किसी भी रूप में प्रकट हो सकते थे। लोगों द्वारा समर्पित की गई भक्ति को स्वीकार करने का शायद यह बुड्ढे बाबा का अद्भुत तरीक़ा था। और उनकी भक्ति को स्वीकार करके वह लोगों की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले लेते थे और बदले में उन्हें राहत प्रदान करते थे। 

क्या इसे अप्रत्यक्ष विधि कहना सही होगा?

आइए, गुरुदेव के शिष्य राजपाल जी से पूछें कि उनके हिसाब से बुड्ढे बाबा कौन थे। 

 

सवालः मेरे पास कुछ ऐसे सवाल हैं जो लोग सालों से उठाते आ रहे हैं। और मुझे लगता है कि बहुत से लोगों के पास जवाब नहीं हैं। क्या बुड्ढे बाबा का कोई संस्थान था, क्योंकि गुरुजी किसी को बुड्ढे बाबा कहते रहते थे और कहते थे कि उनसे बात करनी है? तो, उनका उनसे क्या रिश्ता था, और बुड्ढे बाबा कौन थे?

राजपाल जीःबुड्ढे बाबा, गुरुजी के ईष्ट थे। वह अपने गुरु को इसी नाम से पुकारते थे। आज मैं इस बारे में आपको पूरी तरह बताऊंगा। स्थान के चारों ओर एक आभा है; उस आभा का स्रोत बुड्ढे बाबा हैं। गुरुजी ने मुझे यह इसलिए बताया था क्योंकि शिवरात्रि पर गुरुजी कुछ लोगों को उन्हें माला पहनाने की अनुमति दे रहे थे, कुछ को नहीं। मैं उनके पीछे खड़ा था और 2-3 घंटे तक यह देखता रहा। मैंने मन ही मन सोचा कि गुरूजी तो सभी को प्यार करते हैं, लेकिन वे लोग जो उनके गले में माला नहीं डाल पा रहे हैं उन्हें बुरा तो ज़रूर लग रहा होगा। तो, मैंने उनसे इसके बारे में वहीं पूछा, "गुरुजी, आप कुछ लोगों की माला अपने गले में नहीं डाल रहे हैं। उन्हें अच्छा नहीं लग रहा होगा।" मैंने यह बात जल्दी से कह दी। (हंसते हैं) उन्होंने लोगों को आशीर्वाद देना जारी रखा, और अचानक उन्होंने मेरी ओर देखा और कहा, "मुझे अपने गुरु को भी देखना है। मुझे अपने गले में अपने गुरु से अधिक मालाएं नहीं चाहिए।" जवाब ख़त्म। और इसी के साथ सवाल भी ख़त्म हो गया। तब मैंने सोचा कि उनके गुरु कहां थे? वहां केवल एक स्थान था, जिसमें भगवान शिव की मूर्तियां और कई रूपों में उनके चित्र थे। बाद में मुझे पता चला कि बुडढे बाबा शिव थे और बुडढे बाबा ही उनके गुरु थे।

 

दुर्भाग्य से, राजपाल जी का यह नज़रिया अन्य बहुत सारे विचारों में से एक है। बहस जारी है। कुछ भी अंतिम नहीं है।

लेकिन, अगर मैं व्यक्तिगत व्याख्या साझा करूं तो भगवान शिव की अभिव्यक्ति महान शंकर, बुड्ढे बाबा, बनारस के सीतारामजी और गुरुदेव में भी प्रकट होती है।

संतलाल जी ने स्वयं गुरुदेव द्वारा उन्हें दी गई समझ हमें बताई। गुरुदेव ने उन्हें बताया कि उनके सेवा के प्रारंभिक चरण में  भगवान शिव आते थे, उनकी बग़ल में बैठते थे और उनका मार्गदर्शन करते थे.

अब आगे सुनते हैं संतलाल जी से

संतलाल जीः गुरुजी ने एक बार कहा था कि भगवान शिव आएंगे और उनकी बग़ल में बैठेंगे और उनका मार्गदर्शन करेंगे। शुरुआत में वह नहीं जानते थे कि सेवा कैसे की जाती है। अब यदि आप देखें तो उन्हें सेवा के बारे में हमसे अधिक ज्ञान है। उस समय जब उन्होंने सेवा करना शुरू कीतो वे हमसे कहीं अधिक जागरूक थे कि इसे कैसे करना है। तोआप कल्पना कर सकते हैं कि यदि वह कहते हैं कि उन्हें सेवा करना नहीं आता है, तो हमारे लिए यह कैसे संभव है हो सकती है? आह! आज हमने उनसे सेवा के बारे में सब कुछ सीख लिया।

 

इस कथन से दो बातें समझ में आती हैं:

1)       उन्होंने भगवान शिव को बुड्ढे बाबा के ही रूप में देखा

2)     उनकी उपस्थिति केवल गुरुदेव को ही दिखाई दे रही थी, और किसी को नहीं

सच यह है कि बुड्ढे बाबा उर्फ भगवान शिव आकर उनके साथ बैठे थे जिससे यह साबित होता है कि यह एक महत्त्वपूर्ण यात्रा थी जो गुरुदेव और हम सभी से परे थी। भविष्य में भी ऐसे आश्चर्य हो सकते हैं, हम उनके बारे में भविष्यवाणी नहीं कर सकते।

गुरुदेव के सबसे वरिष्ठ शिष्यों में से एक एफसी शर्मा जी थे। वह गुरुदेव के 45 साल पुराने, शुरुआती विशिष्ट शिष्यों में से एक थे। जवाब उनके पास भी नहीं है। 

 

एफसी शर्मा जीः  ऐसा कभी नहीं लगा कि गुरुदेव के भी कोई गुरु हैं,लेकिन गुरुदेव ख़ुद हमें बताते थे कि उनके गुरु ने उन्हें कुछ कामों को करने से मना किया है। वह उन कामों को नहीं करते थे। गुरु कौन थे, किसी को नहीं पता। मैंने बुड्ढे बाबा को नहीं देखा है और न ही उनसे मिला हूं। बुड्ढे बाबा गुरुजी की रचना थी और वह इसलिए कि जब भी कोई उनके पास आता,तो वह कहते, "ये आदमी बड़ी मुश्किल में है,सेक्टर 7 स्थान में बुड्ढे बाबा के पास जाओ। एक धूप जलाओ और तुम्हारा काम हो जाएगा।”अगर आप अपनी शादी का कार्ड लेकर उनके पास जाएं तो वह कहते,"पहला कार्ड पर बुड्ढे बाबा लिखो और जाकर स्थान पर रख दो।"

केवल वही जानते थे कि बुड्ढे बाबा कौन हैं।चाहे वे शिव हों या महा शिव,क्योंकि स्थान पर गुरुदेव के चित्र नहीं हैं। शिव परिवारऔर अन्य देवी-देवताओं के साथ-साथ उनके द्वारा की गई सेवाओं की तस्वीरें हैं। तो, यह एक किरदार उन्हें हर बार याद रहता था। तो अगर गुरुदेव को कुछ देना होता तो हम सब पहले सेक्टर 7 स्थान पर जाते और उस पर बुड्ढे बाबा लिखते और चढ़ा देते थे। जहां तक मुझे पता है,बुड्ढे बाबा महा-शिव या शिव रूप हैं।

 

अनुमान कभी-कभी हमारी समझ को प्रभावित कर देता है। हम सब लोगों में से एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो सही-सही यह जानता है कि बुड्ढे बाबा कौन हैं? 

इस भ्रम को और बढ़ाने वाली एक घटना हुई। मैंने जो देखा उसके अनुसार, गुरुदेव मुझे एक नदी के किनारे ले गए। हम एक बेड़े पर चढ़ गए जहां एक दिव्य प्राणी हमारी प्रतीक्षा कर रहा था। उनका चेहरा चौकोन था और उन्होंने हरे रंग का चोगा पहन रखा था। मैंने महसूस किया कि गुरुदेव उन्हें वरिष्ठ मानते हैं। गुरुदेव ने उन्हें बेड़े की एक सीट पर बैठने के लिए कहा, जबकि हम दोनों बेड़े पर खड़े ही रहे। कोई बातचीत नहीं थी, बस एक मौन परिचय।

क्या वह महान आत्मा बुड्ढे बाबा थे? क्या वे बनारस के सीताराम जी थे या वे प्राचीन काल के महान ऋषियों में से एक थे?

यह रहस्य निरंतर बना हुआ था। कोई सुराग नहीं मिल रहा था।

यहां तक कि माताजी यानी उनकी पत्नी भी कुछ संकेत ही दे सकती हैं, पूरी कहानी नहीं बता सकतीं। 

 

माताजीः  वह मेरे सामने कभी बात नहीं करते थे। शायद  रात में किसी समय करते होंगेजैसे एक बार हुआ...सेवा आरंभ हो चुकी थी। घर में दूध ख़त्म हो गया था। मैंने सुबह के लिए थोड़ा-सा बचा लिया था। एक व्यक्ति आया, तो मैंने मज़ाक में उससे कहा दूध ले आओ तो चाय बना दूंगी। गुरुजी नाराज़ हो गए। उन्होंने मुझसे पूछा कि मैंने उस व्यक्ति को दूध लाने के लिए क्यों कहा।     

(ओके...)

मैंने उन्हें बताया कि मैंने जो दूध रखा है वह उनकी सुबह की चाय के लिए है। उन्होंने कहा कि उसमें से कुछ ले लेना था। मुझे उसे दूध लाने के लिए नहीं कहना चाहिए था। रात को वो थोड़ा गुस्से में थे इसलिए मैं उनके पास गई। वह पहले की तरह लेटे हुए थे- सांस नहीं ले रहे थे। मैं चिंतित हो गई, क्योंकि मैं कमरे में अकेली थी। मैंने मंदिर के सामने प्रार्थना करना शुरू कर दी और जो कुछ हुआ उसके लिए माफ़ी मांगी। कुछ देर बाद वह ठीक हो गये। मैं अपने पलंग पर जाकर लेट गयी। उन्हें पता नहीं था कि मैं जाग रही हूं।  वह कुछ कह रहे थे। वह "बाबा" या ऐसा ही कुछ बड़बड़ा रहे थे। मुझे नहीं पता कि वह क्या कह रहे थे। उन्होंने कुछ और कहा और फिर चुप हो गये। मुझे याद नहीं कि वह क्या कह रहे थे। लेकिन मैंने बाद में उनसे इसके बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि क्या मैं उस समय जाग रही थी। मैंने कहा कि उस समय मेरी नींद टूट गई थी। उन्होंने कहा हां, वह अपने ईश्वर से बात कर रहे थे। फिर ईश्वर ने कहा कि चुप हो जाओ, तुम्हारी पत्नी सुन रही है।

सवालः वह अपना ईश्वर किसे कह रहे थे?

माताजीः उन्होंने मुझे यह नहीं बताया। वह सभी से बात करते थे और कहते थे,"मैं शिव हूं। मैं ब्रह्म हूं। मैं गुरु हूं। मैं ही सब कुछ हूं। "

सवालःमैंने स्वयं बुड्ढे बाबा शब्द सुना है, और बहुतों ने सुना है...

माताजीः बुड्ढे बाबा कहकर वह शिव का नाम लेते थे।

सवालःतो, उन्होंने शिव जी को ही बुड्ढे बाबा कहा?

माताजीः बुड्ढे बाबा भगवान शिव की तस्वीर की तरह दिखते थे। उनके सफ़ेद बाल और लंबी सफ़ेद दाढ़ी थी। गुरुजी उनकी ओर इशारा करते हुए कहते थे,"यह बुड्ढे बाबा हैं।"

बुड्ढे बाबा के रहस्य को तभी समझा जा सकता है, जब गुरुदेव उनकी पहचान बताएं। जो लोग उन्हें शारीरिक रूप से इस अवतार में देखने का दावा करते हैं उनमें उनकी सबसे बड़ी बेटी रेणु और गुरुदेव की बहनें शामिल हैं। 

गुरुदेव की बहनों में से एक मेशी का सेंस ऑफ़ ह्यूमर बहुत अच्छा था। हम दोस्त बन गए थे। सच कहें तो उनकी दोनों बहनें हंसमुख स्वभाव की थीं। किसी जलधारा की तरह खिलखिलाती रहती थीं। उन्होंने बुड्ढे बाबा के बारे में बड़ा निराला विवरण पेश किया। 

किसी ने बहनों को बता दिया था कि गुरुदेव जल्द ही दूर चले जाएंगे। उन्होंने समझा कि वह हमेशा के लिए चले जाएंगे। ज़ाहिर है रोना-धोना शुरू हो गया और ऐन मौके पर बुड्ढे बाबा का प्रवेश हुआ। 

सिस्टर्स क्लब के पीड़ितों की गुफ़्तगू में आपका स्वागत है!

गुरुदेव की बहन:मुझे लगा कि यदि पापाजी एक बार निकल गए, तो फिर हम उन्हें कभी देख नहीं पाएंगे। यह सोचकर मैं रोने लगी। मैं स्थान वाले कमरे में बैठकर रो रही थी। गुरुजी के पास उस समय कमरे में बिस्तर नहीं था, इसलिए मैं फर्श पर ही सो गयी और कुछ भी खाने से मना कर दिया क्योंकि मुझे नहीं पता था कि पापाजी कहां गए थे। मैं गुरुजी के चमत्कारों को देखकर चकित हो गई। अचानक, एक सफेद रोशनी आई,  मैंने एक आदमी को चमकीले सफ़ेद कपड़ों में देखा। वह बहुत बूढ़ा था।

 

सवालःरोशनी कहां से आई?

गुरुदेव की बहन:गुरुजी के कमरे में आई।

 

सवालः"रोशनी आई" से आपका क्या मतलब है?

गुरुदेव की बहन: इसका मतलब है…

 

सवालःयानी मशाल की तरह रोशनी आई?

गुरुदेव की बहन: मशाल की तरह नहीं। लगा चिंगारी कमरे में आई हो और उसके बीच सफ़ेद कपड़े पहने एक आदमी था।

 

सवालःकितना ऊंचा था?

गुरुदेव की बहन:वह एक बूढ़ा आदमी था।

 

सवालःलेकिन वह कितना ऊंचा था?

गुरुदेव की बहन:वह शायद इस दरवाज़े के हैंडल जितना लंबा रहा होगा...इस दरवाज़े के हैंडल से भी ज़्यादा।

 

सवालःयानी लगभग 3 फुट?

गुरुदेव की बहन:नहीं, 5 फुट के आस-पास।

 

सवालःमतलब आप कह रही हैं कि उस रोशनी के अंदर वह आदमी खड़ा था?

गुरुदेव की बहन:हां। सशरीर था। मैं रोती रही और उसी कमरे में सो गयी।

 

सवालःजब वह आदमी आया, तो उसने आपसे क्या कहा?

गुरुदेव की बहन: उसने मुझे खाना खाने को कहा। मैंने मना कर दिया। उसने मुझसे कारण पूछा। मैंने कहा, “जब मेरा भाई मुझसे दूर जा रहा है, तो मैं किसके साथ खाना खाऊंगी? उसने पूछा, “तुम्हारा भाई कहां जा रहा है? वह दौरे पर ही तो जाएगा और वह कहां जाएगा" मैंने पूछा, "वह दौरे पर जा रहा है?" उसने कहा, "और कहां जाएगा?" फिर मैंने खाना और दूध का गिलास ले लिया और किचन में चली गई।

 

सवालःतो, यह आदमी कौन था?

गुरुदेव की बहन:गुरुदेव एक आदमी को 'बुड्ढे बाबा' कहते थे। तो वह वही बाबा थे, उनके गुरु।

 

सवालःक्या उनका कोई नाम था?

गुरुदेव की बहन:नहीं, हम उनका नाम नहीं जानते। सब उन्हें 'बुड्ढे बाबा' कहकर बुलाते थे। वह भगवान शिव को बुड्ढे बाबा कहते थे।

 

सवालःआपने उस आदमी को सफ़ेद कपड़ों में देखा था?

गुरुदेव की बहन:  हां, और मैंने गुरुजी को उसके बारे में बताया भी था।

सवालःउसका कैसा था चेहरा?

गुरुदेव की बहन:वह एक बूढ़ा आदमी था। उसका चेहरा हनुमान जैसा लाल था। सफेद दाढ़ी और सफ़ेद कपड़े थे। गुरुजी शाम को आए तो मैंने कहा, "पप्पाजी, मुझे पता है कि आप कहां जा रहे हैं?" उन्होंने पूछा, "मैं कहां जा रहा हूं?" मैंने कहा "किसी ने मुझे पहले ही बता दिया है।" उन्होंने पूछा "किसने?" मैंने कहा, "सफ़ेद कपड़ों में एक आदमी आया था। उसीने मुझे बताया।" उन्होंने पूछा, "उसने तुमसे क्या कहा?" मैंने कहा, ''उसने कहा था कि तुम्हारा भाई टूर पर जा रहा है।''

 

गुरुदेव की सबसे बड़ी बेटी रेणु ने जो कुछ देखा, उसके अनुसार वे स्वयं बुड्ढे बाबा थे।

सवालःतो रेणु जी, लोग कहते हैं कि गुरुजी के भी एक गुरु थे जिन्हें वह बुड्ढे बाबा कहते थे। क्या आपने कभी उनके बारे में सुना है? क्या आपने उन्हें देखा है?

रेणु जी:हां, मैंने दो मौक़ों पर उन्हें सुना और देखा है। बचपन में एक बार जब हम शिवपुरी में रहते थे और मैं बहुत छोटी थी, गुरुजी टूर पर गए मैं गंभीर रूप से बीमार पड़ गयी। उस समय हमें नहीं पता था कि वह कैसे दिखते हैं। गुरुजी के कहने पर हर कोई उन्हें बुड्ढे बाबा कहकर बुलाता था क्योंकि गुरुजी भी उन्हें केवल इसी नाम से बुलाते थे। यह नाम हमने उनसे ही सुना था। गुरुजी अक्सर कहते थे कि अगर हमें कुछ चाहिए तो हमें बुड्ढे बाबा जी से मांगना चाहिए। वह हमारी इच्छा पूरी करेंगे। उन्होंने कभी नहीं कहा कि हम कोई भी समस्या लेकर उनके पास जाएं। मुझे बुखार था। मम्मी स्कूल जाती थीं और मैं घर पर अकेली रहती थी। हमारा एक स्टोर रूम था। मैंने वहां से सफ़ेद कपड़े पहने हुए एक आदमी को निकलते देखा। 

 

 

सवालःकपड़े सफ़ेद थे?

रेणु जी:हां, सफ़ेद बालों और सफेद दाढ़ी के साथ। मुद्रा सीधी थी। ज्यादा ऊंचे नहीं थे, उनकी ऊंचाई लगभग 5.10 या 5.11इंच थी। मैं उनका चेहरा नहीं देख पा रही थी। लेकिन यह सोचकर डर लग रहा कि यह आदमी कौन है और मैं उसे क्यों नहीं देख पा रही हूं। जब मां घर लौटीं, तो मैंने उनसे कहा, "प्लीज़, यहां मेरे साथ बैठो, मुझे डर लग रहा है"। उन्होंने कहा, "तुम्हें डर क्यों लग रहा है? यह तुम्हारा घर है। हमारे यहां एक स्थान है। तुम अपना पाठ करो"। मैंने उनसे कहा, "पाठ कर रही हूं, तब भी मुझे डर लग रहा है। और अभी भी मैं उस व्यक्ति को यहां महसूस कर सकती हूं।" मां ने पूछा, "वह व्यक्ति कौन है?" मैंने कहा "वह स्टोर रूम के इस दरवाज़े से आता है और दूसरे दरवाज़े से बाहर निकल जाता है और कभी-कभी उल्टा होता है। और ऐसा 2 से 3 बार हुआ।" मां ने मुझे बताया कि वह बुड्ढे बाबा थे और वे इस स्थान के रक्षक हैं। 

सवालःओह, ऐसी बात है!

 

आम तौर पर यह धारणा थी कि बुड्ढे बाबा स्थान की रक्षा करते थे और यह देखते थे कि कोई बुरी ताक़तें स्थान में रहने वालों और यहां आने वालों को नुक़सान न पहुंचाएं।

इन सभी कहानियों से एक बात सामने आती है कि बुड्ढे बाबा ने ख़ुद को एक बूढ़े व्यक्ति के रूप में पेश किया था जो दुबले-पतले थे और सफ़ेद कपड़े पहने हुए थे। वह जो चाहे सो कर सकते थे। जैसे, वह दीवार के आर-पार हो सकते थे, स्थान की दीवार के पीछे से अपना हाथ निकाल सकते थे, अपने शिष्यों को शिवत्व प्रदान कर सकते थे, गुरुदेव और उनके नेतृत्व में काम कर रहे लोगों के माध्यम से लोगों को स्वस्थ कर सकते थे। चमत्कार करना जैसे उनके बाएं हाथ का खेल हो। 

तो, बुड्ढे बाबा एक रहस्य क्यों बने रहना चाहेंगे, यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब मेरे पास नहीं है।

शायद इसलिए कि जब कोई माया-मोह के बंधनों को पार कर परम वास्तविकता की प्राप्ति के साथ जीवन व्यतीत करने लगे, तो क्षुद्र मनुष्यों की दुनिया में रहना उसे समय की बर्बादी जैसा लग सकता है। 

शिमला के बख्शी जी को लगता है कि उन्होंने बुड्ढे बाबा को ठीक से पहचाना है। उनकी बात मुझे थोड़ा आश्वस्त करने वाली लगती है।

सवालः इसी क्रम में आपसे भी यह सवाल है कि बुड्ढे बाबा कौन हैं? कोई भी हमें ठीक से यह नहीं बता पाया है कि बुड्ढे बाबा कौन हैं या गुरुदेव बुड्ढे बाबा किसे कहते थे। इस पर आपकी क्या राय है?

बख्शी जी:गुरुजी के दादा जी-गुरुजी के गुरु के गुरु।

सवालःआप बनारस के सीताराम जी की बात कर रहे हैं?

बख्शी जी:उन्हें मालूम होगा। मुझे केवल इतना पता है कि उन्होंने क्या कहा- उन्होंने कहा था  कि प्रसाद बुड्ढे बाबा को चढ़ाया जाता है। वह शिव का स्वरूप हैं। उनकी लंबी सफ़ेद दाढ़ी है और वह शिव रूप हैं।

 

पहलवान जी सपनों की खेती नहीं करते थे। बल्कि खेती करना उनका सपना था!

यहां एक कहानी बताई जा रही है जो खेतों से शुरू होती है और स्वप्न तक जारी रहती है।

पहलवान जी:एक बार मैंने उनसे पूछा कि उनके गुरु कौन थे? हम खांडसा फार्म में थे, टैंक के पास। और हम अकेले ही थे। मेरे सवाल से वह अचानक उठ बैठे और बोले कोई नहीं। फिर एक दिन हम मोहम्मदपुर के फार्म पर थे। मैंने सवा घंटे तक उनके पैर दबाए। उस दौरान न तो उन्होंने और न ही मैंने बात की। फिर उसके बाद उन्होंने कहा, "बेटा, अब तक तुमको बुड्ढे बाबा के दर्शन हो गए होंगे?" वह उनको दादा-गुरू कहते थे। एक बार मेरे सपने में भी कुछ ऐसा ही हुआ था।

सवालःक्या?

पहलवान जी:मैंने सपने में देखा।  

सवालःआपने क्या देखा?

पहलवान जी:जिसे वह बुड्ढे बाबा कहते थे। 

सवालःआप किसके बारे में बात कर रहे हैं?

पहलवान जी:शिव जी महाराज।

सवालःआपने उन्हें देखा?

पहलवान जी:हां, मैंने उन्हें देखा लेकिन मैं उससे बात नहीं कर सका। गुरुजी ने कहा चिंता मत करो,तुम उनसे बात कर पाओगे।

 

एक महागुरु के रूप में गुरुदेव के जीवन के 18 वर्षों तक बुड्ढे बाबा की पहचान एक रहस्य बनी रही। यह रहस्य आज तक नहीं खुला है। ऐसा प्रतीत होता है कि गुरुदेव के निधन के बाद से पिछले कुछ दशकों में बुड्ढे बाबा के दर्शन बहुत कम हुए हैं।

स्वप्न देखने वालों में अशोक जी की पत्नी श्रीमती भल्ला भी शामिल हैं। पति और पत्नी दोनों के साथ लिए गए इंटरव्यूज़ इसी सपने पर आकर रुकते हैं। बाद में,  अशोक जी ने एक योगदंड की कहानी भी बताई, जो अलौकिक और अविश्वसनीय है।

सवालःकृपया मुझे बताएं।

श्रीमती भल्ला:बहुत ऊंचे।उनका चेहरा नहीं देख पाई लेकिन आकृति दिख रही थी। बहुत ऊंचे, तहमद पहने हुए।

सवालःतहमद क्या है?

श्रीमती भल्ला:एक प्रकार की लुंगी। घुटनों के ऊपर तक।

सवालःवह गुरुजी के गुरु के गुरु थे?

श्रीमती भल्ला: वह उन्हें बाबा गुरु कहते थे।

सवालःउन्हें किसने बुलाया?

श्रीमती भल्ला: जब भी गुरुजी अपना आशीर्वाद देते,वह व्यक्ति उनके साथ होता।

सवालःक्या मल्होत्रा जी ने उन सीतारामजी का वर्णन किया जो गुरुदेव के गुरु या गुरुदेव के गुरु के गुरु माने जाते थे?

श्रीमती भल्ला: हां, उन्होंने भी कहा कि वह दादा-गुरु हैं।

सवालःतो, वह कैसे दिखते थे? 

श्रीमती भल्ला:ऊंचे। उन्होंने ऊपर कुछ भी नहीं पहना था। मैं उनका चेहरा देख भी सकता हूं या नहीं भी। आप उनका चेहरा नहीं बना सकते।

अशोक भल्ला:चौड़ा चेहरा

श्रीमती भल्ला:बहुत ऊंचे और केवल एक तहमद पहन रखी थी।

सवालःखुला बदन?

श्रीमती भल्ला:हां

सवालःउनके सफ़ेद बाल थे या बाल ही नहीं थे?

श्रीमती भल्ला:बाल नहीं थे। मैं आपसे कह रही हूं न कि आप उनका चेहरा देख सकते थे और नहीं भी। 

सवालःआपने बाल या जटा देखी?

श्रीमती भल्ला:नहीं, ऐसा कुछ नहीं देखा।

सवालःवह गुरुदेव से लंबे हैं?कितने लंबे हैं?

श्रीमती भल्ला:हां, और दुबला-पतला शरीर। मज़बूत शरीर। मैंने उन्हें धाम में देखा है। वह बहुत तेज़ चलते हैं। ऐसा मेरा मानना है।

सवालःठीक। तो यह है दादा-गुरु को लेकर मल्होत्रा जी की व्याख्या।इन दोनों सज्जनों के बारे में मल्होत्रा जी ने और क्या बताया?

अशोक भल्ला:मैं आपको एक घटना बता सकता हूं। जब हम आध्यात्मिक फॉर्म में थे उस समय वह वहां थे,बाबा गुरु,दादा-गुरू, गुरुदेव और पप्पाजी भी थे। कोई चर्चा चल रही थी। शायद मल्होत्रा जी ने अपनी बात रखी होगी। उन्होंने मुझे चर्चा का विषय तो नहीं बताया, पर वो नाराज़ हो गये।

सवालःकौन?

अशोक भल्ला: बाबा गुरु। उनके हाथ में योगदंड था। उन्होंने मल्होत्रा जी की पीठ पर वार कर दिया। उन्हें तेज़ दर्द हुआ। उन्होंने बताया कि जब उन्होंने अपनी आंखें खोलीं तो उन्हें दर्द हो रहा था। वह ख़ुद तो देख नहीं सकते थे, इसलिए उन्होंने किसी से अपनी पीठ को देखने के लिए कहा। उस व्यक्ति ने कहा कि पीठ पर निशान है।

सवालःहे भगवान! योगदंड की तरह?

अशोक भल्ला: हां। मैंने उनसे पूछा कि उन्होंने तो तुम्हें आध्यात्मिक रूप से मारा तो इससे तुम्हें दर्द कैसे हुआ और निशान कैसे बन गया?

सवालःऐसा होता है। यह सच है।

अशोक भल्ला:हां, उन्होंने भी यही कहा।

 

क्या विश्वास करना आसान है?

स्वप्न अवस्था में आपको चोट लगती है, और जाग्रत अवस्था में आपकी पीठ पर एक निशान दिखाई देता है और साथ में दर्द भी होता है। मुझे नहीं लगता कि इस पर लोग विश्वास कर पाएंगे।

लेकिन यह मेरे साथ व्यक्तिगत रूप से हुआ है। मुझे एक अनुभव याद है जहां मैंने पंखे के माध्यम से छत से होते हुए ऊपर की यात्रा की।

यह मेरे सूक्ष्म-शरीर में हुआ था।

जब मैं उसी रास्ते से लौटा, तो मेरे टखने पंखे के ब्लेड के लेवल पर कुछ सेकंड के लिए ठहर गए थे। मैंने कर्कश आवाज़ सुनी और मेरे टखने में दर्द महसूस हुआ। अगली सुबह जब मैं उठा, तो मेरे उसी टखने में, उसी जगह पर दर्द हो रहा था, जहां रात को वह पंखे के ब्लेड से टकराया था! मैं उसके बाद 15 दिनों तक लंगड़ा कर चला। इसलिए, मेरे लिए, इस कहानी पर विश्वास करना मुश्किल नहीं है। आपको बस इस तथ्य पर विश्वास करना होगा कि ये चीज़ें होती हैं।

गुरुदेव को एक महागुरु के सांचे में ढालना और उनकी उपलब्धियों पर नज़र करना, बुड्ढे बाबा के प्राथमिक मिशनों में से एक प्रतीत होता है।

आज गुरुदेव वही भूमिका निभाते हैं जो बुड्ढे बाबा ने अपने जीवन-काल में निभाई थी। वह अकसर दृष्टि और भौतिक दोनों रूपों में देखे जाते हैं। नज़फ़गढ़ में कई लोगों ने उनकी मौजूदगी महसूस की है।

भृगु ने हज़ारों साल पहले अपनी संहिता में यह बात लिख दी थी। मुझे लगता है कि गुरुदेव के अधिकांश शिष्य, जो गुज़र चुके हैं, अपने पारलौकिक रूप में उनकी सहायता करते हैं और उनकी जगह काम करते हैं। मैं भी इस पारलौकिक समूह में शामिल होने के लिए उत्सुक हूं। मुझे लगता है कि मेरा आवेदन अस्वीकार नहीं होगा।

अब 'बुड्ढे बाबा खोज क्लब' में वापस आते हैं।

रूपल एक सेवादार हैं जो शारीरिक रूप में गुरुदेव से कभी नहीं मिलीं, लेकिन स्वप्न अवस्था में उनका सामना हुआ है। आपके लिए अब एक ड्रीम सीक्वेंस आ रहाहै।

 

रूपल जीःदरअसल, साल तो मुझे ठीक से याद नहीं है लेकिन वह महाशिवरात्रि का दिन था। मैंने चाय पी और सोने चली गयी। उस समय मैंने सपने में देखा कि मैं किसी हिल स्टेशन की सड़क पर चली जा रही थी। वहां बाज़ार था। सड़क की बायीं ओर मैंने एक छोटा-सा स्थान देखा। जब मैं उस स्थान पर गयी तो मैंने देखा कि वहां बहुत सारी तस्वीरें लगी हुई थीं और उनमें से एक गुरुदेव की भी थी। दीवार पर सबसे दाहिनी ओर एक ऋषि का फोटो था। वह लंबे बालों और मध्यम आकार की दाढ़ी वाले थे। दुबले-पतले सांवले रंग के। उन्होंने सफ़ेद धोती पहनी हुई थी और बहुत बूढ़े लग रहे थे। और उन्होंने अपना दाहिना पैर अपने बाएं पैर पर रखा हुआ था, जैसे मैंने गुरुदेव को उनकी फोटो में बैठे देखा है। और मेरे सपने में किसी ने मुझसे कहा कि यह बुड्ढे बाबा की फोटो है।

 

आइए हम "मैंने बुड्ढे बाबा को देखा है" के दावे से हटकर "मैंने केवल उनके बारे में सुना है" के बारे में जाने। मैं आगे ऐसे ही कुछ विचार पेश कर रहा हूं!

सुनते हैं कि श्री रवि त्रेहन का क्या मानना है।

रवि जी: मैं बुड्ढे बाबा से कभी नहीं मिला, लेकिन मैंने गुरुदेव को उनके बारे में बात करते सुना है। जब सेक्टर 7में स्थान स्थापित किया गया था तब गुरुदेव हमेशा कहते थे कि बुड्ढे बाबा वहां मौजूद हैं। और जब भी कोई व्यक्ति अपनी समस्याओं को लेकर गुरुजी से मिलने जाता तो वह कहते, "जाओ,स्थान पर बुड्ढे बाबा के सामने सिर झुकाओ और अपनी समस्याएं उनको बता दो। तुम्हारा काम हो जाएगा।" कोई भी शिष्य गुरुदेव के गुरुजी से नहीं मिला। लेकिन जहां तक हमने सुना है, दसुआ के सीतारामजी जो गुरुजी के घर के पास आते थे और शीतला माता मंदिर में रहते थे जो कि गुरुदेव के घर के बिल्कुल क़रीब था। सुनने में आया था कि सीतारामजी गुरुदेव के गुरु थे जिन्होंने गुरुदेव को शिक्षा दी और उन्हें तैयार किया।

 

रवि त्रेहन जी मानते हैं कि दसुआ के सीताराम जी गुरुदेव के गुरु थे। उनका यह भी मानना है कि शिव गुरुदेव के गुरु थे।

मैं इसका विश्लेषण इस प्रकार करता हूं: जब कोई व्यक्ति सीखने के एक चरण से दूसरे चरण में जा रहा होता है, तो उसकी शिक्षा के विभिन्न चरणों में विभिन्न विषयों के लिए उसके पास अलग-अलग गुरु होते हैं। दूसरे, सही मायने में सफल शिक्षक यह सुनिश्चित करेगा कि उसका शिष्य उससे आगे बढ़ जाए। शायद यही है गुरुदेव की कहानी।

गुरुदेव ने एक बच्चे के रूप में अपने माता-पिता और धार्मिक लोगों से सीखा, किशोरावस्था में सीताराम जी से शिक्षा ली और एक वयस्क के रूप में बुड्ढे बाबा से ज्ञान लिया। 

सभी शिक्षक थे लेकिन गुरु केवल एक ही था।

अशोक जी के साथ बहस जारी है, जो अनिश्चित होते हुए भी एक पक्ष चुन लेते हैं। जरा गौर से सुनिए ... 

 

सवालःबुड्ढे बाबा और बड़े सीतारामजी एक ही व्यक्ति हैं या नहीं? अशोक भल्ला की राय में, मेरे पास सौ मत हैं,  भगवान जाने सच क्या है।

अशोक भल्ला:इस बारे में थोड़ा भ्रम है, लेकिन मुझे भरोसा है कि मैं आपको बता सकता हूं।

सवालःमैंने आपसे आपकी राय मांगी है।

अशोक भल्ला: वह भोले नाथ हैं,वे भगवान शिव हैं। कारण भी बताता हूं। मैं गुरुजी के कमरे में बैठा था और हम बात कर रहे थे। मुझे वह बात याद है कि गुरुजी ने कहा,"मेरा मालिक मृत्यु और जीवन दोनों को नियंत्रित करता है"। साथ हीअगर आपने गौर किया होगा कि गुरुजी के बिस्तर के ऊपर शिव जी की तस्वीर है, क्योंकि उन्होंने ऐसा कहते हुए फोटो की ओर देखा था।

 

अलका, गुरुदेव के भौतिक अवतार की सबसे छोटी बेटी,  हमें एक राय देती हैं।

अल्का जीः बुड्ढे बाबावास्तव में,मुझे नहीं पता लेकिन मुझे क्या लगता हैहम आपस में चर्चा करते थे कि बुड्ढे बाबा कौन थे, वे गुरुजी के गुरु थे या शिव जी के रूप थे। उस स्थान पर एक तस्वीर थी जिसे गुरुजी इशारा करके कहते कि वह बुड्ढे बाबा हैं। यह शिव जी का रूप था जिनकी सफ़ेद दाढ़ी थी।

 

गुरुदेव की भाभी को लोग प्यार से चाची जी कहते हैं। वह होशियारपुर के पास हरियाना में अपने पारिवारिक घर में रहती हैं।  दूसरों की तरह वह भी अपना अनुभव बांट रही हैं। 

चाची जीः मैं यह कहूंगी कि यह रहस्य है या सच-पर उन्होंने भोले-बाबा के बारे में बात की थी या इसे बुड्ढे बाबा या कोई और नाम दे दें। यह राज़ वह अपने साथ ले गये। उनका कोई गुरु नहीं था,वे बुड्ढे बाबा,भोले नाथ को अपना मार्गदर्शक,अपना इष्ट मानते थे और शीतला मंदिर में वह काफ़ी समय बिताते थे। तो,वहां के लोग जैसे कि मंदिर के पुजारी को लगता था कि उनका वहां कोई लगाव है। वहां सीताराम बाबा थे। वह सफ़ेद कपड़े पहनते थे,मैंने भी देखा है। मैंने उन्हें अपनी शादी के बाद देखा है। मैं इस घर में बहुत बाद में आयी हूं। बात सन् 1975 की है। तो लोग सोचते थे कि यहां कोई गुरु है, इसीलिए वह यहां आया करते थे।ऐसा कुछ नहीं था। हम गुरुजी से पूछते थे पर उन्होंने यह रहस्य कभी किसी से साझा नहीं किया। वह स्वयं शिव थे और वह बुड्ढे बाबा को 'शिव'कहकर बुलाते थे और उन्हें अपना ईष्ट मानते थे।

 

एक अन्य शिष्य, राजी शर्मा, जो 70 के दशक की शुरुआत में सामने आए, वह सच जानने का दावा करते हैं।

सवालःबुड्ढे बाबा कौन थे और आप उनसे कैसे मिले?

 

राजी जीः मैं बुड्ढे बाबा से कभी नहीं मिल पाया। मुझे नहीं लगता कि कोई भी, कभी उनसे मिला होगा। जिन बुड्ढे बाबा की बात की जा रही है वह  हमारे सबसे बड़े गुरुजी, जो हमारे परदादा गुरु हैं, और गुरुदेव के दादा गुरु हैं। वह और शिव एक हैं। वे एक कैसे हैं, मैं आपको विस्तार से समझाऊंगा।

 

शिव क्या हैं? गुरुदेव हमेशा कहते थे कि क्या शिव वही हैं जो हाथ में त्रिशूल लिए पर्वत शिखर पर विराजमान हैं? क्या वह हर सुबह दाढ़ी बनाते हैं, रूज़ लगाते हैं, अपने चेहरे पर लाल रंग लगाते हैं? क्या वह सुंदर दिखते हैं, उनके बाल लंबे हैं? मृत्यु को नियंत्रित करने वाला मृत्यु का स्वामी कितना भयानक होगा?

 

शिव ब्रह्म चेतना और ब्रह्मांडीय चेतना है। वही शिव है। वह बहुत सारे सेवकों के साथ शाही गद्दी पर बैठने वाला नहीं है। तो वह चेतना और बुड्ढे बाबा, शिव को जो रूप हमने दिया है, हम उन्हें जिस रूप में देखते हैं, उनमें और हमारे परदादा गुरुजी में कोई अंतर नहीं है। यह हमारे परदादा गुरु का शिव रूप दिखाता है।

 

 

इसलिए, हम एक अधूरा निष्कर्ष निकालते हैं।

 

बुड्ढे बाबा की रहस्य यात्रा आधिकारिक तौर पर समाप्त हो गई है, और हम केवल इन महान ऋषि से प्रार्थना कर सकते हैं कि वह हमसे अब और अनुमान न लगवाएं।

 

मेरी व्यक्तिगत राय में,मैं शर्त लगा सकता हूं कि बुड्ढे बाबा क्यों नहीं पहचाने जाना चाहते थे क्योंकि वे पहचाने जाने से बचना चाहते थे। जब लोग शिव का स्वरूप बन जाते हैं,तो वे शायद कुछ और होने की इच्छा नहीं रखते हैं। वे मानवीकरण को अपनी आध्यात्मिक स्थिति के लिए एक बाधा मानते हैं। महिमा,प्रसिद्धि,मान्यता से अहंकार के पुनर्जीवन का जोख़िम होता है। और उल्टी गति को वापस जीवात्मा के स्तर तक पहुंचने का डर होता है। 

 

संभवत:, बुड्ढे बाबा को अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। उनका बस एक उद्देश्य था। उन्होंने गुरुदेव से ज़ोर देकर कहा होगा कि उन्हें गुप्त रखा जाए।

 

बुड्ढे बाबा शायर नहीं थे, लेकिन अगर होते तो शायद इस तरह का कुछ कहते-

 

ना ढूंढ़ मुझे ज़मीन और आसमान की गर्दिशों में

ना ढूंढ़ मुझे ज़मीन और आसमान की गर्दिशों में

मैं अगर तेरे दिल में नहीं तो कहीं भी नहीं

मैं अगर तेरे दिल में नहीं तो कहीं भी नहीं